माननीय द्रोपदी मुर्मू जी राष्ट्रपति महोदया नई दिल्ली विषय : सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की सजा रद्द करने बाबत। यह ज्ञापन पत्र आपको सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर जी पर लगाए झूठे आरोपों और उन्हें दी गई सजा के विरोध में तथा आपके हस्तक्षेप के आग्रह के साथ लिखा जा रहा है। हम इस प्रकरण के तथ्य आपके समक्ष रखना चाहते हैं।
वीकेसक्सेना जो पूर्व में गुजरात के जे.के. सीमेंट और अडानी की संयुक्त परियोजना धोलेरा परियोजना के पदाधिकारी 1990 से बने थे, उन्होंने जबसे 1991 से नर्मदा घाटी के हजारों आदिवासी, किसान, दलित, मजदूर, मछुआरे, व्यापारी सभी विस्थापितों के अधिकार के लिए कानूनी और अहिंसक संघर्ष किया, उसकी खिलाफत शुरू की। गुजरात की कंपनियों को पानी देने के विरोध में नहीं, विस्थापितों के संपूर्ण पुनर्वास और उसके बिना किसी का घर, खेत डूबने न देने के कानून, नीति तथा न्यायालयीन फैसलों के पालन के पक्ष में आंदोलन चला था।
तीन राज्यों के 244 गांव और एक नगर के हजारों करीबन 50 हजार से अधिक पुनर्वास के लिए ही यह जरूरी था। 38 साल सत्याग्रह-संघर्ष से ही लोगों ने अपने अधिकार प्राप्त किए हैं। सर्वोच्च अदालत ने 4 साल धरातल की सच्चाई जानकर, बांध का कार्य रोका तो भी आंदोलन को दोषी ठहराकर सक्सेना जी ने आंदोलन और मेधा पाटकर जी पर काफी आरोप लगाए ।
“मेधा पाटकर को फांसी दो!” “होलिका में मेधा पाटकर का दहन करो !” इस प्रकार के जाहिर वक्तव्य मीडिया में छपवाए। नर्मदा आंदोलन पर ‘विदेशी धन से चलने वाली संस्था’ का आरोप लगाकर सर्वोच्च अदालत में सक्सेना जी ने दाखिल की याचिका ‘पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन नहीं, यह प्राइवेट इंटरेस्ट लिटिगेशन’ थी। यह कहकर 5,000 रुपए का दंड देकर अदालत के फैसले से जुलाई 2007 में खारिज की गई।
इससे भी आगे बढक़र साबरमती आश्रम में दंगों के बाद शांति बैठक में निमंत्रण मिलने पर मेधा पाटकर पहुंची तो वहां उन पर हुए शारीरिक हमले में वी के सक्सेना और आयोजक भी शामिल थे, जिसके दसों गवाह हैं। इसलिए इनके खिलाफ गुजरात शासन ने अन्य तीन राजनीतिक व्यक्तियों के साथ इन्हें भी आरोपी बनाया है और अपराधी प्रकरण दर्ज किया, जिसमें 2002 से आज तक फैसला बाकी है। लेफ्टिनेंट गवर्नर होने से उन्हें किसी अपराधी प्रकरण से छुटकारा नहीं मिल सकता है, यह निर्णय साकेत कोर्ट, दिल्ली और अहमदाबाद के मेट्रो मजिस्ट्रेट दोनों ने संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर किया है। अहमदाबाद हाई कोर्ट में प्रकरण लंबित है।
सक्सेना जी ने मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन पर लाल भाई ग्रुप कंपनी के नाम फर्जी चेक के मामले में, धन्यवाद का पत्र और रसीद लेकर इंडियन एक्सप्रेस में विज्ञापन देकर हवाला व्यवहार का झूठा आरोप लगाया था। उस मामले में मेधा पाटकर जी की ओर से बदनामी का प्रकरण 2000 से आज तक साकेत कोर्ट, दिल्ली में दर्ज है लेकिन उसमें भी आज तक फैसला बाकी है लेकिन उस विज्ञापन के बाद की कोई ईमेल को मेधा पाटकर ने भेजी प्रेस नोट कहकर जो सक्सेना जी की बदनामी का अपराधी प्रकरण 2001 में दर्ज किया, उसी में 24 मई 2023 को मेधा पाटकर जी को जे एम एम, साकेत द्वारा अपराधी घोषित किया जाकर अब सजा दी गई है।
प्रत्यक्ष में मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन आदिवासी, किसान, मजदूर आदि सभी अन्यायग्रस्तों के विस्थापितों के साथ संघर्ष और निर्माण के कार्य में सक्रिय रहा है। विकास की अवधारणा विनाश, विषमतावादी नही, समता, न्याय और निरंतरता के मूल्य मानकर हो ताकि ‘त्याग’ के नाम पर प्रकृति निर्भर और श्रमिक परिवारों को अत्याचार भुगतना न पड़े, यही उनकी मान्यता रही है। आज भारत और दुनिया जो जलवायु परिवर्तन भुगत रही है और देश में वर्षों से विस्थापित आज तक पुनर्वसित नहीं है, तो विकास संबंधी सवाल उठाना, संवाद करना क्या गलत है?
अहिंसा और सत्य के आधार पर चलते नर्मदा घाटी के कार्य को विकास विरोधी मानना क्या सही है ? उन पर झूठे आरोप लगाकर स्वयं को खादी ग्रामोद्योग निगम के अध्यक्ष बनने के लिए सक्सेना जी ने अपनी जिंदगी की बड़ी हासिली, आंदोलन और मेधा पाटकर जी को बदनाम करने की एक मुलाकात में व्यक्त की और फिर उन्हें आपके द्वारा लेफ्टिनेंट गवर्नर पद पर नियुक्ति दी गई। इन्होने झूठे आरोपों के तहत मेधा पाटकर जी को सजा दिलाने का कार्य किया है। 38 साल नर्मदा घाटी में ही नही, श्रमिक, किसान, मजदूर, शहरी गरीब, जल-जंगल-जमीन पर जीने वाले आदिवासियों के साथ कार्य किया है। आज भी नर्मदा घाटी में हजारों का पुनर्वास बाकी होते हुए आंदोलन जारी है और जायज है। इस परिपेक्ष में उन्हें जेल भेजना, सजा भुगतने के लिए सत्ताबल इस्तेमाल करना, जनतंत्र, संविधान के खिलाफ और गैरकानूनी, अन्यायपूर्ण कार्यवाही है। आप त्वरित हस्तक्षेप के द्वारा सजा रद्द करें, यही आग्रह है!