दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तरुण गर्ग व प्रिंसिपल मंजुला दास को वाइस चांसलर बनाने के नाम पर ठगा
फरीदाबाद (म.मो.) थाना सेक्टर 31 में सत्यवती कॉलेज दिल्ली के प्रोफेसर तरुण कुमार गर्ग ने पानीपत निवासी किसी नरेन्द्र चौधरी के विरुद्ध धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराया है। शिकायत में कहा गया है कि नरेन्द्र ने उन्हें, 2019 में अपनी पार्टी की सरकार आने पर किसी विश्वविद्यालय का वाइसचांसलर बनवाने के नाम पर 37 लाख रुपये ठग लिये। गर्ग के मुताबिक वह कुल 40 लाख दे चुका था लेकिन नरेन्द्र अभी 10 लाख और मांग रहा था। जवाब में गर्ग ने कहा कि कुलपति बनने के बाद वह 10 लाख भी दे देगा।
सरकार बनने के बावजूद बहुत दिन तक टाल-मटोल करने के बाद जब गर्ग को कुछ मिलता नजर न आया तो उसने अपने पैसे वापस मांगने शुरू किये। तीन लाख तो वापिस मिल गये, बकाये के 37 लाख लौटाने से इनकार कर दिया तो प्रो. गर्ग को पुलिस की शरण में आना पड़ा।
‘मज़दूर मोर्चा’ ने पाया कि प्रो. गर्ग पुराने संघी हैं और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के माध्यम से नेतागिरी करते हुए प्रोफेसर हो गये थे। संघ द्वारा मोटी रकमें लेकर बड़ी तैनातियां देने के तरीके से भली-भांति परिचित रहे हैं। यह तो इत्तेफाक है कि उनका बिचोलिया खुद ही सारा माल डकार गया। यह भी गौरतलब है कि गर्ग ने 10 लाख रुपये वीसी पद पर नियुक्ति होने के बाद देने की बात कही थी। समझा जा सकता है कि नियुक्ति के बाद तो खुली लूट गर्ग ने मचानी ही थी।
इसके अलावा ‘मज़दूर मोर्चा’ के पास तीन अन्य ऐसे लोगों की जानकारी है कि जिन्हें मोटी रकमों के एवज में संघ द्वारा उच्च नियुक्ति दिलाये जाने की बात थी। इनमें से एक एमडीयू रोहतक के प्रोफेसर तथा दूसरे एचएयू हिसार के प्रोफेसर रहे हैं, जिन्हें 50-50 लाख रुपये लेकर संघ मुख्यालय नागपुर ले जाकर वहां से वाइसचांसलर पद का नियुक्ति पत्र दिलाने की बात कही गई थी। परन्तु वे दोनो तो बिल्कुल फक्कड़ थे इसलिये बात नहीं बनी। तीसरे सज्जन गुडग़ांव सिविल अस्पताल से सेवा निवृत होने वाले एक अधिकारी थे। जिनसे छह महीने का वेतन संघ के नाम पर सेवा विस्तार के लिये अग्रिम मांगा गया। कुछ सोच-विचार कर अधिकारी ने इन्कार कर दिया।
समाचार लिखते-लिखते जानकार सूत्रों से पता चला है कि सत्यवती कॉलेज की प्रिंसिपल मंजुला दास भी वाइसचांसलर बनने के चक्कर में अच्छी-खासी रकम उसी नरेन्द्र चौधरी को दे चुकी हैं। दरअसल नरेन्द्र की शुरुआती मुलाकात तो प्रिंसिपल से ही थी और इन्हीं के माध्यम से वह प्रो. तरुण गर्ग तक पहुंचा था।
कानूनन रिश्वत लेना व देना दोनों बराबर के जुर्म हैं। इस मामले में उक्त दोनों उच्च शिक्षित एवं पदस्थ लोगों की ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी जो वे इतनी मोटी-मोटी रिश्वतें दे रहे थे। वे तो केवल इस रिश्वत को निवेश करके अपने लिये मोटी लूट कमाई का साधन हथियाने की जुगत में थे, लिहाजा रिश्वत देने वालों के विरुद्ध भी मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिये। पुलिस सूत्रों से पता चला है कि बहादुरगढ़ पुलिस की मदद से आरोपित नरेन्द्र चौधरी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
देशभक्ति, देशहित एवं राष्ट्रवाद के नाम पर ठगीमार ये संघी लोग जब इस तरह से नियुक्तियां बेचेंगे तो नियुक्त होने वाले खुल कर भ्रष्टाचार नहीं करेंगे तो क्या घर से पैसा लुटायेंगे?