फरीदाबाद (म.मो.) अब न तो कहीं पराली जल रही है और न ही ठंड के चलते धुंध पड़ रही है। इसके बावजूद शहर भर में धूल की चादर सी छाई हुई है। दिनांक 23-24 मार्च की रात को 10 बजे तक शहर के अधिकांश सडक़ों पर, राजमार्ग सहित, धूल का गुबार छाया हुआ था। प्रात: आठ बजे सेक्टर 14,17,16 व 15 होते हुए जब यह संवाददाता एनआईटी पांच नम्बर होते हुए दो नंबर पहुंचा तो धूल का गुबार ज्यों का त्यों कायम था। कई जगह, विशेष कर पांच नम्बर व दो नम्बर में कूड़ा जलने से उठने वाला धुआं इस गुबार को और बढा रहा था।
एक ओर तो सरकार झाड़ू लगाने से उठने वाली धूल से बचने के लिये आधुनिक एवं कीमती मशीनें खरीद कर नगर निगम में खड़ी कर देती है और दूसरी ओर सडक़ों पर, बल्कि सडक़ों के नाम पर मौजूद गड्ढों से उठने वाली धूल ने पूरे वायुमंडल को खतरनाक रूप से प्रदूषित कर रखा है। नागरिक चाहे कितना ही जतन कर ले वे इसी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। पाउडर से भी महीन धूल कण नागरिकों के फेफड़ों, आंखों व गले को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसके चलते जनता तरह-तरह की बीमारियों की शिकार हो रही है। लानत है ऐसी सरकार को जो अपने नागरिकों को सांस लेने भर को शुद्ध हवा भी उपलब्ध न करा पाये। शहर भर में जगह-जगह वायु-प्रदूषण मापक यंत्र तो लगा दिये गये हैं लेकिन प्रदूषण समाप्त करने के लिये लफ्फाजी के अलावा कोई काम नहीं हो रहा है। वायु प्रदूषण मापक यंत्र रोजाना बता रहा है कि प्रदूषण 300 हो गया, 400 हो गया, 500 हो गया, खतरे की सीमा लांघ गया आदि-आदि। लेकिन इसके बावजूद शहर में मौजूद तमाम जनप्रतिनिधि व अधिकारीगण निश्चित होकर लूटने-खाने में व्यस्त हैं। ये लो व्यस्त हों भी क्यों नहीं जब जनता को ही ऐसे गंभीर मुद्दों को लेकर सडक़ों पर उतरने की कोई जरूरत महसूस नहीं होती। उनके पास तमाम तरह के वाहियात मुद्दों पर लडऩे-भिडऩे का समय तो है, जागरणों में रात काली तो कर सकते हैं, नेताओं की रैलियों में भीड़ तो बन सकते हैं लेकिन अपने असल मुद्दों के लिये किसी के पास फुर्सत नहीं है।