पुलवामा हमला- लापरवाही या षड्यंत्र

पुलवामा हमला- लापरवाही या षड्यंत्र
April 26 16:26 2023

योगेन्द्र यादव
जब से जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का सनसनीखेज इंटरव्यू आया है तब से मानो टी.वी. चैनलों और अखबारों को सांप सूंघ गया है। गुलाब नबी आजाद के छोटे-बड़े आरोपों पर लंबे-लंबे कार्यक्रम चलाने वाले चैनलों के पास इस महाखुलासे पर चर्चा करने के लिए एक मिनट भी नहीं है। 15 अप्रैल के अखबारों में कहीं भी इस समाचार का जिक्र तक नहीं था।

यह बताना जरूरी है कि जब 14 फरवरी 2019 को पुलवामा का हादसा हुआ उस समय सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे। उन्होंने हाल ही में पहले प्रकाश टंडन और फिर करण थापर को दिए इंटरव्यू में खुलासा किया कि यह हादसा सरकार की गलती की वजह से हुआ। उन्होंने प्रधानमंत्री को उसी दिन यह बताया कि यह हादसा हमारी गलती से हुआ है और इसे टाला जा सकता था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने और फिर अजित डोभाल ने उन्हें इस बारे में चुप रहने को कहा।

यह जरूरी नहीं कि इस इंटरव्यू में सत्यपाल मलिक ने जो कुछ कहा उसे ब्रह्मवाक्य की तरह सच मान लिया जाए। यह कोई छुपी बात नहीं है कि कश्मीर के राज्यपाल होते हुए सत्यपाल मलिक की प्रधानमंत्री से कुछ अनबन हो गई थी और वह पिछले कुछ वक्त से नाराज चल रहे हैं। ऐसे में उनके आरोप में किसी द्वेष या खुंदक के चलते अतिशयोक्ति या मिथ्या कथा की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

अगर इस इंटरव्यू के बाद राष्ट्रीय मीडिया सत्यपाल मलिक से जिरह करता, उनके हर दावे की पुष्टि करता और अगर उनसे कोई गलत बयानी हुई है उसकी आलोचना करता तो वह सर्वथा उचित होता। लेकिन इस मुद्दे पर सन्नाटे से तो यही आभास होता है कि मीडिया को फोन करके धमकाया गया है कि खबरदार इस खबर को हाथ नहीं लगाना है। इस प्रायोजित सन्नाटे से तो इंटरव्यू के खुलासों का वजन और भी बढ़ जाता है। लेकिन केवल इस आधार पर इतने गंभीर मुद्दे के बारे में राय बना लेना सही नहीं होगा। हमें यह जांच करनी होगी कि क्या इसका कोई स्वतंत्र प्रमाण भी है कि पुलवामा हमले के पीछे सरकार की अपनी लापरवाही या उससे भी गहरा षड्यंत्र था।

संयोग से इस प्रमाण के लिए हमें नए सिरे से शोध करने की आवश्यकता नहीं है। अंग्रेजी पत्रिका ‘फ्रंटलाइन’ में फरवरी 2021 के अंक में आनंदो भक्तो ने सरकार के गुप्तचर तंत्र के संदेशों की छानबीन करने के बाद यह खुलासा किया था कि इस हादसे से पहले सरकार को 1 या 2 नहीं, कुल 11 बार गुप्तचर सूचना से यह खुफिया जानकारी मिल चुकी थी कि ऐसा कुछ होने वाला है। ये सभी दस्तावेज फ्रंटलाइन पत्रिका के पास हैं। आनंदो भक्तो की इस खोजी रिपोर्ट का आज तक सरकार ने खंडन नहीं किया है।

आइए इन तथ्यों पर एक नजर डालते हैं जो सीधे सत्यपाल मलिक के दावे की पुष्टि करते हैं। फ्रंटलाइन के लेख के मुताबिक जम्मू-कश्मीर पुलिस को पहली व दूसरी चेतावनी पुलवामा हादसे से डेढ़ महीना पहले 2 और 3 जनवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के डी.जी.पी. और कश्मीर रेंज के आई.जी.पी. के नाम एक खुफिया रिपोर्ट से मिली। इसमें बताया गया था कि दक्षिण कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद ‘किसास मिशन’ के तहत बदले की तैयारी कर रहा है। इस चेतावनी की गंभीरता को रेखांकित करते हुए इस रिपोर्ट ने यह याद दिलाया कि पिछली बार ऐसी चेतावनी के बाद पुलवामा में सी.आर.पी.एफ. के कैम्प पर हमला हुआ था।

