प्रशासनिक व्यवस्था में तबादलों का विशेष महत्व रहता है

प्रशासनिक व्यवस्था में तबादलों का विशेष महत्व रहता है
October 16 15:29 2023

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा)। बीते सप्ताह खबर आई कि पुलिस आयुक्त राकेश आर्य ने बड़े पैमाने पर तबादले किए। चालीस-पचास चौकी इंचार्ज और कुछ एसएचओ बदले। सही किया, और ये जरूरी भी है। वास्तव में पुलिस महकमा ही नहीं सभी महकमों में तबादले की पॉलिसी है। न्यायपालिका में हर तीन साल बाद जज का तबादला होना ही है, हां कुछ अपवाद हो सकते हैं। बैंकों में भी कोई भी मैनेजर या अधिकारी निश्चित समय के लिए ही आते हैं। अगर किसी को स्थायी रूप से बैठा दिया जाए तो उसके किए हुए घपले सदैव दबे ही रह जाएंगे, उजागर नहीं हो पाएंगे।

इसी पॉलिसी को गृहण करते हुए हर महकमे में तबादले का नियम बनाया गया था। लेकिन बीते बीस-तीस साल से देखा जा रहा है तबादले का सारा काम गड़बड़ हो चुका है। यहां एक व्यक्ति सिपाही भर्ती होता है, यहीं रहकर वह हवलदार एएसआई, सब इंस्पेक्टर और इंस्पेक्टर तक भी पदोन्नत हो जाता है। अधिकतम फरीदाबाद से पलवल, पलवल से गुडग़ांव और गुडग़ांव से फरीदाबाद में ही घूम रहा होता है। अब जिले इतने छोटे हो गए हैं मानो वह जिले में ही घूम रहा है, वरना पहले ये नहीं होता था। अंबाला रेंज के डीआईजी एक जिले से दूसरे जिले में तबादला करता, तो बहुत दूरी होती थी। यदि होडल से तबादला करता था तो उसकी रेंज आधा हिमांचल, शिमला तक होती थी, अंबाला भेज दे, शिमला भेज दे या हरियाणा में कहीं भेज दे। अब तो सिपाही हो गया तो इंस्पेक्टर बनने तक यहीं रहेगा ही।

जो आदमी एक जगह बैठा रहता है तो वो अपने सारे घपले घोटाले दबाता ही रहेगा, वह हाईलाइट नहीं होंगे। इतने दिन एक ही जगह जमे रहने पर स्थानीय दलालों से उसके जो रिश्ते बनेंगे उससे अपराध तो बढ़ेगा ही रिश्वतखोरी में भी बढ़ोत्तरी होगी।

ये तो नहीं कहा जा सकता कि तबादले से सारी समस्याएं हल हो जाएंगी लेकिन इससे भ्रष्टाचार पर काफी अंकुश लगने की संभावनाएं बढ़ती हैं चालीस-पचास पुलिस कर्मियों के तबादले कर दिए गये, ये ठीक है लेकिन नाकाफी है। डीजीपी साहब को फैसला लेना चाहिए कि जो यहां पर इस एरिया में हैं, हवलदार से ऊपर से सारे अधिकारियों को जींद, यमुना नगर के इलाके में भेजा जाए और वहां वालों को इधर भेजा जाए। कुछ दिन तो शांति रहेगी। नए लोगों को यहां आकर संपर्क बनाने में, दलालों का नेटवर्क खड़ा करने में कुछ तो समय लगेगा।

यहां जो अधिकारी बीते कई दशकों से जमे हुए हैं, उनकी जड़ें बहुत गहरी हो चुकी हैं। सरकारी नौकरी के अलावा सबने अपने धंधे कर रखे हैं। कोई लेबर सप्लाई कर रहा है तो कोई सिक्योरिटी गार्ड सप्लाई कर रहा है तो कोई जुआ-सट्टेबाजों से मिला हुआ है। ऐसे दर्जनों पुलिस अधिकारी हैं जो बीस, तीस, चालीस से साठ-सत्तर लाख रुपये बाजार में ब्याज पर उठाए हुए हैं। अब तो कोई सिपाही मोटर साइकिल से नीचे चलता नहीं, कई तो कारों में चल रहे हैं। एएसआई, सब इंस्पेक्टर बीस बीस लाख की कारों में चल रहे हैं तनख्वाह सारी बैंक में सुरक्षित है, इतनी रिश्वतखोरी है। एक वो जमाना भी था जब इंस्पेक्टर हो जाते थे लेकिन उनके पास मोटर साइकिल लेने तक का जुगाड़ नहीं होता था। आज सिपाही को देखो तो वह मोटर साइकिल पर चल रहा है, कार भी हो जाए तो क्या बात है। ये खुली रिश्वतखोरी चल रही है।

