फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) 22 लाख से अधिक आबादी वाले जिले में नागरिकों के लिए लचर स्वास्थ्य व्यवस्था से दुखी समाजसेवी बाबा रामकेवल अनशनकारी और सेवा वाहन फरीदाबाद के अध्यक्ष सतीश चोपड़ा ने सोमवार से रेफर मुक्त फरीदाबाद अभियान शुरू किया। इसका आरंभ उन्होंने अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज छांयसा के सामने दो दिवसीय सांकेतिक धरने से किया। इस दौरान सरकार से मांग की गई कि मेडिकल कॉलेज और सरकारी अस्पतालों की चिकित्सा सुविधाएं दुरुस्त करा सभी को रेफर मुक्त बनाया जाए। अच्छी बात ये है कि पहली बार जनता को इसकी जरूरत महसूस हुई। बीते चार साल से अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज चलाए जाने का ड्रामा चल रहा है लेकिन सरकार को तो इसे चलाना है नहीं, फीस के नाम पर बच्चों से हर साल बीस-तीस करोड़ झटकने हैं लेकिन उनकी पढ़ाई के लिए कुछ करना नहीं है। जहां मरीजों के उपचार की सुविधाएं ही न हो तो वहां के छात्र क्या डॉक्टरी सीखेंगे, जाहिर है ऐसे में यहां पढऩे वालों के पास डिग्री तो होगी लेकिन उपचार करना उनके बस का नहीं होगा।
प्रदर्शन कर रहे अनशनकारी बाबा रामकेवल का कहना था कि जब इस मेडिकल कॉलेज का प्रबंधन एक व्यापारी के हाथ में था तब यहां ओपीडी भी चलती थी और मरीज भी भर्ती होते थे। मरीजों को यहां लाने ले जाने के लिए पलवल तक से बस की सुविधा उपलब्ध थी। लेकिन जबसे भाजपा सरकार ने हथियाया तब से यहां की हालत बद से बदतर होती गई। खट्टर ने इसका नाम बदल कर अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज करते हुए यहां सारी सुविधाएं और छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाने का दावा किया था। जब से अस्पताल सरकार के अधीन हुआ है कोई भी मेडिकल सुविधा नहीं रह गई है। पर्याप्त इलाज की सुविधा न होने के कारण नाम मात्र ही मरीज आते हैं और जो आते हैं उन्हें रेफर कर दिया जाता है।
ऑपरेशन थियेटर, आईसीयू, प्रोफेसर, डॉक्टर आदि आधारभूत आवश्यकताएं ही पूरी नहीं हैं। ऐसे में यह मेडिकल कॉलेज रेफरल सेंटर से ज्यादा कुछ नहीं है। तकलीफ तो तब होती है कि जब यहां से मरीजों को बीके रेफर किया जाता है और वहां भी उन्हें इलाज नहीं मिलता और दिल्ली रेफर कर दिया जाता है। बाबा रामकेवल ने आरोप लगाया कि सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को तबाह करने पर तुली हुई है। पहले सरकारी अस्पताल में मरीजों के लिए 176 प्रकार की दवाएं आती थीं, सरकार ने इसे घटा कर 138 कर दिया है, यानी आम जनता मुफ्त दवाएं पाने के हक से वंचित की जा रही है।
मेडिकल कॉलेज की ऐसी तैसी तो होनी ही थी क्योंकि पूर्व सीएम खट्टर ने अपनी ही तरह निकम्मे डॉ. गौतम गोला को यहां का अतिरिक्त चार्ज सौंपा था। डॉ. गोला ने निदेशक पद पर रहते हुए इस अस्पताल को खंडहर में तब्दील कर दिया। जब यहां ओपीडी ही चालू नहीं हो पाई तो आईपीडी कहां से होती। ओपीडी में भी भूले भटके इक्का दुक्का मरीज आते तो मरहम-पट्टी इंजेक्शन आदि न होने के कारण उन्हें भी रेफर कर दिया जाता। इन सब बातों का तो छोडि़ए जहां पर आपातकालीन सेवा और डिलीवरी तक की सुविधा उपलब्ध न हो तो वो काहे का मेडिकल कॉलेज है।
मरीजों के न आने के कारण करोड़ों रुपयों की दवाएं एक्सपायर हो गईं। डॉ. गोला की इतनी “मेहनत” का नतीजा ये हुआ कि नेशनल मेडिकल काउंसिल की टीम दो बार यहां का निरीक्षण करने आई और दोनों बार मान्यता के लायक नहीं समझा। लेकिन खट्टर ने डबल इंजन सरकार होने का फायदा उठाते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से दबाव डलवा कर इस आश्वासन पर कि सब कुछ सही कर लेंगे, हर बार अस्थायी मान्यता हासिल कर ली। इसके बावजूद डॉ. गोला कुछ नहीं कर सके तो उन्हें हटा कर डॉ. बृजमोहन वशिष्ठ को निदेशक बनाया गया।
