फरीदाबाद (म.मो.) प्राय: रेलवे स्टेशनों पर यात्रीगण हड़बड़ी के कारण एक प्लेटफार्म से दूसरे पर जाने के लिये पुल के बजाय पटरियों से पार करने का प्रयास करते हैं। इस प्रयास में कभी सफल भी होते हैं तो कभी जान से भी हाथ धो बैठते हैं। ऐसा ही एक हादसा 29 नवम्बर को ओल्ड फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर होते-होते बचा।
हुआ यूं कि एक नम्बर प्लेटफार्म पर खड़ी गीता जयंती एक्सप्रेस से उतर कर कुछ सवारियां पटरियां पार करके प्लेटफार्म नम्बर दो पर जाने लगी। इस प्रयास में 6 सवारियां, दिल्ली-मुम्बई तेजस एक्सप्रेस की चपेट में आने से इसलिये बच पाई कि आरपीएफ के एक सिपाही रविकुमार ने अपनी जान पर खेल कर उन्हें बचा लिया। सिपाही रवि ने पूरी रफ्तार से आती तेजस को देख कर समझ लिया कि यदि 10-20 सेकेंड में इन्हें ट्रैक से न हटाया गया तो ये सभी कट मरेंगे। उन्हें चीख-चिल्ला कर चेतावनी देने का भी कोई लाभ न हुआ तो उसने खुद ट्रैक पर कूदकर उन्हें ट्रैक से बाहर किया।
रवि की तत्परता एवं बहादुरी से आज इनकी जान तो बच गई, नहीं तो क्या होता? वे 6 की 6 सवारियां कट मरती। रेलवे एवं पुलिस कुछ कागज काले करके इसकी रिपोर्ट बनाते, रेलवे उनकी मौत पर खेद व्यक्त करते हुए मरने वालों को ही दोषी ठहराता। ठीक है मरने वाले तो मर कर अपने दोष की सजा पा लेते हैं, परन्तु उनको दोषी बनाने वाले रेलवे को कोई पूछने वाला नहीं। सुधि पाठकों ने अनेकों स्टेशनों पर ट्रैकों के बीच में ग्रिल लगी देखी होंगी ताकि कोई भी सवारी ट्रैक पार न कर सके, इस तरह की ग्रिल हर स्टेशन पर क्यों नहीं लगाई जाती? जान जोखिम में डालकर ट्रैक इसलिये भी पार करना पड़ता है कि स्टेशनों पर पर्याप्त पुल नहीं होते। यदि स्वचालित सीढिय़ों वाले पर्याप्त पुल हों तो कोई क्यों जान को जोखिम में डालकर ट्रैक पार करेगा? फरीदाबाद स्टेशन पर इस कमी को पूरा करने के लिये फरवरी 2019 मे एक स्वचालित सीढिय़ों वाला पुल बनाया गया था, जो केवल कुछ दिन ही चलकर ठप्प हो गया, शायद पुल बनाने वाली कम्पनी से कमीशन कुछ ज्यादा ही वसूला गया था। काफी समय खराब रहने के बाद ये सीढिय़ां कभी-कभी चालू कर दी जाती हैं।
कई बार रेलवे कर्मचारी खुद भी हादसों को न्योता देने के लिये पूर्व इंगित प्लेटफार्म पर आने वाली ट्रेन का प्लेटफार्म ऐन आखिरी वक्त पर तब बदल देते हैं जब ट्रेन आउटर सिग्नल पार करके स्टेशन की ओर बढ चुकी होती है। ऐसे में यात्रियों में भगदड़ मचना व सीधे ट्रैक पार करना स्वाभाविक हो जाता है। ऐसे उदाहरण फरीदाबाद, नई दिल्ली स्टेशनों पर देखने को खूब मिलते हैं।