रेडक्रॉस सोसायटी : भ्रष्टाचार छिपाने के लिए उड़ा रहे आरटीआई कानून की धज्जियां

रेडक्रॉस सोसायटी : भ्रष्टाचार छिपाने के लिए उड़ा रहे आरटीआई कानून की धज्जियां
December 12 01:23 2023

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा)। भ्रष्टाचार में डूबी जिला रेडक्रॉस सोसायटी के अधिकारी काले कारनामे छिपाने के लिए आरटीआई एक्ट की भी धज्जियां उड़ा रहे हैं। आरटीआई लगाने वाले बीपीएल परिवार के छात्र को निशुल्क जानकारी देने के बजाय जिला सचिव बिजेंद्र सौरोत ने उल्टे उससे सूचना मांग डाली कि आरटीआई एक्ट में बीपीएल परिवार को निशुल्क जानकारी देने का प्रावधान कहां है ? सूचना देने के लिए उससे दस्तावेजों की प्रति की इतनी रकम मांग ली गई कि वह चुका न सके और भ्रष्टाचार दबा ही रह जाए।

रेडक्रॉस के भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार वर्ष 2020 से 2022 के बीच किसी वर्ष दिवाली पर गिफ्ट खरीदने के नाम पर सोसायटी के पदाधिकारियों के बीच ढाई लाख रुपये का बंदरबांट हुआ है। बताते चलेंं कि यह हेराफेरी भी कोरोना काल के दौरान हुई, जब यहां ऑक्सीजन-सिलिंडर घोटाले के सूत्रधार विमल खंडेलवाल, सचिव विकास और क्लर्क जतिन शर्मा का बोलबाला था। जतिन शर्मा वही है जिसने रेडक्रॉस सोसायटी में ट्रेनिंग के दो बैचों के अभ्यर्थियों से वसूले गए साठ हजार रुपये हड़प लिए थे। अंदरखाने खुलासा होने के बावजूद रेडक्रॉस के भ्रष्ट आला अधिकारी उसे बचाने में जुटे हैँ। सोसायटी अध्यक्ष व जिला उपायुक्त विक्रम सिंह ने भी इतने दिन बीतने के बावजूद आज तक ढाई लाख रुपयों का हिसाब किताब नहीं मांगा है। उनकी

चुप्पी भ्रष्टाचार में उनकी मिलीभगत होने की आशंका पर बल दे रही है।
भरोसेमंद सूत्र बताते हैं कि कोरोना काल के दौरान दिवाली गिफ्ट खरीदने के नाम पर सोसायटी के खजाने से ढाई लाख रुपये नकद निकाले गए थे। न तो गिफ्ट खरीदे गए और न ही ढाई लाख रुपयों का कोई हिसाब दिया गया। जाहिर है इतनी बड़ी रकम अकेला कोई एक व्यक्ति हजम नहीं कर सकता। उस समय सक्रिय भ्रष्ट, लूटखोर, दागी पदाधिकारियों के बीच यह धनराशि बंटी होगी। यह रकम सोसायटी के अकाउंट में बट्टे खाते में पड़ी है। घोटाले करने वाले जतिन शर्मा और विकास को गुडग़ांव ट्रांसफर कर दिया गया। उनके बाद आने वाले सचिव व अन्य पदाधिकारियों को इस लूट खसोट की जानकारी तो हुई लेकिन उन्होंने कार्रवाई करने के बजाय इस पर पर्दा डाले रखा। डीसी विक्रम यादव इस घोटाले के बाद से कई बार रेडक्रॉस सोसायटी के क्रियाकलापों की समीक्षा का चुके हैं, संभव नहीं है कि यह घोटाला उनकी जानकारी में न हो। ऐसे में आज तक कोई कार्रवाई नहीं किया जाना उनकी ईमानदारी और योग्यता पर भी प्रश्नचिह्न है।

रेडक्रॉस सोसायटी के ढाई लाख रुपये हड़पने वाले पदाधिकारियों को सामने लाने के लिए गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जीवन यापन करने वाले परिवार के कक्षा नौ के छात्र एनआईटी पांच निवासी दिपांशु पाठक ने 25 सितंबर 2023 को रेडक्रॉस सोसायटी में आरटीआई लगाई। इसमें उन्होंने सोसायटी के सचिव और राज्य जन सूचना अधिकारी बिजेंद्र सौरोत से वर्ष 2020-21, 22 तक की जिला रेडक्रॉस सोसायटी व सेंट जॉन एंबुलेंस की बैलेंस शीट और लेजर की प्रमाणित छाया प्रति मांगी। इस दौरान की कैशबुक और कैश वाउचर की भी छाया प्रति मांगीं। इस दौरान हुए इंटरनल ऑडिट की प्रमाणित छाया प्रति की भी मांग की गई।

