फरीदाबाद (म.मो.) स्थानीय यातायात पुलिस ने 11-17 जनवरी को सडक़ सुरक्षा सप्ताह के रूप में मनाया। इस दौरान तमाम तरह के वाहनों के 1559 चालान करके उनसे 7.54 लाख रुपये बतौर जुर्माना करके जो इतना बड़ा काम शहर की ट्राफिक पुलिस ने किया है उसके लिये ट्रैफिक के डीसीपी नीतीश कुमार अग्रवाल तथा एसीपी विनोद कुमार अपनी पीठ थपथपाते नजर आये।
क्या सडक़ सुरक्षा एवं ट्रैफिक नियंत्रण का काम केवल किसी सप्ताह विशेष अथवा पखवाड़े विशेष के लिये ही निर्धारित होना चाहिये, क्या यह काम 7324 नहीं होना चाहिये? ट्रैफिक पुलिस का इतना भारी-भरकम अमला क्या केवल इस तरह के सप्ताह मनाने भर के लिये पाल रखा है? इस पूरे सप्ताह भर में भी शहर के किसी चौक अथवा सडक़ पर जाम से कहीं कोई राहत नजर नहीं आई। रॉग साइड चलने वाले भी कहीं घटे नजर नहीं आये। अवैध वाहन, ट्रैक्टर ट्रॉले व टैंकर बेखौफ सडक़ों पर दौड़ते नजर आये। रात में तो ये ट्रैक्टर बेहद खतरनाक रूप धारण कर लेते हैं। न इनके हेड लाइट होती है और न ही इनके आगे पीछे कोई रिफ्लेक्टर होते हैं। ड्राइविंग लाइसेंस तथा अन्य दस्तावेजों का तो इनके पास सवाल ही पैदा नहीं होता। फिर भी ये रात-दिन पूरी मस्ती से सडक़ों पर दौड़ते हैं।
बाटा फ्लाइओवर पर शाम को अंधेरा होते ही इसलिये जबरदस्त जाम लग जाता है क्योंकि मथुरा रोड पर ऑटो-रिक्शाओं ने इस कदर कब्जा किया होता है कि कोई वाहन दिल्ली की ओर न बढ़ सके। इसी तरह नीलम फ्लाइओवर से उतरकर बल्लबगढ़ की ओर जाने के लिये इसलिये जाम लगता है कि वहां ऑटो वाले सवारियों का इंतजार करते रहते हैं। यह हालत तो तब है जब इन दोनों ही स्थानों पर एक-एक सब इंस्पेक्टर व अनेकों पुलिस तथा होमगार्ड तैनात रहते हैं। ये सब लोग कहां रहते हैं और क्या करते हैं डीसीपी साहब ही जानते होंगे।
जहां तक सवाल है वाहन चालकों को जागरूक करने का तो वे स्वत: ही पर्याप्त रूप से जागरूक हैं। जागरूक होकर निष्ठापूर्वक काम करने की जरूरत ट्रैफिक पुलिसवालों को है। इतने भारी-भरकम पुलिस अमले ने जितने चालान एक सप्ताह में किये हैं, इतने तो हर रोज नो पार्किंग के ही हो सकते हैं।
बेशक इस तरह के चालान कुछ ही दिन तक हो पायेंगे क्योंकि उसके बाद लोगों को समझ आ जायेगी कि सडक़ें चलने के लिये होती हैं न कि पार्किंग के लिये।