फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) शहर में बढ़ते प्रदूषण के जाने-माने कारणों को दूर करने की अपेक्षा वायु शोधक उपकरणों की खरीदारी की योजना बनाई जा रही है। नगर निगम कार्यालय के पीछे बने सभागार परिसर में एक एंटी स्मॉग गन पहले से ही खड़ी है जिसका कोई लाभ नज़र नहीं आया। यह मशीन हवा में पानी का स्प्रे करके धूल कणों को नीचे गिराने के लिये लगाई गई थी। अब स्मार्ट एयरबिन (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) नामक एक और नई मशीन लगाने जा रहे हैं। इस पद्धति पर काम करने वाली यह मशीन 30 मीटर तक से जहरीली गैस और धूल कण आदि को सोख कर हवा को शुद्ध कर देगी।
25 लाख की लागत वाली यह मशीन शुरुआती तौर पर किसी व्यस्त चौराहे पर लगाने की योजना है। इसकी सफलता एवं गुणवत्ता का आकलन करने के बाद ऐसे ही अन्य कई स्थानों पर इसे लगाया जायेगा। जैसा कि बताया जा रहा है, यह उपकरण मात्र 30 मीटर तक की परिधि की वायु का शोधन कर पायेगा। अब सवाल यह पैदा होता है कि 25 लाख से अधिक आबादी वाले इस लम्बे-चौड़े शहर में ऐसे कितने उपकरण लगाने पड़ेंगे अथवा ऐसे उपकरण केवल वीआईपी क्षेत्रों में ही लगाये जायेंगे?
शासकवर्ग सारी जनता को वायु प्रदूषण से राहत दिलाने की अपेक्षा केवल कुछ चुनिंदा लोगों को ही शुद्ध हवा उपलब्ध कराने की बात तो सोच ही रहा है, साथ में नये-नये उपकरण खरीदने के नाम पर जो लूट कमाई होगी वह उनका बोनस होगा। यदि शासक वर्ग को वास्तव में ही प्रदूषण मुक्त वायुमंडल बनाना होता तो वह उन कारकों को दूर करता जिनके चलते वायु प्रदूषण हो रहा है। सडक़ों से उडऩे वाली धूल, बिल्डरों द्वारा निर्माणाधीन इमारतों पर नियमों का पालन न करने से उडऩे वाली धूल, सडक़ों पर लगने वाले जाम से होने वाला अतिरिक्त वायु प्रदूषण बहुत आसानी से रोका जा सकता है, बशर्ते कि रोकने वालों की नीयत साफ हो।
इसी तरह फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुऐं को भी रोका जा सकता है यदि सरकार उन्हें पर्याप्त मात्रा में बिजली तथा उचित दामों पर वैकल्पिक ईंधन उपलब्ध कराये। महंगी घरेलू गैस के चलते लोगों को जो वैकल्पिक ईंधन जलाना पड़ता है वह भी प्रदूषण को बढ़ाता है। निकम्मे एवं भ्रष्ट प्रशासन की कोताही के चलते जगह-जगह कूड़े के ढेरों को जलते हुए देखा जा सकता है। शासकवर्ग अपनी इस कुव्यवस्था को सुव्यवस्था में बदलने की बजाय वे सब काम करता है जिससे जनता को कोई लाभ नहीं और उसे लूट कमाई का लाभ होता रहे।
नाकारा प्रदूषण नियंत्रण विभाग वायु प्रदूषित करने के जो-जो भी कारक सामने हैं उनमें से किसी को भी दूर करने की क्षमता इस विभाग में नहीं है, यह केवल जुर्माने एवं रिश्वत के रूप में वसूली मात्र ही कर सकता है। लगभग यही दशा एनजीटी (नेशनल ग्रिन ट्रिब्यूनल) की भी है। ये दोनों ही उपक्रम केवल लेन-देन की दुकानों से बढक़र कुछ भी नहीं है। इनके अस्तित्व में आने के बाद किसी भी प्रकार के प्रदूषण में कोई कमी आना तो दूर, लगातार बढता ही जा रहा है। हां, यह विभाग एक ‘अच्छा’ काम केवल यह बता कर कर रहा है कि वायु कितनी प्रदूषित हो गई है।
वायु प्रदूषण के अतिरिक्त कपड़ा रंगने वाली तथा ऐसी ही कई अन्य इकाइयां भू-जल को भी लगातार प्रदूषित किये जा रही हैं। ये इकाइयां गंदा एवं खतरनाक रसायनयुक्त पानी सीधे बोरवैल के जरिये धरती में इंजेक्ट कर देती हैं। बीते सप्ताह ऐसी ही करीब 20 इकाइयों को इस विभाग ने बंद कराया है। ऐसी इकाइयों को बंद कराने का उपक्रम हर दो-चार महीने बाद होता रहता है। भू-जल प्रदूषित करने वालों के लिये क्या इतनी सज़ा ही का$फी है? इनके विरुद्ध आपराधिक धाराओं में मुकदमा क्यों नहीं चलाया जाता?
दूसरा बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि क्या प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों को सील करने अथवा उनसे वसूली करने के लिये ही प्रदूषण नियंत्रण नाम का यह विभाग पाल रखा है जिस पर करदाता का करोड़ों रुपया बर्बाद किया जा रहा है? यही काम इलाके का तहसीलदार व थानेदार कहीे अधिक बेहतर ढंग से कर सकता है।