राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना बहाली की घोषणा नवउदारवादी आर्थिकी के पैरोकारों में खलबली

राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना बहाली की घोषणा नवउदारवादी आर्थिकी के पैरोकारों में खलबली
March 14 14:55 2022

रवींद्र गोयल
अगले साल होने वाले राज्य चुनावों के मद्देनजर ही सही, राजस्थान सरकार ने इस बजट में जनवरी 2004 से बहाल सरकारी कर्मचारियों के लिए नयी पेंशन योजना के अंतर्गत पेंशन देने की जगह पुरानी पेंशन देने की घोषणा की है। जब से यह घोषणा हुई है कुछ बुद्धिजीवियों, विशेषज्ञों ने इस घोषणा की तीखी आलोचना शुरू कर दी है। इनके द्वारा इस घोषणा के विरोध का कारण यह भी है कि राजस्थान तो महज शुरुआत है। नयी पेंशन योजना की अनिश्चित पेंशन राशि के भुगतान आश्वासन के मुकाबले निश्चित भुगतान के आश्वासन वाली पुरानी पेंशन योजना के पक्ष में मुखर आवाजें देश भर में पहले से ही उठ रही थी। खबर है कि अभी 3 मार्च को हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन योजना के समर्थन में सरकारी कर्मचारियों ने बड़ा प्रदर्शन किया है.छत्तीसगढ़ की सरकार ने भी ऐलान किया है की वो 13 मार्च को आने वाले बजट में पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की घोषणा कर देंगे। और भविष्य में यदि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार आती है तो संभव है वहां भी पुरानी पेंशन योजना लागू हो जाये। और ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार भी पुरानी योजना को बहाल करने के लिए दबाव में है.यह दबाव ने केवल विपक्ष का है बल्कि कुछ भाजपा सांसद भी इसके पक्ष में हैं।

Indian Express अखबार ने तो इस फैसले की आलोचना में सम्पादकीय ही लिख दिया है। दो कलम घिस्सू विशेषज्ञों ने इस फैसले पर ‘राजकोषीय तबाही’ का फतवा भी जारी कर दिया है।

(1) ये विशेषज्ञ क्या कहते हैं और उनकी सोच कहाँ तक सही है उनके चिंतन का वैचारिक आधार क्या है और जनपक्षधर ताकतों का इस सवाल पर क्या रुख होना चाहिए आदि सवालों पर चर्चा करने से पहले आइये समझते हैं की ये दोनों योजनायें क्या हैं। पुरानी पेंशन योजना को पूर्व निर्धारित पेंशन योजना कहते हैं । (Defined Pension Benefit Schemes (DPBS) इस योजना के अंतर्गत कर्मचारी सेवा निवृति के उपरांत अपनी सेवानिवृति के समय मिलने वाले वेतन पर आधारित एक निश्चित दर से पूरी जिन्दगी पेंशन पाने का हकदार होता है। और उसकी मृत्यु के उपरांत पेंशन प्राप्तकर्ता के पति या पत्नी को भी पेंशन मिलती है। इसके विपरीत नयी पेंशन योजना (New Pension Scheme(NPS)) में नियोक्ता या काम पर रखनेवाला मालिक काम के दौरान ही निश्चित योगदान करके अपनी पेंशन की जिम्मेवारी से मुक्ति पा लेता है। इस पैसे को निर्धारित नियमों के अनुसार शेयर बाजार में लगाया जायेगा और उससे जो भी लाभ होगा उससे सेवानिवृति के बाद कर्मचारी को पेंशन दी जाएगी। वो कम हो या ज्यादा इससे पेंशन देने के लिए जिम्मेवार नियोक्ता का कोई सरोकार नहीं रहेगा।

हिंदुस्तान में सरकारी कर्मचारियों को अधिकारिक तौर पर पेंशन उपलब्ध है। 1990 में नवउदारवादी आर्थिकी के स्वीकार करने के बाद ही पेंशन सुधार के नाम पर पूर्व निर्धारित पेंशन योजना को त्यागकर उसके बदले नयी पेंशन योजना लागू करने का दबाव सरकार पर बना हुआ था। दुनिया में टैक्स आधारित सरकारी खजाने से दी जाने वाली पेंशन योजना को रद्द कर उसके बदले शेयर बाजार में पेंशन फंड्स के निवेश द्वारा मिली आय से ही पेंशन का भुगतान आज के दौर में प्रभावी नवउदारवादी आर्थिकी का एक आवश्यक स्तम्भ है। इस परिवर्तन के द्वारा सरकारी खजाने पर आर्थिक दबाव कम होगा और भविष्य में ही सही पूंजपतियों को सरकारी खजाने से सुविधाएँ लेना आसान होगा। इसके आलावा वित्तीय पूँजी को शेयर बाजार को ऊँचा करने और इसमें प्रभावी लोगों के हित साधन के लिए शेयर बाजार में उलटफेर करने के लिए विशाल धनराशी का एक ऐसा महत्वपूर्ण स्रोत मिल जाता है जिसको वो अपनी सुविधा अनुसार इस्तेमाल कर सकते हैं।

