फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा गया एचएसआईआईडीसी का संपदा अधिकारी विकास चौधरी ऊपर तक मोटी रकम पहुंचाने के कारण ही इस पद पर लंबे समय से बना हुआ था। यही कारण है कि भ्रष्टाचार के मामलों मेें पहले भी दो बार विजिलेंस टीम द्वारा पकड़े जाने के बावजूद उसे संपदा अधिकारी जैसे मलाईदार पद पर नियुक्ति दी गई। फर्जीवाड़ा करने का इसका इतिहास तो पढ़ाई के दौरान ही शुरू हो गया था। 1993 की इसकी स्नातक डिग्री में इसका नाम जगदीश एल रंजन था और बारह साल बाद की इसकी पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री में नाम विकास चौधरी हो गया।
एचएसआईआईडीसी मेें इसने नियमों के विपरीत जाकर प्लॉट आवंटन में हेराफेरी कर करोड़ों रुपये कमाए। आरएंडआर पॉलिसी के तहत एक व्यक्ति को केवल एक ही प्लॉट अलॉट किया जा सकता है लेकिन विकास चौधरी ने गांव चंदावली के हरि सिंह को जोन नंबर चार में प्लाट नंबर 270 और जोन नंबर छह में प्लॉट नंबर 583 आवंटित कर दिया। यही नहीं विकास चौधरी प्लॉटों पर कब्जा करवा कर खाली करवाने के नाम पर मालिकों से वसूली भी करता है। सेक्टर 68 ए में एक प्लॉट पर आजाद टोंगर बलराम और राकेश टोंगर ने कब्जा कर रखा था।
विकास ने मालिक से कब्जा खत्म करवाने के लिए चार लाख रुपये वसूले। महज 1.90 लाख रुपये दिए जाने पर टोंगर ने बाकी रकम मांगी, नहीं मिलने पर फिर से कब्जा कर लिया। इसके बाद मालिक ने ले दे कर दूसरा प्लॉट अलॉट करा लिया। आरएंडआर पॉलिसी के तहत एन्हेंसमेंट राशि वसूलने में भी विकास डेढ़ करोड़ रुपये की रिश्वत खा गया। जनवरी 2017 मेें मुख्यालय से आरएंडआर और इंडस्ट्री प्लॉटों पर 3507 रुपये प्रति वर्ग मीटर एन्हेंसमेंट शुल्क वसूलने का आदेश जारी हुआ। गांव वालों से मिलीभगत कर उसने नोटिस नहींं जारी किए। कुछ गुर्गों से मिलकर गांव वालों से सौदा किया और जो नब्बे करोड़ रुपये एन्हेंसमेंट राशि के एचएसआईआईडीसी को आने थे उसे रोक दिया गया।
फरवरी की बजाय अक्तूबर 2017 में गांव वालों को नोटिस जारी किया और पॉलिसी के खिलाफ दो माह की ब्याज छूट भी खुद ही दे दी। इस मामले में उसने विभाग को नौ करोड़ रुपये राजस्व की हानि पहुंचाई जबकि खुद डेढ़ करोड़ रुपये डकारे। इतने भ्रष्ट कारनामे खुलने के बावजूद विकास चौधरी का इस पद पर बैठाया जाना बताता है कि वह अपनी कमाई का एक हिस्सा ऊपर तक तथा स्थानीय विधायकों और मंत्रियों आदि को पहुंचा कर ही इस पद पर बार बार तैनात होता रहा।