उसी सप्ताह 7 जनवरी को तीसरी चेतावनी मिली कि 3 आतंकवादी (जिनमे एक विदेशी है) कश्मीर के शोपियां इलाके में युवाओं को आई.ई.डी. विस्फोट की ट्रेङ्क्षनग दे रहे हैं। इसकी पुष्टि 18 जनवरी की खुफिया रिपोर्ट से हुई कि पुलवामा के अवंतीपोरा इलाके में विदेशी आतंकवादियों के सहयोग से 20 स्थानीय मिलिटैंट कुछ बड़ा करने की योजना बना रहे हैं। उसी दिन और फिर 21 जनवरी को पता लगा कि किसास मिशन के तहत 2017 में जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया के भतीजे तलहा राशिद की मौत का बदला लेने की योजना बन रही है। लेकिन तब तक यह पता नहीं था कि यह हमला कहां होगा, कौन करेगा और कार्रवाई की जाए तो किसके खिलाफ की जाए? 24 और 25 जनवरी को मिली खुफिया जानकारी ने इस कड़ी को भी जोड़ दिया।

पता लगा कि जैश-ए-मोहम्मद के अवंतीपोरा ग्रुप ने मुदस्सर खान के नेतृत्व में बड़े फिदायीन हमले की रिपोर्ट की है और वह समूह पुलवामा के शाहिद बाबा के संपर्क में है। अब पुलिस के हाथ कार्रवाई करने लायक सूचना थी। मुदस्सर एक स्थानीय आतंकी था और उस तक पहुंचना असंभव नहीं था। 25 तारीख को खुफिया खबर मिली कि मुदस्सर खान को मिडूरा गांव के पास देखा गया है। अब तक साफ था कि तैयारी अवंतीपोरा या पांपोर के पास चल रही है। 9 फरवरी को सी.आर.पी.एफ. के पास भी खबर आई कि जैश-ए-मोहम्मद बदले की कार्रवाई करने वाला है। हमले से 2 दिन पहले यह भी पता लग चुका था कि हमला कैसा होगा।

12 फरवरी को केंद्र सरकार की खुफिया एजैंसी आई.बी. के मल्टी एजैंसी सैंटर में रिपोर्ट आई कि जैश-ए-मोहम्मद के पाकिस्तानी हैंडलर जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली सडक़ पर आई.ई.डी. ब्लास्ट की तैयारी कर रहे हैं। और फिर हमले के 24 घंटे पहले अंतिम और 11वीं चेतावनी मिली कि जैश-ए-मोहम्मद सुरक्षा बलों के रास्ते में आई.ई.डी. ब्लास्ट कर सकता है और सुरक्षा बलों को तत्काल अलर्ट किया जाए।

इन तमाम चेतावनियों के बावजूद अगले दिन यानी 14 फरवरी को अढ़ाई हजार से अधिक सी.आर.पी.एफ. के जवानों को उसी सडक़ से भेजा गया जहां आई.ई.डी. ब्लास्ट की खुफिया जानकारी थी। सी.आर.पी.एफ. ने सडक़ की बजाय हवाई जहाज से भेजने की मांग की, लेकिन उसे ठुकरा दिया गया। यही नहीं, सत्यपाल मलिक के अनुसार उस सडक़ के सभी नाकों को बंद भी नहीं किया गया। फिर वही हुआ जिसका अंदेशा था।

उसी जैश-ए-मोहम्मद द्वारा उसी मुदस्सिर खान के नेतृत्व में उसी पुलवामा, अवंतीपोरा इलाके में वहीं आई.ई.डी. ब्लास्ट किया गया जिसकी खबर मिल चुकी थी। हमारे 40 जवान शहीद हो गए। इसलिए सत्यपाल मलिक के खुलासे को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह सारे प्रमाण और उनका यह खुलासा कि प्रधानमंत्री ने उन्हें इस पर चुप रहने को कहा, यह राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। अगर इतने सब खुफिया इनपुट के बावजूद सुरक्षाबलों को मौत के मुंह में झोंका गया तो या तो यह भयंकर लापरवाही या षड्यंत्र का मामला था। देश को यह जानने का अधिकार है कि यह षड्यंत्र किसके इशारे पर हुआ। जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिल जाता तब तक सत्यपाल मलिक द्वारा किए खुलासों की गूंज बनी रहेगी।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles