फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का दावा करने वाले डीजीपी शत्रुजीत कपूर ने कुर्सी संभालते हुए संगठित अपराध पर अंकुश लगाने का संकल्प भले ही जताया है लेकिन उन्हें सबसे पहले अपने विभाग में चल रहे संगठित भ्रष्टाचार को खत्म करना होगा। थाने, चौकी में दलालों और पुलिस कर्मियों की मिलीभगत से चल रहे इस भ्रष्टाचार की जानकारी तो मुख्यमंत्री से लेकर पूर्व डीजीपी तक को थी लेकिन दलालों में बड़े भाजपा नेताओं का नाम सामने आने पर जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाले खट्टर और पिछले डीजीपी जानबूझ कर अनदेखी कर गए।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पुलिस विभाग में पैसे के बल पर बहुत कुछ कराया जा सकता है। थाने- चौकी में झूठा केस दर्ज कर मुकदमे में फंसाने, लड़ाई झगड़े के हल्के फुल्के मामले को गंभीर धाराएं लगवाने, थाना चौकी क्षेत्र मेें अवैध शराब की बिक्री बिना रोकटोक करने, अवैध खनन, अवैध कब्जे करने, बड़े अपराधियों को गिरफ्तारी से बचाने जैसे अनेक काम के लिए पैसा चलता है। यातायात चालान के भारी जुर्माने की रकम को कम करवाने के लिए भी सुविधा शुल्क वसूली का खेल चलता है। विभाग की छवि खराब न हो इसलिए थाने-चौकी पर पुलिसकर्मी सीधे सुविधा शुल्क नहीं लेते। यह काम थाने-चौकियों में मौजूद दलाल करते हैं।
इन दलालों का पुलिस पर इतना प्रभाव है कि अवैध कब्जे, खनन, चोरी, यहां तक कि हत्या तक के मामलों की जांच की दशा-दिशा इनके ही इशारों पर तय की जाती है। महकमे के इस भ्रष्टाचार का खुलासा अक्तूबर 2022 में करते हुए तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कानून-व्यवस्था संदीप खिरवार ने फरीदाबाद में सक्रिय 45 दलालों की सूची जारी की थी।
दलालों की इस सूची में केंद्रीय मंत्री किशनपाल गूजर के मामा राजपाल सहित कई गांवों के सरपंचों और सत्तापक्ष से जुड़े लोगों के नाम शामिल थे। एडीजीपी के अनुसार इस तरह के दलालों के कारण समाज में गलत संदेश जाता है और पुलिस विभाग की छवि भी धूमिल हो रही है। उन्होंने सूची जारी करते हुए पुलिस आयुक्त विकास अरोड़ा से इन दलालों पर नजऱ रखने, अंकुश लगाने और इनकी कारगुजारियों की गुप्त रिपोर्ट बना कर भेजने का आदेश जारी किया था।
विभाग की छवि धूमिल होने से बचाने के लिए आयुक्त विकास अरोड़ा ने मातहतों को निर्देश दिए लेकिन मोटी कमाई के लालची पुलिस कर्मियों ने मामा राजपाल सहित अन्य दलालों को इसकी सूचना दे दी। कार्रवाई रुकवाने के लिए भ्रष्टाचारियों ने चाल चलते हुए इस गुप्त सूची को सार्वजनिक कर दिया। सूची सार्वजनिक होने और उसमें दलाल भाजपाइयों के नाम सामने आते ही चर्चाएं होने लगीं। सरकार और भाजपा की छवि धूमिल होते देख केंद्रीय मंत्री किशनपाल गूजर और सरकार तुरंत सक्रिय हो गए, नतीजा दलालों पर कार्रवाई की फाइल पर लाल फीता लपेट कर कहीं नीचे दबा दिया गया। सूची सार्वजनिक हुए दस माह बीत चुके हैं कार्रवाई तो दूर थाने चौकियों में इन दलालों का काम बदस्तूर जारी है, और पुलिस भी वेतन से इतर मोटी आय करने में जुटी है।
बिजली निगम के मुखिया रहते हुए भ्रष्टाचार पर काबू करने के लिए शत्रुजीत कपूर ने जिस तरह मातहतों के पेच कसे थे उसी तरह पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए उन्हें पहले पुलिस-दलाल गठजोड़ पर प्रहार करना चाहिए। इसके लिए उन्हें ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है, 45 दलालों की सूची तो उनके पास है ही, बस उनके खिलाफ कार्रवाई करें, सिर्फ दलालों पर ही कार्रवाई नहीं की जाए उन पुलिसकर्मियों पर भी अंकुश लगाया जाना जरूरी है जो दलालों के नेटवर्क से जुड़े हैं ताकि यह पूरा नेक्सस खत्म हो।
वरिष्ठों को दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री खट्टर ने शत्रुजीत कपूर को डीजीपी बनाया है। अब देखना ये है कि कपूर भ्रष्टाचार पर अपने पुराने तेवर बरकरार रख पाएंगे या फिर मुख्यमंत्री के अहसानों का बदला चुकाने के लिए खट्टर के यस मैन बन कर रह जाएंगे।