सडक़ मरम्मत के नाम पर निकायों ने बंधक बनाया शहरियों को

सडक़ मरम्मत के नाम पर निकायों ने बंधक बनाया शहरियों को
March 02 03:57 2022

फरीदाबाद (म.मो.) नगर निगम के इंजीनियरों की लूट कमाई का मुख्य स्रोत सडक़ मरम्मत, सीवर निर्माण, स्ट्रीट लाइट व रंग रोगन इत्यादि है। दरअसल ये लोग सडक़ की मरम्मत करना पसंद नहीं करते, पूरी की पूरी सडक़ को खोद कर दोबारा बनाने में विश्वास करते हैं। करें भी क्यों न, क्योंकि मरम्मत में क्या तो नंगा नहायेगा और क्या निचोड़ेगा। असली लूट कमाई तो पूरी सडक़ को खोद कर दोबारा बनाने में ही होती है। वास्तव में सडक़ को केवल कागजों में ही खोदा जाता है क्योंकि हर सडक़ का बेस हमेशा सही सलामत ही होता है। लेकिन यह ये चोर अफसर बेस बनाने के नाम के पैसे भी बजट में जोड़ देते हैं। पहले यह धंधा नगर निगम व ‘हूडा’ के जिम्मे था। लेकिन अब इस लूट कमाई में एफएमडीए तथा स्मार्ट सिटी लिमिटेड कम्पनी को भी हिस्सेदारी दे दी गई है।

शहर भर की अधिकांश सडक़ें टूटते-टूटते इस कदर टूट चुकी हैं कि सडक़ नाम की चीज़ ही गायब हो गई। यदि समय रहते उनकी मरम्मत कर दी जाती तो यह नौबत नहीं आती। लेकिन ऐसा होने पर लूट कमाई कैसे हो पाती?

टूटी सडक़ों में से दो महत्वपूर्ण सडक़ें नव निर्माण के लिये एफएमडीए को सौंपी गई हैं। उनमें से एक बाटा मोड़ से लेकर कचहरी की ओर जाने वाली है तो दूसरी सेक्टर 15 ए व 16 ए की विभाजक सडक़ जो राजमार्ग को बाइपास से जोड़ती है। उन दोनों सडक़ों पर बीते लगभग चार सप्ताह से काम ‘चल रहा’ है। इन सडक़ों को मशीन द्वारा छील कर पुराना लगा हुआ माल उखाड़ कर अगल-बगल में ढेर लगा दिया गया है। दोनों सडक़ों के पूरी तरह से बंद होन के चलते सेक्टर 12 व 15 की विभाजक सडक़ जो राजमार्ग को बाइपास से जोड़ती है, पर यातायात इतना बढ़ चुका है कि इस पर वाहनों का चलना दूभर हो गया है। कोढ़ में खाज का काम करते हुए इस सडक़ पर स्कॉर्ट कम्पनी के माल वाहकों द्वारा सडक़ कब्जाने ने और भी बढ़ा दिया है। थोड़ी-बहुत जो कसर बची रह गई थी उसे पूरा करने के लिये 10-20 फलों की रेहडिय़ों व पान सिगरेट की गुमटियों ने पूरा कर दिया है।

समझ में नहीं आता कि एक साथ दोनों सडक़ों को बंद करके सरकार का नवनिर्मित निकाय एफएमडीए क्या संदेश देना चाहता है? यदि वास्तव में ही इस निकाय की नीयत सडक़ों को ठीक करके यातायात सुचारु करने का इरादा था तो पहले एक सडक़ को पूरा करके तब दूसरी को छेड़ते। वैसे, यदि इनकी नीयत काम करने की हो तो, इन दोनों सडक़ों में से किसी एक को भी पूरा करने में एक सप्ताह से ज्यादा का समय नहीं लगना चाहिये। परन्तु ऐसा करने से शहरवासियों को पता कैसे चलेगा कि सरकारी निकाय काम कर रहा है। जल्दी काम करने से खर्च में घोटाला भी अधिक नहीं किया जा सकता। काम को जितना लम्बा घसीटा जाता है बजट भी उतना ही फैलता जाता है। पिछले करीब चार सप्ताह से इन सडक़ों पर कोई विशेष काम होता भी नज़र नहीं आ रहा।

इतना ही नहीं नागरिकों की मुसीबतों को अधिकतम बढाने की नीयत से, सडक़ों के खोदे गये मलबे को जगह-जगह इस तरह डाला गया है कि लोग दूसरी सडक़ों पर भी न जा सकें। बाटा मोड़ से कचहरी वाली सडक़ के मलबे का ढेर इस तरह से लगाया गया है कि कोई भी वाहन सेक्टर 12 की ओर जाने वाली उस सडक़ पर न चढ़ सके जो सीधे स्कॉर्ट कम्पनी की ओर जाती है। इसी तरह सेक्टर 15 ए की विभाजक रोड के मलबे को भी इस तरह से डाला गया है कि कोई भी वाहन ब्रांच सडक़ों पर न जा सके । इसी उपक्रम में सेक्टर 15, 15 ए 16 ए व 16 के चौराहे को इस तरह से जाम किया गया है कि कोई भी इधर से उधर न जा सके। जाहिर है ऐसा करने से ही तो नागरिकों को इन निकायों द्वारा काम किये जाने का महत्व समझ में आयेगा।

