रेफरल के नाम पर मरीजों को लूटने का चल रहा खुला खेल

रेफरल के नाम पर मरीजों को लूटने का चल रहा खुला खेल
March 04 05:28 2024

क्या ज़ीरो टॉलरेंस वाले मुख्यमंत्री खट्टर देखेेंगें स्वास्थ्य विभाग का भ्रष्टाचार?

शेखर दास
फऱीदाबाद। बीके अस्पताल से मरीजों को रेफर कर निजी अस्पताल पहुुंचाने की लूट कमाई का धंधा पीएमओ-सीएमओ के संरक्षण में 112 एंबुलेंस प्रबंधन और अस्पताल के चिकित्सा स्टाफ की मिलीभगत खुले आम चल रहा है। सफदरजंग के लिए रेफर किए गए मरीज को ये एंबुलेंस चालक और ईएमटी बहला-फुसला कर निजी अस्पताल पहुंचा देते हैं, इसके बदले मरीज से वसूले जाने वाले बिल का बीस से तीस प्रतिशत कमीशन खाया जाता है। सब कुछ जान कर अनजान बनने वाले सीएमओ-पीएमओ कोई कार्रवाई नहीं करते, माना जा सकता है इस कमीशन का हिस्सा रेफर करने वाले डॉक्टर से लेकर उसके ज़रिए इन तक पहुंचता है। यही कारण है कि शिकायतकर्ता पीडि़त की शिकायत पर जांच कराने के बजाय मामला सुलटाने का दबाव बनाया जाता है।

112 एंबुलेंस चालकों की कमीशनखोरी का शिकार हुए मोनू कुमार निवासी गुडग़ांव ने इस भ्रष्टाचार की शिकायत करने का प्रयास किया तो स्वास्थ्य विभाग से लेकर पुलिस तक सब उस पर दबाव बनाने लगे। मोनू कुमार के अनुसार शादी के आठ साल बाद उसकी पत्नी खुशबू गर्भवती हुई थी, इसलिए उसे सेक्टर 55 स्थित मायके भेज दिया था। छह माह की गर्भवती ख़ुशबू की 23 जनवरी की शाम तबीयत बिगड़ी तो मोनू ने उसे बीके अस्पताल में भर्ती कराया। 24 जनवरी को खुशबू ने अपरिपक्व (प्रीमैच्योर) शिशु को जन्म दिया जिसकी कुछ देर बाद मृत्यु हो गई। रात करीब दो बजे खुशबू की तबीयत खराब हुई तो ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने इलाज करने के बजाय सफदरजंग दिल्ली रेफर कर दिया।

112 एंबुलेंस महिला को लेकर सफदरजंग की ओर चली। मोनू के अनुसार अभी एक किलोमीटर ही चले होंगे कि साथ चल रहे इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन (ईएमटी) कृपाराम और चालक कन्हैया ने एंबुलेंस रोक दी। दोनों उसे समझाने लगे कि मरीज की हालत ज्यादा खराब है सफदरजंग पहुंचने में दो घंटे का समय लगेगा ये वहां तक नहीं पहुंच पाएगी, इसे बचाना है तो पास ही किसी निजी अस्पताल में भर्ती करा दो। मोनू ने पैसा नहीं होने की बात कही तो दोनों ने समझाया कि पांच-दस हज़ार रुपये खर्च होंगे तुम्हारी पत्नी की हालत सुधर जाएगी, इसके बाद उसे सफदरजंग ले जाना। इस बीच दोनों ने फोन कर तीन और दलालों को बुला लिया। बुलेट बाइक पर थोड़ी ही देर में पहुंचे इन तीनों युवकों ने उसे बहला फुसला कर जाल में फंसा लिया। इसके बाद उन्हें रेलवे स्टेशन रोड स्थित प्रयाग हॉस्पिटल ले गए। यहां शुरू हुआ लूट का खेल।

हॉस्पिटल के डॉक्टर अमित ने दस हज़ार रुपये जमा करवाए और एक-यूनिट रक्त व प्लाज़्मा मंगवाया। ब्लड बैंक से ये छह हज़ार रुपये में मिला। सुबह तक उन्हें बताया गया कि पत्नी की तबीयत ठीक है, अचानक उन्हें बुलाकर बताया गया कि प्लेटलेट्स 30 हज़ार पहुंच गई हैं, बचना मुश्किल है, मरीज को आईसीयू में भर्ती करना पड़ेगा और प्लेटलेट्स का इंतज़ाम कीजिए, मरीज को चढ़ाना जरूरी है। परेशान मोनू को एक दूसरे भुक्तभोगी तीमारदार ने अस्पताल की असलियत बताई कि यहां इलाज अच्छा नहीं होता, रोज़ाना एक दो मरीजों की मौत होती है। इस पर मोनू ने डॉक्टर अमित से पत्नी को डिस्चार्ज करने को कहा। डॉ. अमित ने एंबुलेंस चालक कन्हैया आदि को इसकी जानकारी दी। थोड़ी ही देर में ईएमटी कृपाराम के फोन आने लगे, वो लोग खुशबू को यही भर्ती रहने का दबाव बनाने लगे, प्रलोभन दिया कि हालत संभलते ही वो खुद 112 एंबुलेंस से खुशबू को सफदरजंग अस्पताल पहुंचाएंगे। मोनू नहीं माना और डिस्चार्ज कराने पर अड़ गया। आठ हज़ार रुपये बिल चुकाने के बाद पत्नी को डिस्चार्ज किया और दोनों से अभद्रता की गई।

