दिलीप मंडल कैथोलिक चर्च को ये मानने में साढ़े तीन सौ साल लग गए कि जब कॉपरनिकस, गैलीलियो और ब्रूनो कह रहे थे कि धरती स्थिर नहीं है बल्कि सूर्य के चारों और परिक्रमा करती है, तो वे विज्ञान से प्रमाणित सत्य बोल रहे थे. आस्था और विज्ञान के बीच चले लंबे संघर्ष के बाद, चर्च और वेटिकन ने आखिरकार मान लिया कि धरती घूमती है. ऐसा कहने वाले वैज्ञानिकों और विद्वानों को प्रताडि़त करने के लिए चर्च ने सार्वजनिक माफी मांगी. पोप जॉन पॉल द्वितीय ने कहा कि चर्च द्वारा गैलीलियो का विरोध करना समझदारी नहीं थी.
आधुनिकता और ज्ञान के मुकाबिल होने पर धर्म द्वारा स्थापित परंपराओं और आस्था का पीछे हटना सिर्फ ईसाई धर्म में नहीं हुआ है. वक्त बदलता है या ज्ञान के क्षेत्र का विस्तार होता है तो कई बार धर्म और धर्मग्रंथ भी खुद को बदल लेते हैं या नई व्याख्याएं प्रस्तुत करते हैं. हिंदू धर्म उन धार्मिक कथ्यों और उनके अर्थों को बदल रहा है या उनकी नई व्याख्याएं प्रस्तुत कर रहा है जो जातिवाद और नारी-विरोध को बढ़ावा देती हैं या दे सकती हैं.
मैं ये देखकर दंग रह गया कि उत्तर भारत के सबसे लोकप्रिय धार्मिक ग्रंथ रामचरितमानस की सबसे विवादास्पद पंक्तियों – ‘ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताडऩा के अधिकारी।।’ में ताडऩा के अर्थ को अब बदल दिया गया है. रामचरितमानस को 16वीं सदी में तुलसीदास ने लिखा था और इसकी एक करोड़ से ज्यादा कॉपियां प्रकाशित हो चुकी हैं. गीता प्रेस गोरखपुर रामचरितमानस का सबसे बड़ा प्रकाशक है.
झारखंड में यात्रा करने के दौरान मुझे गीता प्रेस द्वारा 1953 में प्रकाशित रामचरितमान की कॉपी मिली. इसमें मूल अवधी भाषा की रचना और उसका हनुमान प्रसाद पोद्दार (1892-1971) द्वारा किया हिंदी अनुवाद और उसकी व्याख्या है. इसमें ताडऩा के लिए “दंड” का इस्तेमाल किया गया है “ढोल. गंवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब दंड के अधिकारी हैं.”
लेकिन अब गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित जो रामचरितमानस (2022) बाजार में है, उसमें ताडऩा शब्द का अर्थ बदल चुका है. इसमें लिखा गया है कि “ढोल. गंवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं.” इस संस्करण में भी अनुवादक का नाम हनुमान प्रसाद पोद्दार ही दिया गया है, जो 1971 में दिवंगत हो चुके हैं.
ये गौर करने की बात है कि गीता प्रेस भारत में हिंदू धार्मिक किताबों का सबसे बड़ा प्रकाशक है. इसकी स्थापना 1923 में हुई थी. इसने अब तक गीता, रामायण, रामचरितमानस, भागवत, उपनिषद और धार्मिक उपदेश संबंधी 30 करोड़ से ज्यादा किताबें विभिन्न भारतीय भाषाओं में छापी हैं. अगर किसी के घर में रामचरितमानस है तो इस बात की ही पूरी संभावना है कि वह गीता प्रेस में छपी है. हालांकि रामचरितमानस कई और छोटे प्रकाशकों ने भी छापी है, पर संख्या कम है. गीता प्रेस की किताबें सबसे प्रामाणिक मानी जाती हैं. इसलिए जब इसके संचालकों ने ये तय किया कि वे रामचरितमानस के एक शब्द का अर्थ बदल रहे है, तो इसकी गंभीरता का अंदाजा उन्हें रहा होगा.