डॉ. वशिष्ठ को कम समय मिला लेकिन उन्होंने ओपीडी चलाए जाने के प्रयास शुरू किए। वो भी कुछ ज्यादा नहीं कर पा रहे क्योंकि सरकार ने उन्हें किसी तरह का अधिकार नहीं दिए है, किसी की तैनाती करनी हो या कोई सामान खरीदना हो सब कुछ चंडीगढ़ में कुंडली मारे बैठे अधिकारियों के हाथ में है, वो यहां के लिए न तो कुछ कर रहे हैं और न ही डॉ. वशिष्ठ को करने दे रहे हैं। एनएमसी टीम तीसरी बार निरीक्षण करने के लिए आने वाली है, हालात कमोबेश पहले जैसे ही हैं ऐसे में बहुत मुमकिन है कि टीम इस मेडिकल कॉलेज को फिर मान्यता लायक नहीं समझे। दो महीने के बाद यदि केंद्र में मोदी की सत्ता न रही, जिसकी प्रबल संभावनाएं हैं, तो फिर इस मेडिकल कॉलेज को मान्यता कौन दिलाएगा, यहां पढऩे वाले छात्र तो ठगे गए, उनका क्या होगा।
संस्थान की दुर्दशा के लिए तो यहां के स्थानीय सांसद, विधायक, मंत्री भी जिम्मेदार हैं, केंद्रीय राज्यमंत्री किशन पाल गूजर हों या हरियाणा के मंत्री मूलचंद शर्मा, नए नए स्वास्थ्य केंद्रों का उद्घाटन करने तो पहुंच जाते हैं लेकिन इन अस्पतालों में मरीजों को इलाज भी मिल रहा है या नहीं इसकी सुधि तक नहीं लेते। केंद्रीय मंत्री किशनपाल गूजर को बीते चार साल में एक बार भी इस मेडिकल कॉलेज की याद नहीं आई, यहां मरीजों को कैसा इलाज मिल रहा है, छात्रों को क्या सुविधाएं मिल रही हैं, स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं या नही, उन्होंने देखना समझना जरूरी नहीं समझा।
जब मेडिकल कॉलेज में झांका ही नहीं तो यहां की समस्याओं को समाधान क्या कराते। स्थानीय विधायक ने भी मेडिकल कॉलेज चलवाने में कोई दिलचस्पी नहीं ली, अगर मेडिकल कॉलेज चलता तो स्थानीय जनता को बहुत लाभ होता लेकिन इतना कौन सोचे। ऐसा नहीं है कि उन्हें मेडिकल कॉलेज की दुर्दशा नजर नहीं आती। आती तो है लेकिन सत्ता की मलाई चाट रहे ये नेता, विधायक, मंत्री सरकार से सवाल करना ही नहीं चाहते। अब समय है कि जब ये मंत्री-विधायक वोट मांगने आएं तो जनता को उनसे पूछना चाहिए कि तुम से एक मेडिकल कॉलेज नहीं संभाला जा रहा तो तुम आम आदमी को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं क्या उपलब्ध कराओगे।
बडख़ल क्षेत्र से विधायक सीमा त्रिखा भी हर महीने बीके अस्पताल का निरीक्षण करने का दावा करती हैं लेकिन उन्हें यहां दवा, जांच के लिए भटकते मरीज नजर नहीं आते। उनके अनुसार बीके पर लोगों को इतना विश्वास है कि बल्लभगढ़ तक के मरीज यहां आते हैं। यानी वह निर्लज्जता से यह कुबूल करती हैं कि बल्लभगढ़ के सरकारी अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज की सुविधा उपलब्ध नहीं है इसीलिए लोग वहां इलाज कराने में विश्वास नहीं करते और बीके पहुंचते हैं। उन्हेें अस्पताल में सक्रिय दलालों का रैकेट भी नजर नहीं आता जो डॉक्टरों की मिलीभगत से भोले-भाले मरीजों को अच्छी जांच और इलाज कराने के नाम पर निजी अस्पताल ले जाकर लूटते हैं। उन्हें अस्पताल में कमीशनखोर सरकारी एंबुलेंस चालक भी नहीं दिखाई देते जो मरीजों को सफदरजंग की जगह नर्सिंग होम पहुंचा कर लूट कमाई की हिस्साबांट करते हैं।
मोदी और उनकी जी हुजूरी के लिए मुख्यमंत्री बनाए गए नायब सिंह सैनी की डबल इंजन सरकार की नीयत कभी जनता को बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाएं देने की नहीं रही है, यही कारण है कि हर साल बजट में स्वास्थ्य सेवाओं का खर्च घटाया जा रहा है। सरकारें आयुष्मान भारत योजना-चिरायु योजना का ढोल पीटने की आड़ में सरकारी अस्पतालों की सुविधाएं सीमित करती जा रही हैं। इन अस्पतालों को सामान्य इलाज तक ही सीमित किया जा रहा है, सुपर स्पेशलिटी सुविधाएं देने के लिए निजी कंपनियों को ठेका दे रखा है यानी जो इलाज सरकार को मुफ्त उपलब्ध कराना था अब उसके लिए मरीज को शुल्क चुकाना पड़ता है।