सफदरजंग अस्पताल में जांच के बाद खुशबू के किसी गंभीर समस्या से ग्रस्त नहीं होना बताया गया और सामान्य वार्ड में भर्ती कर इलाज किया गया, दो दिन में ही वह पूर्णतया स्वस्थ हो गई। असलियत सामने आने पर मोनू ने बीके अस्पताल में चल रहे रेफर की लूट कमाई की शिकायत करने के लिए सीएम विंडो और सीएमओ फरीदाबाद से शिकायत की। ज़ीरो टॉलरेंस का ढिंढोरा पीटने वाले सीएम खट्टर की सीएम विंडो से आज तक न्याय नहीं मिला। मिलेगा भी कैसे जब ऊपर से लेकर नीचे तक सारे चोर बैठा रखे हैं। मोनू के अनुसार वह न्यायालय तक जाने के लिए पत्नी के डिस्चार्ज संबंधी दस्तावेज लेने बीके अस्पताल पहुंचे तो 112 एंबुलेंस फ्लीट के सदस्यों ने उसे रोक लिया और शिकायत वापस न लेने पर जान से मारने की धमकी दी। पीएमओ सविता यादव ने भी मोनू की शिकायत पर कोई कार्रवाई करना उचित नहीं समझा, माना जा सकता है कि भ्रष्टाचारी एंबुलेंस चालकों को उनका संरक्षण प्राप्त है। मोनू ने सीएमओ विनय गुप्ता से भी प्रयाग हॉस्पिटल के डॉक्टर अमित के खिलाफ शिकायत देकर जांच करने की मांग की लेकिन जिस तरह एंबुलेंस चालकों का कुछ नहीं हुआ यहां भी कुछ नहीं किया गया।

कहीं से न्याय नहीं मिलने पर सेक्टर 55 निवासी होने के नाते पीडि़त रिर्पो लिखवाने सेक्टर के ही थाने पहुंचा तो मौजूद पुलिसकर्मी महावीर ने यह कहते हुए उल्टे पांव लौटा दिया कि घटना उनके थानाक्षेत्र की नहीं है, एसजीएम नगर थाने जाओ। जानकारी होने पर यह संवाददाता भी सेक्टर 55 थाने के बाहर पीडि़त से मिला। पीडि़त अपनी समस्या संवाददाता को बता रहा था इसका कष्ट पुलिसकर्मी महावीर को हुआ और उसने संवाददाता के कैमरे को बंद कराने का प्रयास किया। विरोध करने पर पीडि़त को वहां से चलता कर दिया ताकि वह मीडिया में अपनी बात नहीं पहुंचा सके। पुलिस आयुक्त राकेश आर्य आदेश जारी करते हैं कि थाने पर आने वाली हर शिकायत दर्ज की जानी चाहिए लेकिन मातहत इसी तरह इनकी धज्जियां उड़ा रहे हैं। यदि महावीर पुलिस कमिश्नर के आदेश का सम्मान करना जानता तो ज़ीरो एफआईआर दर्ज कर संबंधित थाने को भेज सकता था।

पीडि़त की एफआईआर तो दर्ज नहीं हुई लेकिन एंबुलेंस चालक को इसकी जानकारी पहुंचा दी गई। फिर क्या था पेशबंदी करते हुए एंबुलेंस चालक की ओर से एनआईटी तीन पुलिस चौकी में मोनू के खिलाफ दो लाख रुपये मांगने, प्रताडि़त करने की शिकायत देेने का प्रपंच रचा गया। अब पुलिस दोनों पर समझौता करने का दबाव बनाएगी। विधायक सीमा त्रिखा भी ढिंढोरा पीटती हैं कि बीके अस्पताल में सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा है, महिला मरीजों के लिए नौ तारीख को पिंक डे मनाया जाता है, जैसे अन्य दिन महिलाएं बीमार ही नहीं पड़ती हैं। यदि बीके अस्पताल में इतनी ही अच्छी चिकित्सा सेवाएं हैं तो फिर प्रसव पश्चात होने वाली समस्या से जूझ रही खुशबू को सफदरजंग क्यों रेफर किया गया? सफदरजंग में ऐसा कौन सा खास इलाज दिया गया जो यहां उपलब्ध नहीं हैं, खुशबू वहां जनरल वार्ड में ही इलाज से ठीक हो गई। दरअसल रेफर करने का पूरा गठबंधन है। सफदरजंग रेफर करो, एंबुलेंस वाला मरीज को निजी अस्पताल पहुंचाए और मिलने वाला कमीशन सब मिलबांट कर खाएं। शिकायत हुई तो बताया जाएगा कि मरीज खुद से ही निजी अस्पताल गया था हम लेकर नहीं गए थे। कभी एंबुलेंस चालकों से ये क्यों नहीं पूछा जाता कि जब उनका मरीज को निजी अस्पताल ले जाना पूर्णतया प्रतिबंधित है तो तीमारदारों की बात वो किसके आदेश पर मान कर मरीज को ले जाते हैं। पूछे तो कौन जब सबकी हिस्सा पत्ती हो।

ई़मानदारी का नगाड़ा बजाने वाले सीएम खट्टर के राज में भ्रष्टाचार किस हद तक है मोनू कुमार का मामला एक बानगी है। लूट कमाई करने वाले सरकारी डॉक्टर, एंबुलेंस चालक, निजी अस्पताल संचालक और पुलिस की दुरभि संधि स्पष्ट नजऱ आ रही है, यदि सीएम विंडो पर ईमानदार अधिकारी बैठे होते तो पीडि़त को इतने कार्यालयों के चक्कर ही नहीं काटने पड़ते, वहीं से जांच होकर भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई हो जाती, लेकिन सीएम विंडो भी जनता को बहलाने का महज झुनझुना ही है।

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Mazdoor Morcha
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