रामधारी खटकड़ भगतसिंह न्यूं बोल्या जज तै, फांसी तै ना डरते रै देश की खातर जान देणियें, मरकै भी ना मरते रै…(टेक) खून-खराबा काम नहीं म्हारा, दूर जुलम को करणा सै मातृभूमि लागै प्यारी, इसकी खातर मरणा सै अंग्रेजों से ताज छीन कै, हिन्द के सिर पै धरणा सै मेहनतकश हो सुखी जगत म्हं, इसका दुखड़ा हरणा सै शोषण को मिटावण का आह्वान जगत म्हं करते रै… देश की खातर जान देणियें, मरकै भी ना मरते रै… माणस नै जो माणस लूट्टै, कति देश तै प्यार नहीं जो जनता पै जुलम करै, चाहिए वो सरकार नहीं आम आदमी सब समझै, मूरख कोय नर-नार नहीं हिन्दू-मुस्लिम एक सैं सारे, आपस म्हं तकरार नहीं फूट गेर कै तुम जनता म्हं, फेर हकूमत करते रै… देश की खातर जान देणियें, मरकै भी ना मरते रै… अंग्रेजां नै म्हारे देश की कर दी रे – रे माट्टी जुल्म देख कै जनता ऊपर, मन म्हं होई उचाटी देश की धरती रोवण लाग्गी, क्यूं ना बेड़ी काट्टी ईब हुक्म ना चलै तुम्हारा, सारी जनता नाट्टी जुल्मी तै हम टक्कर लेंगें, ना घूंट सबर की भरते रै… देश की खातर जान देणियें, मरकै भी ना मरते रै… किते-किते गोदाम सड़ैं, किते भूखे बच्चे बिलकैं रै कितनी कलियां मुरझाई सैं, बीच आधम म्हं खिलकै रै बेचण लगे दलाल देश को, गोरयां गेल्यां मिल कै रै विचार करो इब देशवासियो, एक सलाह म्हं चल कै रै रामधारी कह वीर बणो, क्यूं ठण्डी आहें भरते रै… देश की खातर जान देणियें, मरकै भी ना मरते रै…