संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कमजोर हुए मोदी के लिए उतार फेंका सांस्कृतिक चोला

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कमजोर हुए मोदी के लिए उतार फेंका सांस्कृतिक चोला
June 23 13:16 2024

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
लोकसभा चुनाव के बाद कथित सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की बयानबाजी को मीडिया में भागवत ने मोदी के पर कतरे का किया प्रयास, मोदी पर निशाना साधा आदि से प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है मानो वो भाजपा के विरोध पर उतर आए हैं। भागवत के बयानों को संघ के बारे में पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा कही गई उक्ति कि यदि संघ कहे कि पूर्व असुरक्षित है तो हमें निश्चित ही पश्चिम की चिंता करनी चाहिए के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। भागवत ने ये बयान मोदी पर निशाना साधने के लिए नहीं बल्कि उन्हें संरक्षण देने के लिए जानबूझ कर दिए हैं। भागवत का मुंह भी इसलिए खुला है कि भाजपा 240 सीटों पर ही सिमट गई है अगर पूर्ण बहुमत की सरकार होती तो उनके मुंह में दही जमी रहती।

दरअसल, कट्टर हिंदुत्व का हिमायती संघ और हिंदुत्व की राजनीति करने वाली भाजपा को इस लोकसभा चुनाव में बड़ी हिंदू आबादी ने नकार दिया। चुनाव आयोग द्वारा की गईं तमाम साजि़शों के बावजूद भाजपा चार सौ पार तो दूर अपने दम पर सरकार बनाने लायक सीटें तक नहीं जीत पाई। ऐसे में भाजपा का पितृ संगठन यानी संघ डैमेज कंट्रोल करने के लिए आगे आया। भागवत ने अपने भाषण में उन मुद्दों को उठाया जिन पर आम हिंदू भी मोदी और भाजपा से नाराज था, यानी उनका भाषण भाजपा के लिए सेफ्टी वॉल्व की तरह था जिसमें उन्होंने बहुसंख्य हिंदुओं की भावनाएं व्यक्त कर उनके क्षोभ को शांत करने का प्रयास किया।

अब उनके बयान और उनमें छिपे मतलब को जानने का प्रयास करते हैं। भागवत ने मोदी का नाम लिए बिना ही कहा कि शासक में अहंकार नहीं होना चाहिए, धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। समझने वाली बात है कि संघ की नींव ही मुस्लिम-दलितों से भेदभाव पर टिकी है, यानी उनका बयान मोदी को नसीहत देना नहीं बल्कि अपनी छवि सुधारने की नीयत से दिया गया था। मोदी इससे पहले भी दो बार हिंदू-मुसलमान, कब्रिस्तान-श्मशान कर पूर्ण बहुमत हासिल कर आए। तब क्या भागवत ने मोदी के भाषण नहीं सुने थे जो अब सुनने लगे हैँ। मोदी के सत्ता में आते ही संघ समर्थित कथित गौ रक्षक संगठनों ने गो तस्करी के आरोप की आड़ में मुसलमानों को निशाना बनाया, हत्याएं कीं, तब मोहन भागवत को धार्मिक आधार पर भेदभाव नजर नहीं आया, तो सिर्फ इसलिए कि वो निश्चिंत थे कि मोदी की पूर्ण बहुमत सरकार को कोई नुकसान नहीं हो सकता था।

मोदी के सत्ता में रहते हुए ही तीन तलाक, वक्फ संपत्ति, मदरसों को बंद करने के प्रयास, मस्जिदों से लाउडस्पीकर उतरवाने, सार्वजनिक स्थान पर नमाज को लेकर कट्टरवादी हिंदू संगठनों द्वारा बवाल, मस्जिदों- मजारों के सामने हनुमान चालीसा पाठ जैसे अनेक मुस्लिम विरोधी फैसले लिए गए। तब भागवत चुप रहे क्योंकि मजबूत नरेंद्र मोदी संघ के एजेंडे को लागू कर रहे थे। यदि भागवत के उस समय के बयान देखें तो उनमें सरकार के कार्यों की तारीफ मिलेगी, क्योंकि मोदी संघ के सपनों का भारत बना रहे थे।

