फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) फर्जी सर्वे कर प्रदेश भर में नब्बे प्रतिशत से अधिक गलत प्रॉपर्टी आईडी बनाकर फरार होने वाली याशी कंसल्टेंसी को नायब सैनी की सरकार ने जाते जाते क्लीनचिट दे दी है। याशी कंसल्टेंसी के खिलाफ लोकायुक्त में वाद दायर करने वाले पीपी कपूर कहते हैं कि सरकार ने 12 आईएएस अधिकारियों, स्थानीय शहरी निकाय के नब्बे अधिकारी, याशी कंसल्टेंसी और अपनी इज्जत बचाने के लिए कंपनी को क्लीनचिट दी है, यदि एंटी करप्शन ब्यूरो से जांच कराई जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी।
सत्ता में आने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर ने संघ- भाजपा की सेवा करने वालों को मोटा मेवा बांटने की नीयत से जयपुर के संजय गुप्ता को प्रदेश के 90 शहरी निकायो में प्रॉपर्टी आईडी बनाने का काम सौंपा था। संघ की शाखाओं में ढोल बजाने के अलावा कोई तकनीकी ज्ञान नहीं रखने वाले संजय गुप्ता की याशी कंसल्टेंसी ने फर्जी सर्वे कर 90 प्रतिशत से भी ज्यादा प्रॉपर्टी आईडी गलत बना डालीं। गड़बड़ प्रॉपर्टी आईडी के कारण लोगों के गलत हाउस टैक्स-वाटर टैक्स तो आने ही लगे, उन्हें रजिस्ट्री कराने से लेकर प्रॉपटी से संबंधित अन्य कार्यों में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
पानीपत के वादी पीपी कपूर ने बताया कि खट्टर सरकार ने याशी कंसल्टेंसी कंपनी को ठेका दिया था। इसकी शर्त ये थी कि कंपनी सर्वे कर प्रॉपर्टी आईडी बनाएगी और संबंधित नगर निकाय का अधिकारी उस रिकॉर्ड का भौतिक सत्यापन करने के बाद ही सर्टिफिकेट जारी करेगा। सर्टिफिकेट मिलने के बाद ही सरकार कंपनी को भुगतान करेगी। कंपनी ने सभी जिलों में फर्जी सर्वे किया और 90-95 प्रतिशत गलत प्रॉपर्टी आईडी बना कर रिकॉर्ड सौंप दिया। अधिकारियों ने भौतिक सत्यापन किए बिना ही सर्टिफिकेट जारी कर दिया। आश्चर्य की बात है कि तमाम आंकड़े गलत होने के बावजूद अधिकारियों द्वारा उठाई जाने वाली आपत्तियों को शासनादेश के द्वारा दबा दिया गया। यही कारण है किसी भी निकाय अधिकारी की आपत्ति को रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया। कंपनी द्वारा डेटा देते ही आनन फानन प्रमाणपत्र जारी करके तय रकम अदा कर दी गई। दरअसल ये सब भ्रष्टाचार के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस का नारा देने वाले खट्टर के आदेश पर किया गया था। इधर सर्टिफिकेट जारी हुए और उधर खट्टर सरकार ने कंपनी को 62.63 करोड़ में से 57 करोड़ से अधिक का भुगतान कर डाला। पीपी कपूर ने जुलाई 2023 में शहरी स्थानीय निकाय के अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त हरिपाल वर्मा की कोर्ट में केस डाला। शिकायत थी कि अधिकारियों ने प्रापर्टी आईडी का सत्यापन करने में लापरवाही बरती जिसके कारण जनता को परेशानी हो रही है। लोकायुक्त ने मामले की प्राथमिक जांच एंटी करप्शन ब्यूरो से कराई थी। एसीबी ने गड़बडिय़ां होना बता कर विस्तृत जांच के लिए एफआईआर दर्ज कराने की इजाजत लोकायुक्त से मांगी थी। सरकार के टुकड़ों पर पलने वाले लोकायुक्त ने इजाजत न देकर स्थानीय शहरी निकाय के मुख्य सतर्कता अधिकारी से मामले की जांच कराने के आदेश दिए थे।
लोकायुक्त में वाद दायर होने पर अपनी गर्दन फंसते और जनता में थू थू होती देख अधिकारियों ने दिखावे के लिए याशी कंपनी को सितंबर 2023 में ब्लैकलिस्ट कर दिया। सरकार को खुश करने के लिए अधिकारियों ने कंपनी पर इल्जाम लगाया कि कंपनी ने टेंडर शर्तो में बताया गया सॉफ्टवेयर यूएलबी को नहीं दिया है यानी चालाकी से गलत प्रॉपर्टी आईडी बनाए जाने की बात छिपा गए। इसका फायदा उठाते हुए कंपनी हाईकोर्ट चली गई और मैच फिक्सिंग की तर्ज पर अधिकारियों का पक्ष कमजोर पड़ गया और कंपनी को राहत दे दी गई। मैच फिक्सिंग का यह खेल फिर खेला गया, अधिकारियों ने एक बार फिर कंपनी को ब्लैकलिस्ट करने का ढीलाढाला नोटिस भेज दिया। कंपनी इस पर ट्रिब्युनल चली गई जहां मामला लंबित है।
छह मई को लोकायुक्त कोर्ट में हुई सुनवाई में स्थानीय शहरी निकाय के मुख्य सतर्कता अधिकारी ने याशी कंसल्टेंसी सहित सभी निकाय के अधिकारियों को क्लीनचिट दे दी। कारण बताया गया कि प्रॉपर्टी आईडी के भौतिक सत्यापन संबंधी रिकॉर्ड किसी भी नगर निकाय ने उपलब्ध नहीं कराए हैं, यानी याशी कंपनी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। सूत्रों के अनुसार अब यूएलबी के अधिकारी कंपनी को ब्लैकलिस्ट करने का नोटिस भी वापस लेने की तैयारी कर रहे हैं। ये सब भाजपा की अल्पमत सरकार के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के इशारे पर किया जाना बताया जा रहा है। लोगों का कहना है कि खट्टर ने याशी कंपनी पर जनता की गाढ़ी कमाई लुटाई और नायब सिंह सैनी सरकार ने आगे लूटपाट के लिए उसका रास्ता साफ करने की नीयत से क्लीन चिट दिलवा दी। हालांकि पीपी कपूर कहते हैं कि वह अगली सुनवाई में लोकायुक्त से मामले की एसीबी से जांच कराने की मांग करेंगे।
संदर्भवश सुधी पाठक समझने का प्रयास करें कि तमाम शहरी निकायों के इस तरह के सभी काम निकाय कर्मचारी ही करते आए हैं और आईडी बनाने का यह काम भी कर्मचारियों से कराया जा सकता था। लेकिन नीयत में खोट के चलते भाजपा सरकार ने यह काम कर्मचारियों से न कराकर अपने संघी लगुए भगुओं को सौंप दिया। इसके लिए बहाना यह बनाया गया था कि निकायों में कर्मचारियों की कमी है और वे बेईमान व कामचोर हैं, लेकिन से सभी आरोप गलत हैं। प्रत्येक निकाय में आधे से अधिक पद खाली पड़े हैं कोई भी कर्मचारी भ्रष्टाचार और कामचोरी तब ही करता है जब उसके आका उसे ऐसा करने को मजबूर करते हैं। अधिकारियों की इच्छा के खिलाफ कोई भी कर्मचारी ऐसा काम नहीं कर सकता।