पूरे महकमे को एक निश्चय करना चाहिए और तबादले होने चाहिए, लेकिन इसमें भी एक समस्या है, हालांकि सीपी साहब ने ये काम किया तो है लेकिन कितने दिन टिके रह पाएंगे। राजपाल मामा भी तो बैठे हैं, उन्होंने पुलिस का पूरा ठेका अब तक उठा रखा था अब उनके दबाव से सीपी महोदय कब तक बचेंगे ये देखना होगा। कब उनकी सिफारिशें आएंगी और कब उनके जरिए मलाईदार पोस्टों के लिए सीपी पर दबाव डलवाएंगे और फिर वहीं पहुंचेंगे। क्या सीपी इसका प्रतिरोध कर पाएंगे यह मुश्किल लगता है। केवल सीपी ही नहीं डीजी को भी फैसला लेना चाहिए कि पुलिसकर्मियों का तबादला दूर-दूर किया जाए ताकि दल्लागीरी और अपनी सौदेबाजियां न कर सकें। ंराजनीतिज्ञ खासकर सत्ता पक्ष के नेता अपने चहेतों की मलाईदार पोस्टिंग कराते हैं और फिर उनसे उल्टे सीधे काम कराते हैं।

सेक्टर 11 चौकी का दस साल पहले का एक किस्सा याद आता है। जिसमें चौकी इंचार्ज कहता है कि क्या करें हमारे जिम्मे तो विधायक महोदय का दफ्तर है जिस पर एक लाख रुपये महीने की फटीग है। मानी सी बात है कि वह पुलिसकर्मी ये खर्च अपनी जेब से देने से रहा, फटीग निपटाने के लिए कुछ न कुछ तो करेगा ही। यह एक उदाहरण है हर जगह यही हो रहा है। जब राजनीतिक दखलअंदाजियां होंगी तो अधिकारी डकैती मारेगा ही मारेगा। लगता नहीं कि डीजीपी शत्रुजीत कपूर और सीपी राकेश आर्य राजनेताओं की मनमानी और दखलंदाजी रोक पाएंगे।

इसी कड़ी में जोड़ा जा सकता है हमने गतांक में मुंडकटी थाने के वर्तमान सब इंस्पेक्टर धर्मेंद्र की कारस्तानी छापी थी। धर्मेंद्र 2019 में इसी थाने में एएसआई था। उस समय कुछ दबंगों ने अनपढ़, गरीब भूपेंद्र की पिटाई कर हाथ-पैर तोड़ दिए थे। इस एएसआई ने कार्रवाई नहीं की। पीडि़त ने डीजीपी तक का दरवाजा खटखटाया तब जाकर उसकी एफआईआर लिखी गई। एएसआई धर्मेंद्र ने उस गरीब आदमी पर दबाव डाल कर चतुराई से पीडि़त को बहला-फुसला कर एक शपथपत्र पर उससे अंगूठा लगवाया और पीडि़त के खिलाफ ही 182 की कार्रवाई कर दी। अब वही एएसआई वर्तमान में उसी थाने में सब इंस्पेक्टर हो गया। अब पिछले कारनामे तो पीडि़त भुगत ही रहा था बदले की भावना से धर्मेंद्र ने उसके खिलाफ नए खाते और खोल दिए। अगर वो यहां से कहीं दूर चला गया होता, उसकी जगह आने वाला नया अफसर जो भी कुछ करता तो अपने विवेक से ही तो करता। तबादला पॉलिसी प्रशासनिक अधिकारियों ने बहुत सोच समझ कर बनाई थी, ये बहुत जरूरी है इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है अगर इस पर गंभीरता से काम किया जाए और राजनीतिक दखलंदाजी से बचा जाए तो बेहतर होगा।

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Mazdoor Morcha
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