लेकिन यह फैसला तुरंत लागू न किया जा सका। अटल बिहारी की सरकार नयी पेंशन योजना 01.01.2004 से ही या उसके पश्चात केन्द्र सरकार की सेवा में भर्ती कर्मचारियों के लिए अनवार्य रूप से लागू कर पाई। इस फैसले में सशस्त्र बलों को छोड़ दिया गया। शायद नयी पेंशन योजना में होने वाले अनिश्चित पेंशन राशी के भुगतान आश्वासन की वजह से सरकार उनके विरोध का जोखिम लेने को तैयार नहीं थी। केंद्र सरकार ने नई पेंशन योजना को राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं किया था। इसके बावजूद धीरे-धीरे अधिकतर राज्यों ने इसे अपना लिया। फिलहाल पश्चिम बंगाल को छोडक़र सभी राज्य ने नयी पेंशन योजना को अपना लिया है।

सेवानिवृत करमचारियों को पुरानी पेंशन न देने की दुहाई मुख्यत: इस तर्क पर दी जाती है कि इस योजना का बोझ बर्दाश्त करना सरकारी क्षमता से बाहर है। केंद्रीय रिजर्व बैंक के अनुसार 20-21 में सरकारी खजाने पर (केंद्र और राज्य सरकार दोनों को मिला कर) पेंशन का भार 3.86 लाख करोड़ था। और भविष्य में यदि पुरानी पेंशन योजना चलती रहती है। तो यह भार और भी बढेगा। ऊपर चर्चित कलम घिस्सू विशेषज्ञ जिन्होंने पुरानी पेंशन योजना पर ‘राजकोषीय तबाही’ का फतवा चस्पा किया है का तर्क यह भी है कि पुराने पेंशन निगाम के चलते राज्य सरकारों को उपलब्ध धन का बड़ा हिस्सा केवल वेतन और पेंशन में ही खर्च हो जाता है तथा अन्य विकास कार्यों के लिए पैसा बचता ही नहीं है।

नवउदारवादी आर्थिकी का जन विरोधी चरित्र तो जग उजागर है पर धन के आभाव का पुरानी पेंशन योजना को त्यागने का तर्क कितना लचर है उसे तथ्यों का आलोक में भी समझा जा सकता है। इस देश की राष्ट्रीय आय करीबन 200 लाख करोड़ रूपया है जिसमें करीबन 35 लाख करोड़ केंद्र और राज्य सरकार दोनों के खजाने में टैक्स के रूप में आता है।

(2)इस कुल राशि में से 3.86 लाख करोड की पेंशन देनदारी (यानी कुल टैक्स आय का मात्र 10 प्रतिशत) को भारी बोझ या राजकोषीय तबाही कहना बौद्धिक बेईमानी और मक्कारी नहीं तो क्या है। न जाने क्यों मुक्तिबोध के शब्दों में ‘रक्तपायी वर्ग से नाभिनाल-बद्ध’ इन विशेषज्ञों की कलम को यह बताते हुए जंग भी लग जाता है कि दुनिया में हमारे जैसे अन्य देशों कि GDP ratio 20.9 प्रतिशत है जबकि हमारे देश में यह अनुपात 17.1 प्रतिशत ही है।

यानी यदि हम अपने देश में टैक्स चोरी को खत्म कर दे और अपने जैसे देशों जितना ही टैक्स हम भी लगायें तो आसानी से 8 लाख करोड़ रुपये का, आज की पेंशन की देनदारी से दोगुना अतिरिक्त टैक्स आसानी से जुटा सकते हैं. और विश्व स्तर के आंकड़े देखें तो पाएंगे की यूरोप के कई देशों में  GDP ratio 40 प्रतिशत है। यानी कि हम अपने देश में जन हितैषी कार्यों के लिए पैसा आसानी से जुटा सकते हैं यदि हुक्मरानों की नीयत सही हो और नेता लोग धन कुबेरों की दलाली छोड़े।

संक्षेप में कहें तो राजस्थान सरकार का पुरानी पेंशन बहाल करने का फैसला किसान आन्दोलन की तरह नवउदारवादी आर्थिक चिंतन के बढ़ते कदमों में एक महत्वपूर्ण अवरोध खड़ा कर सकता है और यह जन हितैषी फैसला है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि कांग्रेसी मुख्यमंत्री अपने संगठन कि नवउदारवादी आर्थिकी के प्रति प्रतिबद्धता के बावजूद इस फैसले को कहाँ तक लागू कर पाते हैं।

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Mazdoor Morcha
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