फरीदाबाद (म.मो.) विदित है कि बीके अस्पताल में विभिन्न कामों जैसे कि सफाई, इलेक्ट्रीशियन, पलम्बर, कम्प्यूटर ऑपरेटर तथा सिक्यूरिटी आदि के लिये 100 से भी अधिक कर्मचारी एक ठेकेदार द्वारा सप्लाई किये जाते हैं। इसी कम्पनी द्वारा किरण, अजीत व देवेन्द्र भी कभी सप्लाई किये गये थे। इन कर्मचारियों का बाकायदा एक रोस्टर हर तीसरे महीने अस्पताल द्वारा बनाया जाकर सरकारी खाजाने से इनका वेतन निकाला जाता है। इस मामले में हुए एक बहुत बड़े घोटाले का पर्दाफाश ‘मज़दूर मोर्चा’ ने 13-19 जून, 2021 अंक में किया था। इसे लेकर बैठाई गई जांच अभी तक ठंडे बस्ते में पड़ी है।
उस बड़े घोटाले की चौधरन किरण रही है। कभी खुद ठेका कर्मचारी के तौर पर इस अस्पताल में आई किरण अब यहां अपने आप को अपने साथी कर्मचारियों की न केवल सुपरवाइजर बताती है बल्कि उनकी नेता होने का भी दावा करती है। सितम्बर 2022 तथा जनवरी 2023 में बने रोस्टरों में इस किरण तथा इसके दोनों सहयोगियों अजीत व देवेन्द्र के नाम नहीं हैं। नाम नहीं है तो ये अस्पताल केेेेेे किसी भी खाते में नहीं होने के चलते वेतन भी नहीं पा सकते। ऐसे में फिर इन तीनों की तिकड़ी अस्पताल में किस हैसियत से चौधरी बनी घूमती है? किस हैसियत से अपने साथी कर्मचारियों पर रौब गांठते हैं?
प्रसूति विभाग तो मानो पूर्णतया किरण की निजी जागीर हो गया है। इस वार्ड में तमाम तैनातियां किरण के आदेश पर ही होती हैं। विदित है कि सबसे अधिक लूट कमाई वाला यह प्रसूति वार्ड ही है। किरण यहां पर उन्हीं लोगों को तैनात करती हैं जो उसे अधिकतम कमाई करके दे। अपनी चौधर को बरकरार रखने तथा पूरे स्टाफ पर अपना रुतबा बनाये रखने के लिये किरण को सदैव पीएमओ डॉ. सविता के आसपास मंडराते देखा जा सकता है। जब भी कभी डॉ. सविता अस्पताल में घूमती हैं तो किरण उनके साथ ठीक ऐसे चलती है जैसे कि वह उनकी परसनल सेक्रेट्री हो। किरण के इस मुकाम तक पहुंचने में पूर्व सिविल सर्जन गुलशन अरोड़ा का बहुत बड़ा हाथ रहा है। गुलशन अरोड़ा का उस पर मेहरबान होना तो खूब अच्छी तरह समझ आता है, परन्तु डॉ. सविता के साथ उसका चिपके रहना समझ से बाहर है। उसके इस तरह चिपके रहने से डॉ. सविता को मुफ्त की बदनामी के अलावा कुछ भी मिलने वाला नहीं।