फरीदाबाद (म.मी.) किसी शरीफ़ नागरिक के विरुद्ध पुलिस को दी शिकायत देकर फर्ज़ी मुकदमे में लपेटने वालों के विरुद्ध अब पुलिस ने कड़ी कार्यवाही करनी शुरू कर दी है। किसी से बदला लेने अथवा ब्लैक मेल करने के उद्देश्य से इस तरह की शिकायत दर्ज करायी जाती हैं। ऐसे मामलों में आरोपी को जहां एक मुकदमेबाजी भुगतने के साथ-साथ सामाजिक तौर पर अपमानित होना पड़ता है, वहीं पुलिस तथा अदालतों का भी समय बर्बाद होता है।
झूठी शिकायतों को रोकने के लिये सीआरपीसी में धारा 182 के दंड का प्रावधान किया गया है। इस धारा में झूठी शिकायत एवं पुलिस को गुमराह करने वालों के विरुद्ध कार्यवाही की जाती है। इसमें अदालत 6 माह तक की कैद व जुर्माना कर सकती है। लेकिन इस धारा के तहत कार्यवाही करने का अधिकार केवल पुलिस के पास ही होता है यानी झूठा मुकदमा झेलने वाले के पास नहीं, लेकिन पुलिस अक्सर इस धारा का प्रयोग करने में बहुत आलसी रहती है। दरअसल पुलिस वही कर पाती है जिसके लिये उस पर बहुत दबाव होता है। इसके अलावा कुछ मामलों में झूठे केस बनवाये ही पुलिस द्वारा जाते हैं, उन पर तो 182 की कार्यवाही का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। फिलहाल अच्छी बात यह है कि फरीदाबाद पुलिस ने वर्ष 2022 में अभी तक ऐसे 84 मामलों का संज्ञान लेकर झूठी शिकायत कर्ताओं के विरुद्ध कार्यवाही शुरू कर दी है।
संदर्भवश मजदूर मोर्चा सम्पादक सुतीश कुमार के विरुद्ध पहला झूठा मुकदमा भी भादस की धारा 420, 384 506 के अन्तर्गत थाना कोतवाली में 28-09-1995 में दर्ज किया गया था। इस काम के लिये तत्कालीन डीजीपी रमेश सहगल ने यमुनानगर सब इन्स्पेक्टर हरेराम को इन्स्पेक्टर बनाकर एसएचओ कोतवाली तैनात किया था। शिकायतकर्ता के तौर पर मधुबन के निकटवर्ती गांव कुटेल के सरपंच को यहां खासतौर पर भेजा गया था। व्यापक जन आक्रोश के चलते गिरफ्तारी तो हो नहीं पाई और भेद खुल गया। एसएचओ का तबादला तथा निलम्बन हुआ, शिकायतकर्ता के विरुद्ध 182 की कार्यवाही शुरू तो हुई लेकिन बाट में खुर्द-बुर्द हो गयी ।
ताजातरीन मामला 14 अगस्त 2019 का है। तत्कालीन डीसीपी एनआईटी विक्रम कपूर ने आत्महत्या कर ली थी। थाना सेक्टर 31 में, इसे लेकर जो मुकदमा नम्बर 325 दर्ज हुआ इस में भी समादक सतीश कुमार का नाम केवल इस लिये लपेट दिया गया कि तत्कालीन सीपी संजय कुमार तथा डीसीपी क्राईम राजेश शर्मा अपनी खुदंक निकालता चाहते थे। लेकिन उच्चस्तरीय तफतीशी टीम ने उन्हें बेगुनाह पाया। जो भी हो इस सारी प्रक्रिया में पुलिस महकमे के संसाधनों की भारी बर्बादी हुई थी। क्या इस मामले में पुलिस को गुमराह करने वालों के विरूद्ध धारा 182 की कार्यवाही नहीं बनती?