सभ्यता और आदिवासी

सभ्यता और आदिवासी
December 20 03:22 2022

थोड़ी देर पहले नेशनल जियोग्राफी चैनल एक प्रोग्राम दिखा रहा था, जिसमें अमेरिका के कुछ लोग कुछ आदिवासियों को जंगल से लाकर वहां शहर की चकाचौंध और रंगीनियाँ दिखा कर उनको प्रभावित करने की कोशिश करते दिख रहे हैं।

इन लोगों के साथ घूमते हुए एक आदिवासी बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स देखता है। “वाह इतने सारे घर…” बोलते हुए वो बड़ा खुश होता है।

फिर वो देखता है कि सडक़ किनारे भी लोग हैं जो भीख मांगते हैं और रेन-बसेरे में रात बिताते हैं।

वो उन कार्यक्रम बनाने वालों से पूछता है कि, “ये सब लोग बाहर क्यूँ पड़े हैं.. जबकि आपके पास इतने सारे घर हैं शहर में?”
आयोजक जवाब देता है-“जो घर आप देख रहे हैं वो इन सबके नहीं हैं। वो दूसरे लोगों के हैं।”

आदिवासी पूछता है, “मगर वो सारे घर तो खाली थे.. उनमे कोई क्यूं नहीं रहता?”

आयोजक बोलता है “वो अमीर लोगों के घर हैं। यहाँ लोगों के पास कई-कई घर होते हैं। लोग पैसा इन्वेस्ट करने के लिए घर खरीद लेते हैं।

आदिवासी कहता है, “ये किस तरह की सभ्यता है तुम्हारी?

किसी के घर खाली पड़े हैं और लोग सडक़ों पर रह रहे हैं…जबकि पूरी उम्र आपको रहने के लिए सिर्फ एक घर ही चाहिए…
आप अपने अतिरिक्त घर अपनी और नस्लों को क्यूँ नहीं दे देते हैं?

ऐसे घरों का क्या करेंगे आप?”

फिर वो आगे बोलता है-“हमारे जंगल में जब कोई नवयुवक शादी करता है तो हम सारे गाँव वाले मिलके उसके लिए घर बनाते हैं…
अपने हाथ से उसका छप्पर बनाते हैं और मिलकर बांधते हैं।

ऐसे हम एक-दूसरे के लिए अपने हाथों से घर बनाते हैं और अपने बच्चों को बसाते हैं।”

इतनी बात सुनकर कार्यक्रम वाले शर्मिंदा हो जाते हैं, और उन्हें समझ आता है कि जिस सभ्यता की डींग मारने के लिए वो इन आदिवासियों को लाए हैं, वह असल में सभ्यता है ही नहीं। इन्होने हमारे सभ्य होने का भ्रम चकनाचूर कर दिया एक सीधे और भोले सवाल से…और समझा दिया कि दरअसल हम लोगों की सभ्यता, सभ्यता है ही नहीं। अपनी ही आने वाली नस्लों का शोषण है बस।
-सिद्धार्थ ताबिश

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Mazdoor Morcha
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