करनाल (म.मो.) स्थानीय व्यापारी पुरुषोत्तम बंसल ने सन् 2006 में गांव रायपुर रोड़ा (थाना इन्द्री) स्थित 1000 वर्ग गज़ ज़मीन का सौदा 29 लाख रुपये में किया था। 11 लाख रुपये देकर बंसल ने प्लॉट पर अपने ताले लगा कर कब्जा ले लिया था। करार के मुताबिक विक्रेता को बैंक का आठ-नौ लाख कर्ज चुका कर बंसल के नाम रजिस्ट्री करा कर शेष 18 लाख वसूलने थे। लेकिन इसके विपरीत विक्रेता ने बैंक का कर्ज लौटाने की बजाय गुंडागर्दी से प्लॉट के ताले तोडक़र, दिया हुआ कब्जा वापस ले लिया।
क्रेता बंसल ने स्थानीय अदालत में 2007 में केस डाला और जीत गये। विक्रेता सेशन कोर्ट में गया और हार गया। इस पर कोर्ट के आदेश पर बंसल ने बैंक का पूरा भुगतान करके शेष रकम विक्रेता को अदा कर दी जिसके बदले 2012 में कोर्ट ने बंसल के नाम रजिस्ट्री करा दी। विक्रेता ने इसके विरुद्ध हाई कोर्ट जाकर स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया। करीब साल भर बाद स्थगन आदेश भी हट गया और बंसल यहां भी 2018 में केस जीत गये।
बंसल कब्जा लेने मौके पर गये तो पाया कि वहां पर का$फी भारी-भरकम मशीनें आदि चल रही थीं। विक्रेता ने बंसल के पांव पकड़ कर दो-तीन साल का समय मांगा और तब तक के लिये 40 हजार रुपये किराया देना तय कर लिया और इस बाबत कानूनी दस्तावेज बनाये गये।
2021 में बंसल को पता चला कि सन् 2015 में क्रेता ने इस प्लॉट के आधे भाग यानी कि 500 वर्ग गज की एक गैर कानूनी रजिस्ट्री अपने नाम करा कर उस पर $िफर से बैंक लोन ले लिया। इस धोखा-धड़ी के खिलाफ बंसल ने पुलिस अधिक्षक गंगा राम पूनिया को दरखास्त दी जिसे पूनिया द्वारा आर्थिक अपराधा शाखा में भेज दिया गया। वहां के इंचार्ज ने बंसल से एक लाख रुपये की मांग की तो उन्होंने कहा उनका केस तो पूरी तरह से जेनुअन है तो रिश्वत किस बात की?
आज कल समझने वाली बात तो यही है कि जेनुअन केस करने की भी पुलिस को मोटी फीस चाहिये। न देने पर दोषी पार्टी इससे भी कहीं अधिक रकम देकर अपना उल्लू सीधा करवा लेती है। वही इस मामले में हुआ भी।
आर्थिक अपराध शाखा ने इस मामले को क्रिमिनल केस न मान कर सिविल बता दिया। बंसल ने इसकी शिकायत पुन: एसपी पूनिया से की तो उन्होंने केस को रिव्यू करने के लिये नई-नई भर्ती हुई, 2019 बैच की आईपीएस अधिकारी हिमांद्रि कौशिक, एएसपी इन्द्री को सौंप दिया। करीब 6-7 महीने बंसल के चक्कर कटवाने के बाद इस नवयुवती पुलिस अधिकारी ने भी आर्थिक अपराध शाखा के इन्स्पेक्टर की कार्रवाई को उचित ठहरा दिया।
इसके बाद बंसल ने कार्यकुशलता एवं ईमानदारी का ढोल पीटने वाले गृहमंत्री अनिल विज को दरखास्त लगाई। काम को लटकाने व भटकाने के लिये विज ने जि़ला अधिकारियों की एक कमेटी गठित कर दी, यानी भैंस गई पानी में। अब बंसल इस कमेटी के एक सदस्य डीआरओ (जिला राजस्व अधिकारी) के चक्कर लगा रहे हैं। यानी मामले को तुर्त-फुर्त सुलझा कर निपटाने की बजाय बिज साहब ने और भी उलझन की ओर धकेल दिया है। कायदे से तो गृहमंत्री को एसपी पूनिया से जवाब तलब करना चाहिये था कि दिन के उजाले की तरह सा$फ-सा$फ दिखाई देने वाला धोखा-धड़ी व जालसाज़ी का मामला सिविल केस कैसे बना दिया गया?
अब देखने वाली बात यह है कि एसपी पूनिया अपने महकमे में चल रही इस रिश्वतखोरी को पकड़ पाने के काबिल नहीं हैं अथवा वे खुद इसके संरक्षक एवं हिस्सेदार हैं, इसका फैसला वे खुद ही करें। रही बात नवनियुक्त एएसपी हिमांद्रि कौशिक की तो वे क्या सीख रही है और कैसी अ$फसर बनेंगी, यह भी एक गंभीर प्रश्न है।