अराजक तत्वों के वीडियो पर पुलिस कमिश्रर और जिला प्रशासन क्यों है खामोश
मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
फरीदाबाद: बल्लभगढ़ में कॉलेज छात्रा निकिता तोमर की हत्या को साम्प्रदायिक रंग देकर देकर दंगा कराने और कानून व्यवस्था बिगाडऩे की कोशिश जनता ने तो नाकाम कर दिया है जबकि पुलिस अभी तक असली अराजक तत्वों को पकड़ ही नहीं सकी है।
इस घटना के विरोध में 1 नवम्बर को बल्लभगढ़ के दशहरा मैदान में कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने महापंचायत बुलाई थी। महापंचायत के बाद कुछ असामाजिक तत्वों ने पुलिस पर पथराव किया और मथुरा रोड जाम कर दिया। हालाँकि इस महापंचायत को प्रशासन रोक सकता था लेकिन आला पुलिस अफ़सरों ने अपने मातहतों को कोई दिशा निर्देश नहीं दिया। पुलिस समझ नहीं पाई, कन्फ्यूजन में रही। लेकिन जब पथराव होने लगा तो पुलिस ने उन पर डंडे बरसाये। मुट्ठी भर अराजक तत्व भाग खड़े हुए क्योंकि बल्लभगढ़ और फरीदाबाद की शांतिप्रिय जनता उनके साथ नहीं थी।
दरअसल, इस महापंचायत से एक दिन पहले कुछ दंगा फैलाने वालों ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल किया था। उसमें मुसलमानों को सीधे सीधे चेतावनी देते हुए कहा गया था कि कुछ दिनों में हम इन मुल्ला सुअरों का ऐसा इंतज़ाम कर देंगे कि ये हमारी बहन बेटियों की तरफ देखने की हिम्मत नहीं कर पायेंगे। इसमें मुस्लिम परिवारों को वह सोसायटी ख़ाली करने की चेतावनी दी गई थी। इसमें यह भी कहा गया कि प्रशासन इस घटना में लिप्त मुसलमानों को खत्म करे नहीं तो यह काम हम कर देंगे।
पुलिस कमिश्नर की चुप्पी
इस वायरल वीडियो को मज़दूर मोर्चा ने फरीदाबाद के पुलिस कमिश्नर ओपी सिंह को भेजते हुए जानना चाहा था कि इस वीडियो पर क्या कार्रवाई हुई? कोई जवाब न मिलने पर छह घंटे बाद मज़दूर मोर्चा ने दोबारा संदेश भेजा और बताया कि इस पर खबर छापी जा रही है। उनकी टिप्पणी चाहिए। लेकिन 4 नवम्बर को भेजे गए वायरल वीडियो पर पुलिस कमिश्नर ने खबर छापे जाने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। इन सवालों के जवाब चाहिए कि पुलिस ने ऐसे उग्र तत्वों पर कोई कार्रवाई तक नहीं की है। प्रशासन ने उस महापंचायत को रोका क्यों नहीं?
जिस दिन महापंचायत बुलाई गई थी, मौक़े पर पुलिस ने कई वाहनों से पत्थर भी बरामद किए थे। इससे पता चलता है कि बल्लभगढ़ और फरीदाबाद में हिंसा फैलाने की कोशिश की गई थी। इस मामले में पुलिस की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है। आमतौर पर प्रशासन धारा 144 लगाकर ऐसे आयोजनों को रोक देता है लेकिन उग्र संगठनों और उनके लोगों पर कोई एक्शन नहीं होता। जबकि विपक्षी दलों, मज़दूर संगठनों को अपने हक़ के लिए सामान्य प्रदर्शन तक नहीं करने दिये जाते। उन्हें देशद्रोही बताकर केस दर्ज कर दिया जाता है।