फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) वर्दी पहनने के बाद अपने आप को कानून से ऊपर समझने वाली बल्लभगढ़ पुलिस एक रेहड़ी वाले की हिरासत में मौत के बाद खुद को पाक साफ साबित करने में जुटी हुई है। प्रथम दृष्टया यह हिरासत में पिटाई से मौत है लेकिन महकमे के प्रति वफादारी जताते हुए पुलिस प्रवक्ता सूबे सिंह इस सब के लिए रेहड़ी वाले को ही जिम्मेदार साबित करते नजर आए। रेहड़ी वाले को पीटने वाले और चौकी ले जाने वाले पुलिसकर्मियों की पहचान होने के बावजूद अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया जाना बताता है कि पुलिस कितनी ईमानदारी से जांच कर रही है। दुख तो इस बात का है कि जिले के पुलिस आयुक्त विकास अरोड़ा मुंह में दही जमाए बैठे हैं, अब तक उनके श्रीमुख से एक भी शब्द नहीं फूटा है।
मृतक राजबीर के बेटे कर्मवीर के अनुसार वह बीते शुक्रवार की सुबह पिता के साथ बल्लभगढ़ बस अड्डे पर रेहड़ी लगाकर केले बेच रहा था। इस दौरान दो-तीन पुलिस कर्मी आए और रेहड़ी से केले के गुच्छे उठा कर एक दूसरे को बांटने लगे। दरअसल यह पुलिस वाले भी रिटायर्ड फौजी थे जिनको खट्टर सरकार ने खाकी पहना कर पुलिस का डंडा थमा दिया। पिता राजबीर ने विरोध किया तो पुलिस कर्मियों ने उन्हें लात-घूसों और लाठी से पीट दिया। गरीब केले वाला माफी मांगता रहा लेकिन पुलिस वाले उसे घसीट कर चौकी ले गए।
इधर पुलिस प्रवक्ता का दावा है कि रेहड़ी वाला झगड़ा कर रहा था, शिकायत मिलने पर पुलिस कार्रवाई करने पहुंची थी। उस प्रवक्ता को यह भी बताना चाहिए कि राजबीर के खिलाफ झगड़े की शिकायत किसने की थी, यदि हेल्पलाइन पर की गई तो उसकी डिटेल जारी करे, यदि चौकी में लिखित शिकायत दी गई तो उसे भी सार्वजिनक किया जाए। पुलिस यह नहीं दिखा पाएगी क्योंकि ऐसी कोई शिकायत हुई ही नहीं थी। मारपीट, लूटपाट के मामलों में देर से पहुंचने वाली पुलिस का इस मामले में इतनी तत्परता से काम करना भी एक प्रश्न है। बेटे का आरोप है कि राजबीर को करीब चार घंटे चौकी में बंद कर पीटा गया, परिवार वालों ने तीन बार राजबीर को छोडऩे की गुहार लगाई लेकिन पुलिस ने धमकाते हुए कहा था कि यो अब नीमका जेल जाएगा। पिता को छुड़ाने गए कर्मवीर को भी पुलिस ने पीटा और गालियां बकते हुए भगा दिया।
पुलिस प्रवक्ता का दावा है कि राजबीर ने शराब पी रखी थी। पहली बात शराब पीना अपराध नहीं है। कर्मवीर ने बताया कि उसके पिता अपने पैरों पर चल कर गए लेकिन चार घंटे बाद पुलिस ने उन्हें चौकी के शौचालय में अचेत हालत में पड़ा दिखाया और परिवार वालों पर उन्हें घर ले जाने का दबाव बनाया। परिवार वालों ने इनकार किया तो पुलिस ने खुद ही ऑटो बुलाकर राजबीर को उस पर लाद कर सडक़ पर छोड़ दिया। मजबूर होकर परिवार वाले उन्हें लेकर सरकारी अस्पतपाल गए। यहां मौजूद लालफीताशाह डॉक्टर ने राजबीर को प्राथमिक उपचार देने के बजाय पुलिस केस बताते हुए पुलिस के आने तक हाथ लगाने से इनकार कर दिया। चिकित्सा नियमों के अनुसार उसे मरीज को इलाज देना चाहिए था और खुद ही मेमो भेजकर पुलिस को सूचना देनी चाहिए थी। ऐसे में वह सरकारी डॉक्टर भी गुनहगार बन गया, उसके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। परिवार वालों के कई बार कहने के बावजूद पुलिस अस्पताल नहीं पहुंची और इलाज नही मिलने से राजबीर की तड़प-तड़प कर मौत हो गई। राजबीर की हालत पुलिस की मारपीट ही से खराब हुई थी यह आशंका सही साबित होती है क्योंकि हिरासत में लिए गए राजबीर को अस्पताल ले जाने और उसका मेडिकल करवाने की जिम्मेदारी पुलिस की ही थी। लेकिन पुलिस न तो उसे लेकर गई और न ही बुलाए जाने पर अस्पताल पहुंची।