मोदी के दस साल के कार्यकाल में न सिर्फ मुसलमानों को, ईसाइयों यहां तक कि सिक्खों को भी निशाना बनाया गया, मोदी विरोधी सिक्ख संगठनों को खालिस्तानी और देशद्रोही बताने की कुटिल चालें चली गईं, ये सारे प्रोपगंडा संघ और उसके थिंक टैंक द्वारा ही चलाया गया था इसलिए भागवत के मुंह से एक बार भी धार्मिक भेदभाव की बातें नहीं निकली। मोदी के अल्पमत में आते ही चमत्कार हो गया, यह चमत्कार नहीं है, दरअसल संघ हमेशा से ही सत्ता की चाशनी चाटने वाला रहा है, इसलिए उनके सॉफ़्ट बयानों को मोदी को नसीहत देने के बहाने विपक्ष में मौजूद कुछ सेक्युलर दल और निर्दलीय सांसदों को पक्ष में करने की जमीन तैयार करने के रूप में देखा जाना चाहिए। इससे भी नहीं इनकार किया जा सकता की संघ के स्लीपर सेल इंडिया गठबंधन के दलों में तोडफ़ोड़ करना शुरू कर चुके हों।

पश्चिम बंगाल में हाल ही में रिटायर हुए एक जज ने खुद को गर्व से संघी बताया था। यह केवल एक उदाहरण है। इस तरह का संघी स्लीपर सेल हर सरकार, हर राजनीतिक दल, हर संगठन में बैठा हुआ है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि ऐसा संघी स्लीपर सेल कांग्रेस-सपा और राज्य सरकारों में भी हों। मणिपुर बीते 14 महीनों से जल रहा है इतने लंबे अरसे तक भागवत चुप्पी साधे रहे लेकिन मोदी के अल्पमत में आते ही उन्हें भी मणिपुर की याद आ गई, बयान ध्यान से सुनने पर स्पष्ट हो जाएगा कि उन्होंने मणिपुर हिंसा में मोदी या उनकी अकर्मण्यता पर कोई सवाल नहीं उठाया। उठाते भी कैसे दरअसल मोदी ने एक साल तक वही किया जो संघ चाहता था। संघ के राम माधव दंगों के बीच मणिपुर क्या करने गए थे यदि भागवत इतने ही ईमानदार हैं तो इसका भी जिक्र करते।

संघ की हमेशा से ही यह रणनीति रही है कि जिन राज्यों या इलाकों में हिंदू आबादी अन्य धर्मों के मुकाबले कम हो उन्हें येन केन प्रकारेण हिंदू बहुल बनाया जाए। मणिपुर में भी हिंदू धर्म के मैतेयी जनसंख्या में 40 प्रतिशत हैं जब नगा और कुकी जो मुख्यत: ईसाई धर्म के हैं की जनसंख्या है 60 प्रतिशत। आर्थिक रूप से बेहद मजबूत होने के बावजूद सरकार और प्रशासन में मैतेयी का वर्चस्व बनाने के संघी प्रयास वहां बहुत पहले से जारी हैं। बताते चलें कि मैतेयियों को एससी-ओबीसी का आरक्षण प्राप्त है लेकिन वे पहाडिय़ों पर रहने वाली नगा-कुकी जन जातियों की तरह एसटी का दर्जा हासिल करना चाहते है। इसके लिए एसटी डिमांड कमेटी ऑफ़ मणिपुर नाम का संगठन पिछले दस साल से आंदोलन कर रहा है लेकिन कामयाब नहीं हुआ। लेकिन कुछ समय पहले ही अस्तित्व में आए मैतेई ट्राइब यूनियन नामक संगठन ने मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका डाली और एकल न्यायाधीश की पीठ ने तुरंत ही राज्य सरकार को मैतेयी को एसटी में शामिल करने पर विचार करने का आदेश जारी कर दिया।

