फरीदाबाद (म.मो.) उधर राष्ट्रीय राजधानी में मोदी जी महिला सुरक्षा का बखान करने के लिये 15 अगस्त के भाषण की तैयारी कर रहे थे और इधर महज 40 किलोमीटर दूर फरीदाबाद में 12 वर्षीय बच्ची की सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या की जा रही थी। रेलवे लाइन के किनारे बसी इस शहर की आजाद नगर नामक झुग्गी बस्ती में यह जघन्य वारदात 11 अगस्त यानी राखी के अवसर पर रात करीब 8-9 बजे तब हुई जब वह शौच के लिये गई थी।
विदित है कि स्वच्छता अभियान के तहत करीब तीन वर्ष पूर्व इस शहर को ‘खुले में शौच’ से मुक्त घोषित कर दिया गया था। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि मोदी जी इस स्वच्छता अभियान के नाम पर विशेष टैक्स लगा कर अरबों-खरबों रुपये इस देश की जनता से वसूल चुके हैं। हर शहर की तरह यहां पर भी नगर निगम ने करोड़ों रुपये के चल-अचल शौचालय खड़े कर दिये हैं। वह बात अलग है कि इन सब पर ताले लगे हुए हैं।
जब बच्ची शौच से निवृत होकर घर न लौटी तो उसकी बहनों व छोटे भाई को चिन्ता हुई। मां उस दिन अपने भाई को राखी बांधने बहादुरगढ़ गई हुई थी। जाहिर है ऐसे में छोटे बच्चों ने पड़ोसियों की सहायता से इसकी तलाश शुरू की तो उन्हें उसकी जख्मी हालत में लाश मिली। निकट ही स्थित थाना मुजेसर को रात करीब 11 बजे सूचना दी गई। पुलिस ने तुरंत मुकदमा दर्ज करके शव को पोस्टमार्टम हेतु बीके अस्पताल पहुंचाया।
हालात की नजाकत को भापते हुए बिना किसी देरी के यानी भीड़ को एकत्र होने का मौका दिये बिना शव का पोस्टमार्टम करा कर अंतिम क्रियाकर्म भी करा दिया। लेकिन 20-25 हजार की इस बस्ती में आक्रोश तो व्याप्त हो ही चुका था। इसे लेकर बस्ती वालों में जगह-जगह नुक्कड़ मीटिंगें चलने लगी। पुलिस के तमाम प्रयासों एवं आश्वासनों के बावजूद 15 अगस्त सोमवार को बस्ती वालों ने सामुदायिक भवन में एक भारी शोक-सभा का आयोजन किया। इसमें पुलिस की निष्क्रियता, बढ़ते अपराधों तथा सरकार की गरीब विरोधी नीतियों के विरुद्ध वक्ताओं ने जमकर भडास निकाली। इस जनसभा में मंगलवार को जुलूस निकाल कर उपायुक्त कार्यालय पर प्रदर्शन करने का निर्णय लिया।
शासन-प्रशासन किसी भी कीमत पर अपने विरुद्ध इस तरह का प्रदर्शन नहीं होने देना चाहता था। लिहाजा मंगलवार को प्रात: चार बजे ही भारी पुलिस बल ने इस तीन किलोमीटर लम्बी बस्ती को घेर लिया। पूरी बद्तमीजी दिखाते हुए पुलिसवालों ने घर-घर जाकर उनके दरवाजे पीटने शुरू कर दिये। एक-एक आदमी के कपड़े उतरवा कर उसकी पहचान पूछी गई। वह कहां से आया है कब आया है और क्यों आया है आदि-आदि सवाल पूछने लगे। महिलाओं से भी दुर्व्यवहार किया गया। प्रात: शौच को जाते हुए लोगों को भी रोक दिया गया। ड्यूटी वालों को काम पर जाने से भी रोक दिया।
इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग अपने घरों से निकल कर उपायुक्त कार्यालय की ओर निकलने लगे तो उन्हें जगह-जगह रोका जाने लगा। जिस ऑटो में वे सवार होते उसी को रोक लिया जाता। इतना सब होने के बावजूद पुलिस से जूझते हुये हजारों नहीं तो सैकड़ों प्रदर्शनकारी मंजिल तक पहुंच ही गये। उपायुक्त को ज्ञापन देने की रस्म अदायगी भी कर दी जिसका कुछ होना-जाना नहीं है। न जाने ऐसे कितने ज्ञापन आकर रद्दी की टोकरी में चले जाते हैं।
जनता का भारी दबाव बढऩे से पुलिस आयुक्त ने अपराधियों का सुराग देने वाले को पहले 1 लाख का अगले ही दिन दो लाख रुपये का इनाम घोषित कर दिया है।
बच्ची की विधवा मां सात हजार मासिक पर मज़दूरी करती है। गरीबी व भुखमरी के चलते बिहार के आरा से चल कर यह परिवार यहां आया था। कुछ समय पूर्व पति के देहांत पश्चात यह अकेली महिला अपने चार बच्चों का पालन-पोषण करती आ रही थी। वह पास ही की एक फैक्ट्री में सात हजार रुपये मासिक पर काम करती है। सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन साढ़े दस हजार रुपये है। महिला को ईएसआई व भविष्यनिधि जैसी भी कोई सुविधा नहीं है।
महिला की स्थिति को देखते हुये जनसभा में आये लोगों ने अपनी-अपनी क्षमतानुसार चंदा करके उसे करीब 12 हजार रुपये एकत्र करके दे दिये थे। अगले दिन सूचना पाकर क्षेत्र के विधायक एवं कैबिनेट मंत्री मूलचंद शर्मा भी संवेदना प्रकट करने महिला के पास पहुंचे। उन्होंने तात्कालीक सहायता के तौर पर 1 लाख रुपया देने की घोषणा तो कर डाली परन्तु खबर लिखे जाने तक महिला को कुछ नहीं मिला था। हां, पुलिस वाले जरूर मानवता के नाम पर महिला के घर निरंतर खाना भिजवा रहे हैं।
गरीबों की इस बस्ती में लुम्पन धंधेबाज भी धंधा चलाते हैं। समाज के किसी भी वर्ग की भांति इस वर्ग में भी लुम्पन धंधेबाज बसते हैं। अपने निजी लाभ के लिये ये लोग जुआ, सट्टा, चरस गांजा व शराब आदि के अवैध धंधे करते हैं। यह सम्भव नहीं है कि पुलिस को इन धंधेबाजों की पहचान न हो। पुलिस की मिलीभगत से ही ऐसे धंधे चला करते हैं। दिखने में ये बहुत छोटे अपराध लगते हैं, लेकिन बड़े अपराधों की जड़ें हमेशा इन्हीं के भीतर से खुराक पाती हैं। यदि मुजेसर पुलिस ने इन धंधेबाजों की नकेल कस कर रखी होती तो शायद बड़े गुनाह यहां न पनपते।
दिनांक 28 नवम्बर -4 दिसम्बर 2021 के अंक में ‘मज़दूर मोर्चा’ ने ‘पॉक्सो पीडि़ता का फुटबाल बना दिया थाना मुजेसर और महिला थाना ने’, शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया गया था। इसमें बताया गया था कि आठवीं जमात की एक नाबालिग छात्रा के साथ बलात्कार के प्रयास की शिकायत लेकर इसकी मां थाना मुजेसर गई थी। उसे घंटों वहां बिठाये रखने के बाद सेक्टर 21 स्थित महिला थाने की ओर धकेल दिया गया। वहां से उसे पुन: मुजेसर थाना की ओर धक्का दे दिया गया था। थक-हार कर मां-बेटी रात 12 बजे घर आकर सो गये। पॉक्सो एक्ट के मुताबिक, सूचना मिलने के बाद पुलिस अधिकारी के लिये केस दर्ज करना अनिवार्य हो जाता है। इसके लिये उसे किसी शिकायतकर्ता की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि नाबालिगों से विधिवत शिकायत की अपेक्षा नहीं की जाती। लेकिन पुलिस ने उस मामले में कोई केस दर्ज करने की जहमत नहीं उठाई। इसके परिणामस्वरूप जहां एक ओर आरोपी के हौंसले बढ़े वहीं दूसरी ओर पीडि़त पक्ष का पुलिस पर से भरोसा उठ गया।
पुलिस तो पुलिस, न्यायपालिका इससे भी महान निकली। ‘मज़दूर मोर्चा’ के एक वकील पाठक ने बाकायदा लिखित में यह मामला पॉक्सो अदालत की मैजिस्ट्रेट जासमिन शर्मा को भेजा। मैजिस्ट्रेट महोदया ने इस बाबत पुलिस से कुछ पूछ-ताछ करने की बजाय वकील साहब को ही एक के बाद दूसरी तारीखों पर बुलाने का सिलसिला शुरू कर दिया। जहां आपराधिक न्याय व्यवस्था का ऐसा हाल हो तो वहां जघन्य अपराधों को बढने से कौन रोक सकता है?