फैज अहमद फैज
सब ताज उछाले जाएँगे सब तख्त गिराए जाएँगे…
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे वो दिन कि जिस का वादा है जो लौह-ए-अजल में लिख्खा है जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ रूई की तरह उड़ जाएँगे हम महकूमों के पाँव-तले जब धरती धड़-धड़ धडक़ेगी और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर जब बिजली कड़-कड़ कडक़ेगी जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से सब बुत उठवाए जाएँगे हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे सब तख्त गिराए जाएँगे बस नाम रहेगा अल्लाह का जो ग़ाएब भी है हाजऱि भी जो मंजऱ भी है नाजिर भी उठेगा अनल-हक़ का नारा जो मैं भी हूँ और तुम भी हो और राज करेगी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा जो मैं भी हूँ और तुम भी हो