संदेहास्पद दावा : एक वर्ष पूर्व गुडिय़ा के रेप व हत्या आरोपी को खोज निकाला’

संदेहास्पद दावा : एक वर्ष पूर्व गुडिय़ा के रेप व हत्या आरोपी को खोज निकाला’
September 13 14:39 2023

नए सीपी, डीजीपी को भी छक्का मारने के प्रयास में स्टम्प आउट किया

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) बीते वर्ष यानी 2022 में राखी के दिन आजाद नगर की 11 वर्षीय गुडिय़ा जो रात को शौच के लिए रेलवे लाइन पर गई थी, की रेप के बाद नृषंस हत्या कर दी गई थी। इसे लेकर मज़दूर मोर्चा व तमाम अन्य मज़दूर संगठनों ने व्यापक प्रदर्शन करते हुए अपराधियों को पकडऩे की मांग की थी।

अब यकायक दिनांक 04 सितंबर को एक तथाकथित बड़े राष्ट्रीय अखबार में पुलिस द्वारा खबर छपवाई गई कि उन्होंने अपराधी को पकड़ लिया है। पुलिसिया कहानी पढऩे में ही बड़ी अजीबो गरीब लगती है, इसमें कहा गया है कि क्राइम ब्रांच अवैध हथियारों के किसी अपराधी से पूछताछ कर रही थी तो उसने इसी धंधे के एक अपराधी का नाम बताया जो एक महिला की हत्या के मामले में भी नीमका जेल में बंद था। पूछताछ के लिए जिला क्राइम पुलिस उसे प्रोडक्शन वारंट पर अपने सेक्टर 30 स्थित सेंटर पर ले आई। पूछताछ तो पुलिस हथियारों की कर रही थी जिस बाबत उसने कुछ नहीं बताया लेकिन एक साल पुराने गुडिय़ा के रेप व हत्या की बात बता दी। इसके बाद पुलिस के मुताबिक वह शौचालय में चला गया जहां उसने अंदर से कुंडी बंद करके वहां लगी टाइल को तोडक़र अपने आप को गंभीर रूप से घायल कर लिया, पुलिस ने दरवाजा तोडक़र उसे बाहर निकाला, बीके अस्पताल ले गए जहां से उसे ट्रामा सेंटर दिल्ली रेफर कर दिया।

पुलिस की इस कहानी में झोल ही झोल हैं, रेप व हत्या का जुर्म कुबूल करने के बाद पुलिस को चाहिए था कि उसे तुरंत प्रेस के सामने पेश करते, शिकायतकर्ता एवं उन प्रदर्शनकारियों के सामने पेश करते जिन्होंने इसके लिए संघर्ष किया था। सच्चाई जानने के लिए जागरूक नागरिक एवं शिकायतकर्ता कुछ आवश्यक सवाल पूछ सकते थे, और कुछ नहीं तो कम से कम घटनास्थल की निशानदेही तो अपने सामने करा ही सकते थे लेकिन पुलिस ने ऐसा न करके उसको शौचालय में बंद होकर घायल होने का मौका दे दिया। और घायल भी ऐसा कि सीधे दिल्ली के ट्रॉमा सेंटर पहुंचा दिया।
जानकारी मिलने पर गुडिय़ा केस को लगातार उठाने वाले, क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा के सत्यवीर सिंह ने पुलिस आयुक्त को दो ई मेल करके अनुरोध किया था कि शिकायतकर्ताओं व उनका सामना तथाकथित अपराधी से करवाया जाए लेकिन सीपी का कोई जवाब उन तक नहीं पहुंचा। इसके अगले ही दिन एसीपी क्राइम अमन यादव ने एक अखबार को बताया कि वे खुद इस मामले की तस्दीक करेंगे कि कहीं उसने डर के मारे तो अपराध स्वीकार नहीं कर लिया।

शौचालय में घायल होने की कहानी भी गले नहीं उतरती, इस संवाददाता को खुद भी कई बार पुलिस थानों व सीआईए के लॉकअप में तथा रोहतक, सोनीपत व नीमका जेलों में रहने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। जहां शौचालय में कुंडी देखने को नहीं मिली। शौचालय में लगे टाइल को बिना किसी औजार के सिर्फ हाथों से नहीं उखाड़ा जा सकता। शौचालयों की दीवार व दरवाजा भी साढ़े पांच फुट से ऊंचे नहीं होते, अपने इसी अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि शौचालय में अपराधी के घायल होने की कहानी पूरी तरह से मनगढ़ंत है।

