सांसों में ज़हर घोलती प्रदूषण की सरकारी दूकान

सांसों में ज़हर घोलती प्रदूषण की सरकारी दूकान
October 30 14:36 2023

फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) यूं तो धूल और धुंए से वायू-प्रदूषण हर समय ही बना रहता है, परन्तु अक्टूबर का महीना शुरू होते ही यह प्रदूषण भयंकर रूप लेने लगता है। मौसम में आनेवाले परिवर्तन यानी कि तापमान गिरने तथा वायु गति स्थिर होने के चलते धूल और धुएं के गुबार इधर-उधर जाने के बजाय शहर के पर ही स्थिर हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप पूरा शहर तब तक गैस चेम्बर बन कर रह जाता है जब तक कि बारिश एवं वायु गतिशील न हो जाय।

यह सब कोई यकायक हो जाने वाली प्रक्रिया नहीं है। बीते अनेक वर्षों से यह सिलसिला चला आ रहा है। इससे निपटने के नाम पर सरकारों ने प्रदूषण विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा ग्रीन ट्रिब्यूनल जैसी कमाई की दुकाने खोल रखी हैं। प्रदूषण नियंत्रण ने इनका योगदान केवल चालान करने व पैसे वसूलने तक ही सीमित रहता है। अक्टूबर महीना शुरू होते ही ग्रेप(ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान) नाम का नाटक शुरू कर दिया जाता है। इस दौरान डीजल जनरेटर चलाने, भवन निर्माण करने तथा फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुंए पर रोक लगा दी जाती है। इसके साथ-साथ सडक़ों से उडऩे वाली धूल को रोकने के लिये पानी छिडक़ाव की बात की जाती है। इसके अलावा पराली जलाने वाले किसानों पर भी कार्रवाई करने का दावा किया जाता है।

इस तमाम ड्रामेबाज़ी के बावजूद वायु प्रदूषण दिन-ब-दिन बढ़ता ही जाता है। क्योंकि ड्रामेबाजी तो ड्रामेबाजी ही होती है उससे कोई समस्या हल नहीं होती। जब बिजली नहीं मिलेगी तो जेेनरेटर चलेंगे ही, भवन निर्माण का काम कोई रोकता नहीं है। फैक्ट्रियों का धुंआ भी ज्यों का त्यों निकलता है। इनको रोकने वाले इसके एवज में अच्छी-खासी लूट-कमाई कर लेते हैं। इसके चलते शहरवासी श्वांस रोग तथा अन्य कई बीमारियों के शिकार होने लगते हैं।

सडक़ों से उडऩे वाली धूल को रोकने के लिये पानी छिडक़ाव के नाम पर मोटे बिल तो जरूर बनते रहते हैं परन्तु छिडक़ाव कहीं नज़र आता नहीं। नज़र आना सम्भव भी नहीं क्योंकि इतने लम्बे-चौड़े शहर में और वह भी टूटी सडक़ों व उनके किनारे पड़ी मिट्टी को गिला करने के लिये सैंकड़ों जल छिडक़ाव वाहनों की जरूरत है, जो कि सम्भव नहीं दिखता। दूसरी ड्रामेबाजी के तौर पर दो-चार जगह, तथाकथित एन्टी स्मोक गनों द्वारा वायूमंडल में पानी की बौछारें की जाती हैं। यह सब ऊंट के मुंह में जीरे के समान होता है। सडक़ों पर झाड़ू लगाने से उडऩेवाली धूल को रोकने के लिये करोड़ों रुपये की विशेष मशीने तो ले ली गई हैं लेकिन उनकी कोई कार्रवाई नज़र नहीं आती। नज़र आ भी नहीं सकती क्योंकि यहां की सडक़ें उन मशीनों के लायक बनी ही नहीं है।

असल काम जो करने वाला है और जो आसानी से किया भी जा सकता है, उसे करने में शासन-प्रशासन की कोई रुचि नहीं है। प्रशासन को सैंकड़ों मील ‘जलती पराली’ का धुंआ तो नज़र आता है परन्तु अपनी नाक के नीचे जलते कूड़े-कबाड़े के ढेर नज़र नहीं आते। कबाड़े में जलने वाली रबर व प्लास्टिक की दुर्गन्ध अधिकारियों व राजनेताओं को कतई महसूस नहीं होती।

सडक़ों पर लगने वाले जाम से बढ़ते प्रदूषण का समाधान करने की कोई समझ प्रशासन में नजर नहीं आती। प्रदूषण विभाग की ओर से शहर के कई स्थानों पर घड़ीनुमा यंत्र लगा कर शहरवासियों को यह जरूर बताया जाता है कि वायु का ज़हरीलापन कितनी तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। समझ नहीं आता कि यह सूचना देकर सरकार अपने नागरिकों से क्या चाहती है? प्रदूषण को रोकने के लिये जनसाधारण के पास न तो कोई अधिकार है और न ही कोई साधन।

यदि नागरिकों ने ही सब कुछ करना है तो इस सरकार नामक बोझ को वे क्यों ढो रहे हैं? इसी सवाल को लेकर लोग सडक़ों पर उतरने की बजाय मंदिरों में भजन कीर्तन करते हुए परमात्मा की शरण में रहना ज्यादा पसंद करते हैं।

प्रदूषण से लड़ते वकील ऋषिपाल
सेक्टर 11 निवासी वकील ऋषिपाल शर्मा एक जागरूक नागरिक का फर्ज निभाते हुए प्रदूषण के विरुद्ध जम कर लड़ रहे हैं। यद्यपि उनके पास सरकार की ओर से दिया गया कोई कानूनी अधिकार तो नहीं है, फिर भी वे अपने सेक्टर में जगह-जगह कूड़े के ढेरों में लगी आग की वीडियो बना बना कर उन अधिकारियों व राज नेताओं के पास भेज रहे हैं जिनके पास इन्हें रोकने के अधिकार हैं।
बीते सप्ताह ऋषिपाल ने इस सम्बन्ध में बाकायदा एक लिखित शिकायत नगर निगमायुक्त मोना एश्रीनिवास को भी भेजी है। विदित है कि ऋषिपाल द्वारा कूड़े के जलते जो ढेर अपने वीडियो में दिखाये हैं वे सेक्टर 11 की पुलिस चौकी, राज्य के परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा तथा विधायक नरेन्द्र गुप्ता के कार्यालय के आस-पास ही है। इतना ही नहीं ऋषिपाल उन बड़ी कोठी वालों से भी कूड़ा न जलाने का अनुरोध करते हैं जो इस तरह के ढेर जलवाते हैं। इसी तरह का अनुरोध आरडब्लूए के प्रधान विकास चौधरी भी करते नज़र आये हैं। दरअसल कोठी निवासियों को भी कूड़े के ढेर तभी जलाने पड़ते हैं जब नगर निगम के निकम्मे एवं भ्रष्ट अधिकारी इन्हें नहीं उठवाते।
प्रदूषण के विरुद्ध इसी तरह की जंग सेक्टर 55 निवासी गुरमीत सिंह देओल भी लड़ते नज़र आ रहे हैं। वे अपनी वीडियो के द्वारा अन्य स्थानों के अलावा सेक्टर 12 में कूड़े के जलते ढेर लगातार दिखाते आ रहे हैं। कूड़ा जलने का यह स्थान सेक्टर 15ए के फायर स्टेशन के लगभग सामने वहां स्थित है जहां ‘हूडा’ के दो एक्सईएन व अन्य कर्मचारी अपना दफ्तर चलाते है।

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Mazdoor Morcha
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