दिपांशु ने सूचना मुफ्त पाने के लिए अपने बीपीएल राशन कार्ड की छायाप्रति और स्कूल का पहचान पत्र भी लगाया। बताते चलें कि आरटीआई एक्ट की धारा 7 की उपधारा 5 में फीस एवं सूचना की लागत से छूट का प्रावधान है। इसके तहत गरीबी रेखा से नीचे के व्यक्ति से नमूने की लागत के अतिरिक्त को शुल्क नहीं लिया जा सकता। एक्ट के आधार पर राज्य जन सूचना आयोग ने अनेकों बार निर्णय दिया है कि यदि आवेदक को एक माह के भीतर सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई है तो उसे सारी जानकारी निशुल्क उपलब्ध कराई जाएगी।
एसपीआइओ बिजेंद्र सौरोत ने एक माह के भीतर सूचना उपलब्ध नहीं कराई। उन्हें 20 नवंबर को दिपांशु ने ईमेल रिमाइंडर भेजा। इस पर राज्य जन सूचना अधिकारी का जिम्मा निभा रहे सचिव बिजेंद्र सौरोत ने आरटीआई एक्ट के प्रति अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन करते हुई उल्टे दिपांशु से ही जवाब मांग लिए। उनका जवाब था कि एसपीआईओ व सचिव जिला रेडक्रॉस सोसायटी की जानकारी के अनुसार बीपीएल कार्ड धारक को सौ पेज तक निशुल्क जानकारी दी जा सकती है। इस कार्यालय में ऐसे किसी नियम की कॉपी उपलब्ध नहीं है, ऐसी कोई धारा या नियमावली की आपको जानकारी हो तो कार्यालय को देने का कष्ट करें।

समझा जा सकता है कि जिस जनसूचना अधिकारी को आरटीआई एक्ट (जो कि कार्यालय रिकॉर्ड के अलावा ऑनलाइन भी उपलब्ध है) की धाराओं, उपधाराओं और नियमों की जानकारी नहीं है वो कितनी सटीक सूचना उपलब्ध कराएगा। सूचना फिर भी नहीं दी गई और समय पर सूचना नहीं दिए जाने का कारण बताया गया कि कार्यालय में ऑडिट का काम चल रहा है जिस कारण खाता बही, रोकड़ बही, बैलेंस शीट आदि चार्टर्ड अकाउंटेंट के पास रखे हुए थे।

वहां से दस्तावेज मिलने पर बताया गया कि पेजों की संख्या काफी अधिक है जिनकी गिनती करने में समय लगा। हैरानी की बात यह है कि सारा लेखा जोखा ऑडिटर के पास अभी तक पड़ा हुआ था जबकि यह 2020 से संबंधित है ऐसा जान पड़ता है कि आरटीआई लगने के बाद ही विभाग ने ऑडिटर कार्यालय से ये दस्तावेज मंगाए, यानी ऑडिट के नाम पर भी बस खानापूर्ति का खेल खेला जाता है। सूत्रों के अनुसार दिपांशु को बताया गया है कि सभी दस्तावेजों की छाया प्रति करीब तेईस सौ हैं इसके लिए दो रुपये प्रति छायाप्रति का भुगतान किए जाने पर सूचना दी जाएगी। सूत्र बताते हैँ कि ढाई लाख रुपयों के गबन की शक की सुई क्लर्क जतिन शर्मा की और पुख्तगी से इशारा कर रही है लेकिन जिला सचिव सोसायटी के आला पदाधिकारियों के इशारे पर सूचना देने में आनाकानी कर रहे हैं, क्योंकि ये आला अधिकारी अपने चहेते भ्रष्टाचारी कर्मचारी को बचा रहे हैं।

आरटीआई एक्टिविस्ट एंड सिटिजन वॉयस एसोसिएशन के महासचिव रवींद्र चावला कहते हैँ कि सरकारी कार्यालयों के दस्तावेज भी सूचना के अधिकार के तहत ही आते हैं। आरटीआई एक्ट में ही प्रावधान है कि यदि दस्तावेज बहुत ज्यादा हैं तो पचास रुपये शुल्क लेकर सीडी या फ्लॉपी में सॉफ्ट कॉपी उपलब्ध कराई जाए। अधिकारी जानबूझ कर इन प्रावधानों की अनदेखी कर आवेदक को जबरन परेशान करते हैं।

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Mazdoor Morcha
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