बहादुरगढ़ (म.मो.) दिल्ली-रोहतक रोड पर रोहद गांव के निकट गैसकट बनाने वाली एरोफ्लेक्स लिमिटेड नामक कंपनी के चार मज़दूर जहरीली गैस के शिकार होकर मारे गये व दो आईसीयू में हैं। वास्तव में इनकी मौत के लिये जहरीली गैस जिम्मेवार नहीं बल्कि वे सरकारी घूसखोर अधिकरी हैं जिन्होंने कम्पनी मालिकान को खुली छूट दे रखी है कि वे अपने मज़दूरों को जैसे चाहें मौत के हवाले कर सकते हैं।
फैक्टरी नियमो के अनुसार जब भी कोई फैक्टरी लगती है तो उसमें सबसे पहला काम मजदूरों की सुरक्षा को देखना होता है। इसके लिये बाकायदा फैक्टरी एक्ट के तहत इन्स्पेक्टरों की एक अच्छी-खासी फौज इस राज्य में तैनात हैं। जो बिना कुछ जांचे-परखे मालिकान की इच्छानुसार उन्हें स्वीकृति प्रदान कर देते हैं। तिमाही-छैमाही निरीक्षण के दौरान भी केवल घूस लेकर कागजी खानापूर्ति कर दी जाती है। यदि इन निरीक्षण कर्ताओं ने उस कैमिकल के निस्तारण की प्रक्रिया की जांच सही से की होती तो ये मज़दूर इस तरह बेमौत न मारे गये होते।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जिसका एकमात्र कार्य केवल और केवल घूसखोरी ही रह गया है, उसने भी इस घातक कैमिकल के निस्तारण प्रक्रिया को कभी नहीं जांचा था। जैसा कि जानकारों से पता चल रहा है कि कम्पनी अपने इस वेस्ट कैमिकल को सही एवं वैज्ञानिक ढंग से निस्तारित करने की बजाय इसे इधर-उधर, दायें-बायें करती आ रही थी। यदि निस्तारण की प्रक्रिया को सही ढंग से किया गया होता तो मज़दूरों को मरने के लिये उस गढ्ढे में न उतरना पड़ता।
इस हादसे के बाद गिरफ्तारी से बचने के लिये मालिकान तो फरार हो चुके हैं जो शीघ्र ही अग्रिम जमानत करा कर आ खड़े होंगे। लेकिन वे सरकारी अधिकारी जिनकी घूसखोरी के चलते ये मज़दूर मारे गये, वे बेखौफ खुले घूम रहे हैं। उपायुक्त ने हमेशा की तरह जांच के नाम पर एक कमेटी बैठा दी है जिसने कुछ नहीं करके देना।