काम हो न हो, होते दिखना चाहिए फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) एफएमडीए द्वारा सेक्टर 22 में हार्डवेयर सोहना रोड पर श्मशान के पास सीवर लाइन के लिए खुदवाए गए गड्ढे में गिर कर नंगला एंक्लेव पार्ट दो निवासी विमल उर्फ बल्लू की मौत हो गई। बृहस्पतिवार देर रात बल्लू बाइक समेत उस गड्ढे में जा गिरा लेकिन पैट्रोलिंग करने वाली मुस्तैद पुलिस ने भी उसे नहीं देखा, शुक्रवार सुबह आने जाने वालों ने शव देखा तो पुलिस को सूचना दी। ऐन सडक़ के किनारे बनाए गए इस गड्ढे से बचने के लिए एफएमडीए की ओर से बैरिकेडिंग तो छोड़ो चेतावनी संकेतक या ग्लोसाइन स्टिकर वाले अवरोधक तक नहीं लगाए गए थे।
गड्ढे में गिरने से बल्लू की मौत पहली नहीं है। 28 दिसंबर 2021 को दिल्ली-वड़ोदरा-मुंबई एक्सप्रेसवे के लिए बनाए जा रहे 12 फीट गहरे गड्ढे में गिरकर सेक्टर 31 निवासी ज्योतिप्रकाश और आलोक गुप्ता की मौत हो गई थी, वहां भी कोई बैरिकेडिंग या संकेतक चिह्न नहीं लगाए गए थे, दोनों के शव रात भर गड्ढे में पड़े रहे थे। इन जैसे न जाने कितने हादसों के बावजूद पुलिस, प्रशासन, नगर निगम और अब एफएमडीए के मोटी खाल वाले अधिकारियोंं की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। पड़े भी क्यों उनका बिगड़ता क्या है? न कोई जेल जाता है न उनकी जेबों से मुआवजे की वसूली होती है फिर वो क्यों किसी की परवाह करें, चाहे जितने लोग कीड़े मकोड़ों की तरह मरते रहें उन्हें क्या फर्क पड़ता है। हां, यदि इस तरह का हादसा होने पर विभाग के मुखिया को जेल भेज दिया जाए तो इस बात की गारंटी है कि जिंदगी में कभी ऐसा हादसा हो नहीं सकता।
ये बेखौफ कमीशनखोर अधिकारी मोटा हिस्सा लेने के बाद यह देखने भी नहीं जाते कि ठेकेदार क्या काला सफेद कर रहा है। अपना कमीशन बढ़ाने के लिए ठेकेदार को पूरी छूट दी जाती है कि वह मानक, नियम, सुरक्षा आदि दरकिनार कर अपनी मर्जी से काम करे। बल्लू की मौत के मामले में भी एफएमडीए के भ्रष्ट- निकम्मे अधिकारियों ने ठेकेदार को मनमानी की छूट दी थी, इसीलिए उसने सुरक्षा के जरा से भी इंतजाम नहीं किए। स्मार्ट तरीके से काम करने का दावा करने वाले एफएमडीए के निकम्मे अधिकारी यदि साइट का दौरा करते तो उन्हें साफ नजर आ जाता कि अंधेरे में कोई भी वाहन चालक इस गड्ढे में गिर सकता है। संभव है कि अधिकारी मौके पर गए भी हों लेकिन ठेकेदार की खुशी के लिए बैरिकेडिंग करने या चेतावनी संकेतक लगाने को नहीं कहा, किसी की जान जाती है तो जाए उनकी बला से, उन्हें तो ठेकेदार ने लहालोट कर दिया है।
पूर्व सीएम खट्टर ने एफएमडीए की स्थापना का खूब ढिंढोरा पीटा था, बताया था कि नई संस्था हर काम बहुत ही व्यवस्थित ढंग से नियमानुसार, समयबद्ध ढंग से करेगी लेकिन उन्होंने इसमें उन भ्रष्ट, बिकाऊ, लूट कमाई में माहिर अधिकारियों को भर दिया जो नगर निगम, हूडा आदि में रह कर लूट करते रहे थे। खट्टर के इन ‘होनहार’ अधिकारियों की करतूत के कारण ही हंसते खेलते बल्लू की मौत हो गई।
हालांकि पुलिस ने बल्लू के परिवार की तहरीर पर ठेकेदार मेसर्स साहबराम कंस्ट्रक्शन और एफएमडीए के अफसरों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज कर लिया है। केस तो दर्ज कर लिया गया है लेकिन पुलिस दोषियों को सजा दिलाएगी, इस पर संशय है। रसूखदार अधिकारियों और ठेकेदार को बचाने का खेल शुरू हो चुका है। एसएचओ मुजेसर दर्पण ने बताया कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत के कारण स्पष्ट नहीं होने के कारण मृतक का विसरा सुरक्षित कर लिया गया है। विसरा रिपोर्ट आने के बाद ही जांच आगे बढ़ेगी।
यह खुला सच है कि बल्लू की मौत जहर खाने से नहीं बल्कि गड्ढे में गिरने से हुई है। सैकड़ों मृतकों की विसरा रिपोर्ट आज तक नहीं आ सकी है तो बल्लू की विसरा जांच वैसे ही होगी। सुधी पाठक जान लें कि दस साल पहले बाटा चौक पर गड्ढे में गिरकर तीन साल के मासूम पवित्र वाधवा की भी जान चली गई थी। इस मामले में तो हाईकोर्ट ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश भी दे रखा है लेकिन पुलिस आज तक दोषी अधिकारियों को नहीं खोज सकी है। समझना मुश्किल नहीं है कि पुलिस इस मामले में भी एफएमडीए के अज्ञात अधिकारी को उसी तरह तलाशेगी जिस तरह पवित्र के गुनहगार को वह आज तक तलाश रही है।