हरियाणा सरकार के 93 विभागों में 1 लाख 82 हजार 497 पद रिक्त पड़े हैं। चंडीगढ (मज़दूर मोर्चा ब्यूरो) हरियाणा सरकार की अधिकृत वेवसाइट पर डाली गई सूचना के अनुसार सरकार के कुल 93 विभागों में 4 लाख 45 हजार 346 स्वीकृत पद हैं। इनमें से 2 लाख 62 हजार 849 पद भरे हुए हैं तथा शेष 1 लाख 82 हजार 497 पद बीते कई वर्षों से रिक्त पड़े हैं। विदित है कि किसी भी सरकार में पदों का सर्जन रोजगार उपलब्ध कराने के लिये नहीं किया जाता बल्कि सरकारी मशीनरी को सुचारू ढंग से चलाये रखने के लिये पद सर्जित किये जाते हैं। ये तमाम पद सरकार रूपी मशीनरी के कल पूर्जों के समान होते हैं। जिस मशीन के आधे पूर्जे ही गायब हों तो वह मशीन ऐसे ही चलती है जैसे हरियाणा सरकार चल रही है।
‘मज़दूर मोर्चा’ बारी-बारी से इन तमाम विभागों का विषलेशन करते हुए यह बताने का प्रयास करेगा कि इन रिक्तियों से जनता पर क्या दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। सबसे पहले लेते हैं शिक्षा विभाग। किसी भी देश की ताकत उसमें रहने वाले लोगों की बौद्धिक क्षमता एवं तकनीकी ज्ञान पर निर्भर करती है। जिस देश के लोग अनपढ़-गंवार एवं मूर्ख होंगे उस देश का बेड़ा गर्क होना तय है। इससे बचने के लिये शिक्षा का होना अनिवार्य है।
हरियाणा में प्राइमरी शिक्षा के 90 हजार पद स्वीकृत हैं। इनमें से 38 हजार पद खाली पड़े हैं। सेकेंडरी शिक्षा के 63 हजार स्वीकृत पदों में से 25 हजार खाली पड़े हैं। उच्च शिक्षा यानी कि कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी के 11 हजार स्वीकृत पदों में से 6 हजार पद खाली पड़े हैं। कुल मिलाकर शिक्षा विभाग में अध्यापकों के 1 लाख 64 हजार पदों में से 69 हजार पद खाली पड़े हैं। समझना कठिन नहीं है जहां पढ़ाने को पर्याप्त शिक्षक ही नहीं होंगे वहां का भविष्य क्या होगा?
हरियाणा के स्वास्थ्य विभाग में स्वीकृत पदों की कुल संख्या 22 हजार है। इनमें से 8 हजार पद खाली पड़े हैं। गौरतलब है कि ये पद भी बीसियों वर्ष पूर्व स्वीकृत किये गये थे। उसके बाद से आबादी बढऩे के चलते स्वीकृत पदों की संख्या बढक़र कम से कम दो गुणा हो जानी चाहिये थी। लेकिन दुर्भाग्य तो यह है कि पुराने स्वीकृत पद भी पूरे नहीं भरे जा रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही ईएसआई स्वास्थ्य सेवाओं में कुल 2500 स्वीकृत पद हैं जिनमें से 900 पद खाली पड़े हैं। इससे भी बड़ा दुर्भाग्य तो यह है कि ईएसआई नियमावली के अनुसार स्वीकृत पदों की संख्या ही कम से कम 15000 होनी चाहिये। ईएसआई मैनुअल (किताब) में बड़ा स्पष्ट लिखा है कि 2000 बीमाकृत मज़दूरों पर एक डॉक्टर, एक र्फार्मासिस्ट तथा पांच अन्य पैरा मेडिकल के अलावा आवश्यकता अनुसार चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी होने चाहियें। विदित है कि आज के दिन हरियाणा में करीब 29 लाख मज़दूरों से ईएसआई के नाम पर उनके वेतन का चार प्रतिशत वसूला जाता है।
रोहतक मेडिकल कॉलेज की स्थापना 1963 में हो चुकी थी। राज्य का सबसे पुराना मेडिकल कॉलेज अस्पताल होने के बावजूद भी यहां की चिकित्सा व्यवस्था के साथ-साथ पढ़ाई की व्यवस्था भी पूरी तरह से चरमाराई हुई है। यहां के फेकल्टी में 200 पद रिक्त हैं तथा इतने ही पद सीनियर रेजिडेंट्स के भी रिक्त पड़े हैं। इन पदों को रिक्त रख कर राज्य सरकार करीब वे 66 करोड़ रुपये बचा रही है जो उन्हें बतौर वेतन देने पड़ते। इसी तरह यहां पर नर्सों व अन्य स्टा$फ के भी 1000 से भी अधिक पद खाली पड़े हैं। इसके द्वारा भी सरकार को सीधे-सीधे 60 करोड़ की बचत हो रही है।
उक्त स्थिति तो राज्य के सबसे पुराने एवं प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज, जो अब यूनिवर्सिटी भी बन चुका है, की है। बाकी बचे खानपुर, करनाल व मेवात तथा छांयसा स्थित मेडिकल कॉलेजों की हालत तो और भी दयनीय है। जिस ढंग से ये चल रहे हैं उसे चलना नहीं रेंगना कहा जाता है।
किसी भी कल्याणकारी राज्य के दो ही मुख्य दायित्व होते हैं, शिक्षा व चिकित्सा। इन दोनों ही दायित्वों का निर्वहन करने में भाजपा सरकार पूरी तरह से विफल है। इन दोनों ही विभागों को सही एवं सुचारू ढंग से चला कर जनता को आवश्यक सेवायें उपलब्ध कराने की अपेक्षा सर्वशिक्षा अभियान तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसे नाटक चला रखे हैं। इन नाटकों के माध्यम से जनता के धन को बेदर्दी से लुटा जा रहा है।
संदर्भवश हरियाणा सरकार जनता से वसूले गये भारी-भरकम करों के अलावा कर्जा लेने के सभी रिकॉर्ड भी तोड़ चुकी है। पहली नवम्बर 1966 को हरियाणा पर कुल 2 करोड़ का कर्ज था। 31 मार्च 2014 तक यह कर्ज बढ़ कर 89 करोड़ हो गया था। लेकिन संघ प्रचारक से मुख्यमंत्री बने मनोहर लाल खट्टर ने 31 मार्च 20 22 तक 2 लाख 43 हजार करोड़ का कर्ज हरियाणा पर चढा दिया। अब सवाल पैदा होता है कि इस दौरान खट्टर सरकार ने जब नया कुछ बनाया नहींं और वेतन देने से बचने के लिये बड़ी संख्या में पदों को रिक्त रखा जा रहा है तो यह सारा पैसा जा कहां रहा है? जाहिर है कि सारा पैसा $फर्जीवाड़े करके डकारा जा रहा है।