हालांकि पुलिस ने राजबीर के बेटे पवन की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया और पुलिस कार्रवाई में पूरी बेशर्मी से झूठ लिखते हुए खुद को बेगुनाह साबित करने का खेल कर दिया। पवन की तहरीर के बाद जांच अधिकारी एसआई इंद्रजीत ने अपनी रिपोर्ट लगाई है। इसमें बताया गया है कि उन्हें शुक्रवार को जानकारी मिली कि राजबीर बेहोश हालत में बल्लभगढ़ फ्लाईओवर के नीचे पड़ा हुआ है। मौके पर पहुंच कर उन्होंने जांच की तो राजबीर की मृत्यु पुलिस के पहुंचने से पहले ही हो चुकी थी। उन्होंने राजबीर के परिजनों से तहरीर देने को कहा लेकिन परिवार वालों ने बाद में सोच समझ कर दरख्वास्त देने की बात कही। उन्होंने मृतक राजबीर के मोबाइल से फोटो लिए और शव कब्जे में लेकर बीके अस्पताल की मोर्चरी भेज दिया। पुलिस की बदमाशी तो यहीं नजर आती है कि राजबीर को चौकी लाने वाले पुलिसकर्मियों की जानकारी होने के बावजूद उसने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया। राजबीर को बिना लिखापढ़ी अवैध रूप से चार घंटे चौकी में बंद कर इतनी बुरी तरह से पीटा गया कि वह अपने पैरों पर चलने लायक नहीं रह गया, फिर डॉक्टर ने भी चिकित्सक धर्म का पालन नहीं किया और परिजनों के बार बार गुहार लगाने के बावजूद पुलिस का अस्पताल नहीं पहुंचना अपने आप में ही अपराध और अराजकता का उदाहरण हैं।
जांच अधिकारी ने अपनी तहरीर में यह शोशा छोड़ दिया कि राजबीर के परिजनों ने सोच समझ कर हत्या की तहरीर दी है यानी उनकी दुर्भावना भी हो सकती है। राजबीर बल्लभगढ़ फ्लाईओवर के नीचे कब अचेत मिला उन्होंने जानबूझ कर इसके समय का भी उल्लेख अपनी रिपोर्ट में नहीं किया है। पुलिस आयुक्त विकास अरोड़ा का भी इतनी बड़ी घटना पर कोई कार्रवाई नहीं करना दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है। कृष्ण भक्ति में लीन रहने वाले विकास अरोड़ा यदि ढंग से पुलिसिंग करने का अपना दायित्व ईमानदारी से निभाएं तो वह अधिक कल्याणकारी हो सकता है।
ठेके के एसपीओ इसी तरह संभालेंगे व्यवस्था सरकार वेतन बचाने के लिए रिटायर्ड सैनिकों को वर्दी पहना कर खड़ा कर रही है। फौज से रिटायर होकर एसपीओ बनने वाले इन लोगों को सरकार आम जनता और दुश्मन में फर्क करने की ट्रेनिंग भी नहीं दिलाती। यह एसपीओ आम जनता पर डंडा चलाने और रेहडिय़ों से फल, केले मुफ्त में उठाकर खाना ही जानते है। विरोध करने का नतीजा राजबीर जैसों की मौत के रूप में सामने आता है।
सीपी विकास अरोड़ा! यदि आप दायित्व और कानून समझते हैं तो आप तुरन्त पुलिस हिरासत में हुई इस हत्या को गम्भीरता से लेकर उचित कार्यवाही करें। इससे बड़ा दुखद आश्चर्य और क्या हो सकता है कि पुलिसियों द्वारा अपनी हिरासत में हत्या किये जाने के बावजूद अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। इलाज के अभाव में अस्पताल में मरे व्यक्ति के शव की बरामदगी फलाईओवर के नीचे से दिखाई जा रही है।
यदि आप उचित कार्रवाई करने में असफल रहते हैं तो दोषी अधिकारियों के साथ आपराधिक मिलीभगत का दोष आप पर भी लगना तय है। यह भी समझ लीजिये कि किसी भी पूजा-पाठ से वह पुण्य प्राप्त नहीं हो सकता जो ईमानदारी से अपना कत्र्तव्य का निर्वहन करते हुए लाचार को इंसाफ दिलाने से होता है।