सरकारी विश्वसनीयतारसातल में

सेक्टर 10 व 11 की विभाजक रोड मरम्मत का नारियल तत्कालीन मंत्री विपुल गोयल ने बड़ी धूम-धाम से फोड़ा था। नागरिकों को बरगलाने की नीयत से 100-50 मीटर की सडक़ खोद कर काम शुरू कराने का दिखावा भी किया गया था। दो साल तक कोई काम नहीं हुआ तो मौजूदा विधायक नरेन्द्र गुप्ता व केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर ने फिर नारियल आ फोड़ा। करीब 100 मीटर सडक़ बनने के बाद काम फिर बंद है।

इस सडक़ की एक ‘खूबी’ यह भी है कि बिजली के खम्बे सडक़ में खड़े हैं, यानी रात के अंधेरे में किसी ने इनमें टक्कर मार कर अपना सिर फोडऩा हो तो फोड़ सकता है। जानकार बताते हैं कि ठेकेदार एक टुकड़ा बना कर बिल अधिकारियों को दे देता है। पेमेंट होने के बाद ही आगे काम बढाता है। अर्थ स्पष्ट है कि सरकार की विश्वसनीयता रसातल में जा चुकी है, कोई भी ठेकेदार इस पर भरोसा करने को तैयार नहीं है। इसी लिये काम अधर में लटके रहते हैं और जनता भुगतती रहती है।

एनआईटी में हार्डवेयर चौक के इर्द-गिर्द सडक़ न होकर केवल गढ्ढे ही गड्ढे हैं। यहां से प्याली चौक को जाने वाली सडक़, बीते करीब चार साल से गायब है। स्थानीय लोगों ने बाबा राम केवल के नेतृत्व में प्याली चौक पर महीनों तक धरना भी दिया था। इसके दबाव में कैबिनेट मंत्री मूलचंद ने 23 अप्रैल 20-21 को नारियल फोडक़र सडक़ निर्माण का उद्घाटन किया था। इसके लिये छ: करोड़ रुपये का बजट भी घोषित किया गया था। लेकिन आज वहां पर न तो नारियल है और न ही मंत्री और छ: करोड़ कहां से आये कहां गये किसी को नहीं पता। खड्डों में सडक़ के चलते वाहन बड़ी मुश्किल से रोते-पीटते गुजरते हैं। इन गड्ढों से बच कर निकलने के लिये बड़ी संख्या में वाहन दो नम्बर की मुख्य सडक़ से निकलने को मजबूर होते हैं। इसके चलते पहले से ही भीड़ भरे दो नम्बर में यातायात का दबाव इतना बढ गया है कि यहां हर समय जाम की स्थिति बनी रहती है।

नालायक इंजीनियर

इन नालायक इंजीनियरों की नालायकी का एक और बेहतरीन नमूना हर चौराहे अथवा लाल बत्ती पर देखा जा सकता है। किसी भी यातायात को बाईं ओर जाने के लिये हरी बत्ती का इंतजार न करना पड़े, इसके लिये स्लिप रोड का प्रावधान होना चाहिये। इतनी छोटी सी बात इन नालायकों की समझ में आज तक नहीं आ पाई। कुछ जगह इस तरह का प्रावधान किया भी गया है तो वह इतना अपर्याप्त है कि उसका कोई लाभ नहीं।

इन तमाम टूटी सडक़ों से उडऩे वाली धूल व धुंए से प्रदूषण तो बेइन्तहा बढ़ ही रहा है, वाहनों की टूट-फुट का तो कोई हिसाब ही नहीं। इसके बावजूद भी बेशर्म व ढीठ शासक वर्ग के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। रेंगे भी क्यों, जब जनता इन मुद्दों को लेकर न तो सडक़ों पर उतर रही है और न ही इन राजनेताओं का घेराव कर रही है। दरअसल बेचारी जनता को दूसरे और काम ही बहुत हैं। हिन्दू-मुस्लिम की बहस, मंदिर-मस्जिद के मुद्दे व अंधविश्वासों में जनता को इतना व्यस्त कर दिया गया है कि उसे और कुछ सूझता ही नहीं।

सिर पीट लेने वाली एक बात यह भी है कि बडखल चौक व ओल्ड फरीदाबाद चौक से बाइपास को जोडऩे वाली दोनों सडक़ें बीते कई वर्षों से निर्माणाधीन चल रही है। इस कार्य पर स्मार्ट सिटी लिमिटेड कम्पनी ने जनता का सैंकड़ो-करोड़ रुपया तो डकार ही लिया है, काम पूरा होने तक पता नहीं और कितना धन डकारा जायेगा।

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Mazdoor Morcha
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