आए दिन झूठे मुकदमे दर्ज करने वाली पुलिस की अपनी कोई विश्वसनीयता बची नहीं रह गई है। जुर्म कुबुलवाने के लिए पुलिस किस-किस तरह के हथकंडे अपनाती है यह बात भी किसी से छिपी नहीं है। इसका एक जीवंत उदाहरण मज़दूर मोर्चा के 20-26 अगस्त अंक में प्रकाशित किया जा चुका है। इसमें बताया गया है कि सेक्टर 21 में हुई एक हत्या मामले में थाना एनआईटी में मुकदमा दर्ज किया गया था। उस वक्त यहां पर शत्रुजीत कपूर पुलिस कमिश्नर हुआ करते थे, जो आज डीजीपी हरियाणा हैं। पुलिसिया उपलब्धि दिखाने के नाम पर उस वक्त पुलिस ने ऐसे दो बेगुनाह मज़दूरों से पीट पीट कर हत्या करने का जुर्म कुबूल करवा दिया जिनका उस केस से कोई ताल्लुक नहीं था। कत्ल के उस मुकदमे की सुनवाई तत्कालीन सेशन जज दर्शन सिंह कर रहे थे। सुनवाई लगभग पूरी हो चुकी थी और केस फैसले के करीब पहुंच चुका था, तभी इस संवाददाता ने मज़दूर मोर्चा के द्वारा इसका रहस्योद्घाटन कर दिया। तब कहीं जाकर वे निर्दोष मज़दूर दो-तीन साल की जेल काटने के बाद बरी हो पाए थे और किसी पुलिस अधिकारी का उसमें कुछ नहीं बिगड़ा था सारे अफसर आज भी मौज ले रहे हैं, ऐसे में भला कौन जागरूक नागरिक पुलिसिया कहानी को सच मान पाएगा?

इसी तरह सितंबर 2017 गुडग़ांव के रेयान पब्लिक स्कूल के सात वर्षीय छात्र प्रद्युम्र की स्कूल के शौचालय में गले में चाकू घोंप कर हत्या कर दी गई थी। तत्कालीन थाना भोंडसी के एचएचओ कुलदीप सिंह, एसीपी ब्रह्म सिंह पोसवाल और एक अन्य इंस्पेक्टर ने घटना के तीन दिन के भीतर ही स्कूल बस कंडक्टर अशोक को पीट पीट कर उससे कुबूल करवा लिया कि हत्या उसने की थी। अशोक को जेल भी भेज दिया गया था। तत्कालीन सीपी संदीप खीरवार, आईजी लॉ एंड ऑर्डर मो. अकील, सीआईडी चीफ अनिल राव ने भी पुलिस की तफ्तीश पर मुहर लगाते हुए कंडक्टर अशोक को ही हत्यारा बताया था। मृतक प्रद्युम्र के परिजनों को पुलिसिया तफ्तीश पर भरोसा नहीं हुआ और उनकी मांग पर जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। सीबीआई जांच में प्रद्युम्न का हत्यारा उसी स्कूल का छात्र भोलू पकड़ा गया। खास बात यह कि उस केस का अदालत में आज तक ट्रायल शुरू नहीं हो सका है क्योंकि निकम्मी सरकार ने अपने चहेते भ्रष्ट पुलिस वालों के खिलाफ ट्रायल करने की अनुमति ही नहीं दी। निर्दाेष कंडक्टर अशोक को हत्यारा बताने वाले कुलदीप एसीपी प्रमोट हो चुका है जबकि ब्रह्म सेवानिवृत्त हो चुका है बाकी दोषी पुलिस अधिकारी भी मौज काट रहे हैं। जबकि पुलिस की मार से टूट चुका अशोक आज भी खाने कमाने लायक नहीं हो सका है। यह सच्चाई है पुलिसिया कार्यँशैली की और ईमानदार सरकार की नीयत की।

प्रश्न तो खबर छापने वाले तथाकथित बड़े राष्ट्रीय अखबार पर भी बनता है जिसने पुलिस द्वारा दिए गए प्रेस नोट को ज्यों का त्यों बल्कि उन्हीं के पक्ष में बढ़ा चढ़ा कर छाप दिया। पत्रकारिता का तकाज़ा है कि इसे छापने से पहले खुद प़ुलिस वालों से ही पूरी पूछताछ करके सच्चाई की तह में जाने का प्रयास किया जाना चाहिए था जो कि नहीं किया गया। दरअसल, चापलूस पत्रकारों की यह मानसिकता बन चुकी है कि जो पुलिस प्रवक्ता ने कह दिया वह सत्य वचन है। इस मानसिकता को लेकर भी इस संवाददाता का व्यक्तिगत अनुभव काफी कड़वा रहा है। 14 अगस्त 2019 को जब डीसीपी एनआईटी विक्रम कपूर ने आत्महत्या कर ली थी तो इस संवाददाता को भी स्थानीय पुलिस ने चिढ़ वश एफआईआर में लपेट लिया था। उस वक्त पुलिस प्रवक्ता ने जो ऊटपटांग व ऊलजलूल छपवाना चाहा वह तमाम तथाकथित बड़े-बड़े अखबारों ने आंख मींच कर छापा था। किसी पत्रकार ने पुलिसिया बयानों पर सवाल पूछने की हिम्मत नहीं दिखाई थी।

इस काम में अंग्रेेजी के ट्रिब्यून से लेकर टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स तक के पत्रकार भी आंख मींच कर जुटे रहे, और तो और एक महीने बाद सारी सच्चाई सामने आने के बाद भी उन तथाकथित अखबारों ने अपनी मूर्खता एवं चापलूसी के लिए खेद तक प्रकट नहीं किया।

कहानी का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि जिस केस का खुलासा करने का श्रेय क्राइम ब्रांच ले रही है वह तफ्तीश काफी अरसा पहले स्टेट क्राइम को सौंप दी गई थी। ऐसे में जिले की क्राइम ब्रांच को इस बाबत कोई भी कार्रवाई का हक नहीं था। यदि उन्होंने वास्तव मे ही असल अपराधी को खोज लिया था तो उनका फर्ज बनता था कि वे इसकी सूचना स्टेट क्राइम जिसका दफ्तर भी उनके आस-पास ही है को देते।

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