फरीदाबाद (म.मो.) पुलिस महकमे से निकली दलालों की सूची सार्वजनिक होने के चलते भाजपा नेता अत्यधिक परेशान नज़र आ रहे हैं। सूची बनाने व इसे सार्वजनिक करने को लेकर शहर के एक बड़े नेता स्थानीय पुलिस अधिकारियों से काफी खफा हैं। जानकारों की माने तो इसे लेकर इनके बीच काफी नोक-झोंक भी हुई है। मजे की बात तो यह है कि कोई भी पुलिस अधिकारी इस सूची के जारी तथा सार्वजनिक होने की जिम्मेदारी नहीं ले रहा। इसे केवल अनाधिकृत रूप से लीक होना बताया जा रहा है।
गतांक में सुधी पाठकों ने पढ़ा होगा कि पुलिस महकमे द्वारा घोषित दलाल केवल दलाल ही नहीं हैं, वे अपना राजनीतिक प्रभाव भी इस्तेमाल करते हैं। अफसरों के तबादले एवं तैनातियां आदि करा कर उन पर भारी दबाव बना कर रखते हैं। इसके चलते कई बार पुलिस अफसरों को न चाहते हुए भी उल्टे-पुल्टे काम करने पड़ते हैं। ऊपर तक के अधिकारी भी ऐसे में लाचारी व्यक्त कर देते हैं। जाहिर है कि इसके चलते जिले भर में गुन्डों एवं अपराधी गिरोहों के हौंसले बुलंद होते जा रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप क्राइम काबू से बाहर होता जा रहा है।
महकमे के भरोसेमंद एवं उच्च पदस्थ सूत्रों की माने तो दलालों की यह सूची एक सोची-समझी रणनीति के तहत लीक करवाई गई है। राजनीतिक दबावों के चलते ऊंचे से ऊंचे स्तर के पुलिस अधिकारी इन राजनीतिक दलालों से पार पाने में अपने आप को असमर्थ पा रहे थे। ऐसे में इन्हें सार्वजनिक तौर पर बेनकाब करके इन्हें कुछ हद तक नियंत्रित कर पाने की नीयत से यह सब किया गया है। भाजपा के तमाम बड़े नेताओं ने इस सूची को मीडिया में आने से रोकने के लिये भरसक प्रयास किये थे, जो काफी हद तक सफल भी रहे।
इन दलालों द्वारा पुलिस पर बनाये जाने वाले दबाव की हकीकत समझने के लिये सात वर्ष पूर्व की एक घटना को याद करना जरूरी है। मामला 10 जून 2015 का है। मेवला महाराजपुर गांव के पचासों युवक जो अपने-आप को केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर के भाई-भतीजे आदि बताते थे, अपने शिकार का पीछा करते हुए ओल्ड फरीदाबाद के थाने में घुस आये थे। जिस व्यक्ति का वे शिकार करना चाहते थे। उसे पीसीआर गाड़ी ने जैसे-तैसे उनसे बचा कर थाने में घुसा दिया था।
लाठी-डंडों आदि से लैस बेखौफ भीड़ थाने में ऐसे घुसी चली आई जैसे कि थाना न होकर गांव की चौपाल हो। बीच-बचाव करने एवं उन्हें रोकने टोकने वाले पुलिसकर्मियों को भी इन युवकों ने नहीं बख्शा। तत्कालीन एसएचओ भारतेन्दु के साथ भी पूरी बदतमीजी एवं हाथा-पाई की। सूचना पाकर तत्कालीन डीसीपी सेन्ट्रल एवं क्राइम विजय प्रताप सिंह तुर्त-फुर्त भारी दल-बल के साथ मौके पर पहुंच गये और जम कर उचित एवं वांछित कार्रवाई कर डाली।
यह सब मंत्री जी को कैसे सहन हो सकता था? उनके पैतृक गांव वालों के साथ पुलिस का यह व्यवहार भला वे कैसे पचा सकते थे? रात को ही तत्कालीन सीपी सुभाष यादव, डीसीपी व एसएचओ को मंत्री जी ने अपनी कोठी पर तलब कर लिया। घंटों मीटिंग चली, इसके बावजूद भी सुभाष यादव ने कड़ा स्टैंड लेते हुए दंगाइयों के विरुद्ध उचित धाराओं में मुकदमा दर्ज कर दिया। कमजोरी लाल खट्टर की सरकार पर कृष्णपाल ने दबाव बना कर डीसीपी व एसएचओ का तबादला तो तुरंत करा दिया, लेकिन सीपी का नहीं करा पाया क्योंकि इस पर पुलिस महकमे ने कड़ा स्टैंड ले लिया था। तफ्तीश को अपने लोगों के हक में कराने के लिये केस को चंद घंटों के भीतर ही स्टेट क्राइम के हवाले करा दिया गया। इसके मुखिया उस वक्त मंत्री जी के सजातीय केपी सिंह होते थे। इसके परिणामस्वरूप किसी भी दोषी का कुछ नहीं बिगड़ सका।
इस घटना से जहां एक ओर पुलिस का मनोबल गिरता चला गया वहीं दूसरी ओर गुंडा एवं अपराधी गिरोहों की रफ्तार में वृद्धि होती चली गई। जहां-तहां जायदादों पर कब्जे तथा मार-पीट द्वारा डरा-धमका कर आम लोगों से वसूली के धंधे जोर पकडऩे लगे। इस श्रृंखला में बीते दिनों चेची नामक एक दलाल ने सेक्टर 28 की पुलिस चौकी में एक संभ्रांत व्यक्ति को बुला कर बुरी तरह से पीट कर उसके हाथ-पैर तोड़ दिये थे। नहर पार के ग्रेटर फरीदाबाद में तो इन गिरोहों की गुंडागर्दी एवं उठाइगिरी का तो खाता ही काफी लम्बा-चौड़ा है। सोसाइटियों में नये-नये बसे लोगों से ये लोग जम कर वसूली करते हैं। खुद ही सिक्योरिटी एवं मेन्टेनेंस के ठेके भी ले लेंगे, आरडब्लयूए पर अपना पूरा कब्जा रखेंगे, नहीं तो उन्हें मारे-पीटेंगे। इसी क्षेत्र की एक सोसाइटी के सक्रिय निवासी सेवानिवृत विंग कमांडर एवं वकील सतेन्द्र दुग्गल पर भी इन गुंडों ने कातिलाना हमला करने में कतई गुरेज नहीं किया। पुलिस बेशक तमाशाई बनी रहती है लेकिन लूट कमाई से अपना हिस्सा भी वसूलना नहीं छोड़ती।
उक्त सूची के प्रकाशित होने से और कुछ हो या न हो परन्तु जनता को एक बात तो स्पष्ट हो ही जानी चाहिये कि इन गुंडा गिरोहों का राजनीतिक गठजोड़ कितना मजबूत है।