प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना : मोदी का एक और फ़्लॉप जुमला

प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि  परियोजना : मोदी का एक और फ़्लॉप जुमला
April 07 16:03 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना मोदी की नोटबंदी की घोषणा की तरह ही फ्लॉप साबित हो रही है। मोदी ने जन औषधि केंद्रों पर सस्ती दर पर दवाएं मिलने का ढिंढोरा तो खूब पीटा लेकिन दवाएं उपलब्ध भी हों इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। ब्लड प्रेशर, मधुमेह, दिल की बीमारियों में इस्तेमाल होने वाली दवाएं छह-छह महीने आती ही नहीं हैं, ओटीसी यानी ओवर दि काउंटर दवाओं का टोटा हमेशा बना रहता है। दुकानदार परियोजना की जगह जेनरिक के नाम पर अन्य घटिया दवाएं बेच रहे है, इनके लिए वे सरकार की ओर से निर्धारित दाम की जगह मनमानी कीमत वसूल रहे हैं। शहर में 22 प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र हैं। इनमे बोर्ड तो 80 से 90 प्रतिशत तक सस्ती दवाएं मिलने का लगा है लेकिन अधिकतर दुकानों में जन औषधियां गायब हैं, क्योंकि लंबे समय से माल ही नहीं मिल पा रहा है । बुखार-दर्द में इस्तेमाल होने वाली पैरासीटामोल एसिक्लोफिनेक सोडियम कॉंबिनेशन जन औषधि की कीमत दस रुपये है, लेकिन ये उपलब्ध ही नहीं है।

केंद्र पर इसी कॉबिनेशन की निजी कंपनियों की जेनरिक दवा तीस से चालीस रुपये में बेची जा रही है। दस रुपये में मिलने के सवाल पर अधिकतर दुकानदारों ने वो दवा नहीं बेचते, यही मिलेगी कह कर पल्ला झाड़ लिया। ये एक उदाहरण है, अधिकतर केंद्रों पर परियोजना के तहत सरकार द्वारा जारी की जाने वाली जेनरिक दवाओं की जगह निजी कम्पनियों की जेनरिक दवाएं ही बेची जा रही हैं। केसी सिनेमा रोड स्थित जन औषधि केंद्र के कर्मचारी के अनुसार परियोजना की दवाओं का लंबे समय से टोटा है, ग्राहक वापस न जाए इसलिए पीएमबीजेपी के नाम पर निजी कम्पनियों की जेनरिक दवाएं बेचते हैं। एक अन्य केंद्र संचालक ने बताया कि पीएमबीजेपी में ऑर्डर लगाने पर औसतन दो महीने और कभी कभी तो छह महीने से साल भर तक दवाएं नहीं आतीं, जो मिलती भी हैं तो आधी अधूरी।

साधारण तौर पर एक मरीज एक से दो-तीन तरह की दवाएं उपयोग करता है, ऐसे में यदि सभी दवांए नहीं मिलतीं तो दिक्कत होती है। दवाओं की शॉर्टेज तो स्कीम शुरू होने से ही रही है लेकिन बीते एक साल से ये समस्या बहुत बढ़ गई है, महीनों दवाएं आती ही नहीं हैं।

केंद्र संचालकों के अनुसार उच्च रक्तचाप में इस्तेमाल होने वाली मेटोप्रोलॉल की बीते एक साल से शॉर्टेज है। यह दवा टेल्मीसार्टन या रामीप्रिल या एम्लोडिपिन के कॉबिनेशन में आती है। एक साल बाद केवल मेटोप्रोलॉल थोड़ी मात्रा में ही आई है, कॉंबिनेशन की कोई आपूर्ति नहीं की गई। आधी अधूरी दवाएं पूरी करने के लिए मरीजों को जेनरिक दवाएं भी मिला कर बेचना मजबूरी है। मधुमेह में इस्तेमाल होने वाली दवाएं भी न तो कॉबिनेशन और न ही सिंगल सॉल्ट में उपलब्ध हैं। चोट मोच मे इस्तेमाल होने वाली डिक्लोफिनेक सोडियम जैल, त्वचा रोग की बेटनोवेट एन क्रीम, हाइड्रोक्वीनोन,मोमेटासोन, ट्रेटीनोइन कॉबनेशन क्रीम भी बरसों से नहीं आई है। सैनिटरी पैड तो मिलना सबसे मुश्किल है।

