चंडीगढ़ (मज़दूर मोर्चा) भाजपाई खट्टर सरकार ने पुलिस भर्ती को अपने वोट बैंक में परिवर्तित करने की नीयत से करीब साढ़े छ: हजार सिपाहियों की भर्ती प्रक्रिया चलाई। राज्य के 75 हजार पुलिस बल में हर माह सैंकड़ों पुलिसकर्मी सेवा निवृत होते रहते हैं। साल भर में निवृत होने वाले तथा नये पद सृजित होने का आकलन करके हर साल नियमित रूप से भर्ती की जानी चाहिये। इस तरह की जाने वाली भर्ती से ट्रेनिंग कार्यक्रम भी ठीक ढंग से चलता रह सकता है।
इन सब बातों को दरकिनार करते हुए खट्टर सरकार चुनाव के निकट ही थोक के भाव भर्तियां निकालती है ताकि भर्ती होने वालों के साथ राजनीतिक सौदेबाज़ी की जा सके। वही सब इस भर्ती प्रक्रिया में चल रहा था। नियमानुसार शारीरिक एवं बौद्धिक परीक्षा में सफल रहने वाले अभ्यार्थियों की एक मेरिट लिस्ट बनाई गई थी। लेकिन इस लिस्ट में खट्टर के संघी चहेते आशा अनुरूप स्थान न पा सके तो खट्टर जी ने ‘नॉर्मलाइजेशन’ का चोर दरवाजा खोल दिया। इसके अनुसार सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति के भी अंक रखे जाते हैं। इन अंकों के आधार पर जब संघी चहेते मेरिट लिस्ट में घुसाए जायेंगे तो पहले से ही मेरिट में आये अभ्यार्थी आउट हो जायेंगे।
इसी मुद्दे को लेकर अनेक अभ्यार्थी पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में पहुंच गये। उनकी याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई करना तो मान लिया लेकिन सरकार ने नियुक्ति पत्र देना जारी रखा तो अभ्यार्थी पुन: कोर्ट पहुंचे। इस बार कोर्ट ने नियुक्ति पत्र देने पर पूरी रोक लगा दी। इस प्रकार अब यह भर्ती प्रक्रिया अनिश्चित काल के लिये अटक गई है। भाजपाई सरकारों के शासनकाल में कभी पर्चे लीक होने तो कभी हाई कोर्ट द्वारा रोक लगाना एक आम बात है। इसके चलते सरकार का वह पैसा बच जाता है जो उसे वेतन के रूप में नवागन्तुकों को देना पड़ता। लोग बेरोजगार रहें तो रहें, सरकारी मशीनरी ठप्प रहे तो रहे, खट्टर को क्या फर्क पड़ता है!