आरएसएस के जानकारों के अनुसार संघ किसी घटना के लिए खुद सीधे शामिल नहीं होता बल्कि शैडो संगठन खड़े करके काम करता है, आश्चर्य नहीं कि मैतेई ट्राइब यूनियन भी संघियों का शैडो संगठन हो, इस आशंका को इस बात से बल मिलता है कि हाईकोर्ट ने उसकी याचिका पर आनन फानन इतना बड़ा आदेश दे दिया। क्या हाई कोर्ट के जज को अपने अधिकार क्षेत्र की, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा दिए गए फैसले की और संविधान की पांचवी अनुसूची की जानकारी नहीं थी? ऐसा हो ही नहीं हो सकता, बावजूद इसके इस तरह का आदेश जारी करना यह बताता है कि पश्चिम बंगाल के संघी जज की तरह ही मणिपुर हाईकोर्ट मेें भी संघी मानसिकता वाले जज बैठे हैं।

समझने वाली बात ये भी है कि जब मैतियियों को एससी-ओबीसी के तहत आरक्षण मिल रहा है तो एसटी के आरक्षण का क्या मतलब। मतलब ये है कि एसटी में शामिल होने पर मैतेयियों का भी पहाड़ों और उनके प्राकृतिक संसाधनों पर हक हो जाएगा, वह पहाड़ों पर जमीन खरीद सकेंगे। सब जानते हैं कि मैतेयी आर्थिक रूप से संपन्न समुदाय है, प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा हुआ तो गरीब नगा-कुकी अपने आप हाशिए पर चले जाएंगे। यानी जहां भाजपा मेतैयियों को एसटी का दर्जा दिलाकर मणिपुर के प्राकृतिक संसाधनों का पूंजीपतियों के हित में दोहन करना चाहती हैं वहीं संघ नगा-कुकी संप्रदायों का वर्चस्व घटाकर हिंदू बहुलतावाद को फैलाने में जुटी है। यही कारण है कि भागवत ने मणिपुर जलने की तो बात की लेकिन सरकार को कोई सलाह नहीं दी।

मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जिसने संघ के बड़े मुद्दे बाबरी मस्जिद, राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370, ट्रिपल तलाक आदि को सत्ता में आने के बाद लागू किया। जिस संघ के कार्यकर्ता फटा झोला लटकाए चप्पलें पहने भटका करते थे मोदी सरकार के दस साल के कार्यकाल में वो फाइव स्टार होटलों में ऐश कर रहे हैं। देश के हर जिले में संघ का कार्यालय बन रहा है तो ये सब मोदी की ही देन है।

ऐसे में मोदी संघ के सबसे प्रिय प्रधानमंत्री हैं, संघ कभी भी उनकी आलोचना नहीं करेगा, इसके उलट उनके कमजोर पडऩे पर उनके बचाव में उतर पड़ेगा। भागवत के बयान को इस परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाना जरूरी है कि अभी तक खुद को सांस्कृतिक संगठन और राजनीति से दूर बताने वाले संघ के प्रमुख ने पहली बार किसी पार्टी की हार जीत पर इतनी देर भाषण दिया। जिस भाषण को दुनिया आलोचना की नजर से देख रही है उसे संघ की कार्यशैली के मद्देनजर देखा जाए तो यह भाजपा को पहुंचे डेंट को भरने की कवायद ही थी।
इस चुनाव में हुई मोदी की दुर्गति से उत्साहित होकर संंघ की कार्यकारिणी का सदस्य इंद्रेश कुमार ने कहा कि जिन्होंने राम मंदिर बनवाया उन्हें मंदिर बनवाने का अहंकार हो गया था इसलिए राम ने उन्हें बहुमत नहीं दिया। लेकिन पांसा उलटा पड़ता देख बयान से पलटी मारने में भी देर न लगाते हुए कहा कि जिन्होंने राम की भक्ति का संकल्प लिया आज वो सत्ता में हैं और तीसरी बार मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी है।

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