सरकार पर्याप्त मात्रा में दवाएं दे नहीं पा रही है लेकिन जन औषधि केंद्र धड़ाधड़ खोलती जा रही है। एक केंद्र संचालक ने बताया कि ड्रग कंट्रोलर विभाग के इंस्पेक्टर केंद्र पर परियोजना के अलावा दूसरी दवाएं बेचने नहीं देते। जबकि अधिकतर केंद्रों पर निजी कम्पनी की जेनरिक यानी बाहर की दवाएं ही धड़ल्ले से बिक रही हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि ड्रग कंट्रोल विभाग के कारिंदों को बिना सुविधा शुल्क चुकाए ये काम नहीं किया जा रहा होगा। हालांकि जिला ड्रग कंट्रोलर संदीप गहलान बताते हैं कि उनके यहां से ड्रग लाइसेंस जारी किया जाता है, इस लाइसेंस पर सभी तरह की दवाएं बेची जा सकती हैं, दुकानदार का पीएमबीजेपी से जो दवाएं बेचने का एग्रीमेंट होता है उसकी जानकारी उनको नहीं होती।
अधिकतर केंद्र संचालकों ने समस्या बताई कि दवाओं पर कमीशन तो बीस प्रतिशत मिलता है लेकिन एक्सपायरी पर वापसी नहीं होती। दवाओं की एक्सपायरी तो एक से दो साल की होती है लेकिन सेंट्रल ड्रग स्टोर से देरी से जारी होने के कारण जब दवाएं पहुंचती हैं तो उनके एक्सपायरी डेट छह से आठ महीने ही बचती है। यदि किसी कारण से माल रुक गया तो मिलना बीस रुपये था और नुकसान अस्सी रुपये का हो जाता है। जिन दवाओं की शेल्फ लाइफ यानी एक्सपायरी तीन महीने बचती है उसे खपाने के लिए दुकानदार को 24 प्रतिशत कमीशन का लालच दिया जाता है, नहीं बिकने पर पूरा नुकसान भी उसे ही सहना होता है। दुकानदारों के अनुसार मजबूरी में माल खरीदना पड़ता है। कम शेल्फ लाइफ वाली दवा नहीं बिकने से दुकानदारों को दस हजार से पचास हजार रुपये प्रतिवर्ष नुकसान झेलना पड़ता है।

पीएमबीजेपी दवांए नहीं मिलने पर शहर में कई जन औषधि केंद्र चलाने वाले बल्लभगढ़ के ……….. ने तो जेनरिक दवाओं की अपनी ही मैन्यूफेक्चरिंग करवा दी है, जो शहर में चलने वाले करीब दस केंद्रों से बेची जा रही हैं, इन दवाओं की गुणवत्ता की जांच कराई गई या नहीं अधिकारियों के पास इसका जवाब नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के मुस्कुराते हुए चित्र (हालांकि आचार संहिता के कारण चित्र ढंक दिया गया है) को देख कर दवा खरीदने पहुंचने वाले व्यक्ति की मुस्कुराहट तब चली जाती है जब उसे परियोजना की दवा नहीं मिलती, उसकी जगह दूसरी दवा सरकार द्वारा निर्धारित दाम से कहीं अधिक वसूल कर पकड़ा दी जाती है, जिसकी गुणवत्ता की कोई गारंटी भी नहीं है, गुणवत्ता तो परियोजना में मिलने वाली दवा्ओं की भी संदिग्ध ही होती है। ड्रग केंट्रोलर संदीप गहलान ने बताया कि प्रत्येक महीने अस्पताल, थोक दुकान, रिटेल मेडिकल स्टोर, डिस्पेंसरी आदि से 36 सैंपल लिए जाते हैं, यदि जन औषधि केंद्र की शिकायत आएगी तो वहां के भी सैंपल लेकर जांच कराई जाएगी।

सरकार का दावा तो परियोजना के तहत 1965 प्रकार की उच्च गुणवत्ता युक्त दवाएं उपलब्ध कराने का है लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है। जन औषिध परियोजना के लिए दवाएं बनाने वाली हेल्थ बायोटेक, ज़ी लेबोरेट्रीज, ओरिसन फार्मा सहित अन्य कंपनियों के सैंपल केंद्रीय दवा नियामक संगठन (सीडीएससीओ) की जांच में फेल हो चुके हैं। इन कंपनियों पर कार्रवाई करने या ब्लैक लिस्ट करने की कोई सूचना नहीं है, संभव है कि ये दागी कंपनियां अभी भी दवाएं सप्लाई कर रही हों। आश्चर्य नहीं है कि इन कंपनियों ने भी घटिया दवाएं बना कर जनता को लूटने वाली ज़ाइडस, सन फार्मा, सिप्ला, आईपीसीए, एल्डर, ग्लेनमार्क आदि की तरह इलेक्टोरल बॉंड खरीद कर भाजपा को भेंट किए हों।

जनता को नकली दवाएं मिलें या घटिया मोदी को इससे कोई मतलब नहीं उनकी पार्टी को तो इलेक्टोरल बांड से खूब चंदा मिल रहा है। केंद्र संचालक 1965 प्रकार की दवाओं को भी जुमला ही मानते हैं, उनके अनुसार इनमें से अधिकतर दवाएं प्रिस्क्रिप्शन के बिना नहीं बेची जातीं, निजी अस्पताल वाले या डॉक्टर जन औषधि की जगह ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं क्योंकि कंपनियां उनको मोटा पैकेज देती हैं, सरकारी डॉक्टर ज्यादातर जनरल दवाएं ही लिखते हैं, ऐसे में न तो उन दवाओं की ज्यादा मांग है और न ही आपूर्ति होती र्है। बीस प्रतिशत ओटीसी दवाओं की मांग है जिन्हें सरकार उपलब्ध नहीं करा पा रही। मोदी का ढिंढोरा पीटने वाले भाजपा कार्यकर्ता, आईटी सेल से लेकर गोदी मीडिया तक नोट बंदी की तरह फ़्लॉप साबित हुई प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना का गुणगान कर जनता को गुमराह करने में जुटे हुए हैं।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles