फरीदाबाद (म.मो.) जब कभी शासन-प्रशासन की नींद खुलती है तो वे कोई न कोई नया ड्रामा लेकर आ खड़े होते हैं। करीब आठ-दस साल पहले भी पॉलीथीन की थैलियां बंद कराने के आदेश प्रशासन द्वारा दिये गये थे। इन आदेशों के बल पर सरकारी कर्मचारियों ने रेहड़ी, फड़ी, व छोटे दुकानदारों को जमकर रगड़ा लगाया था। अनेकों के मोटे-मोटे चालान किये गये थे तो अनेकों से चालान न करने के एवज में रिश्वतें ली गई थी। वही सिलसिला इस माह से पुन: चालू हो चुका है।
सवाल यह पैदा होता है कि सब्जी आदि को पॉलीथीन में डालकर देने वाले छोटे-मोटे दुकानदारों पर तो सरकार कानून का डंडा चला रही है, परन्तु पॉलीथीन की थैलियों में दूध बेचने वाली कम्पनियों, चिप्स व तरह-तरह की नमकीन को पैकेटों में बेचने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा गुटका-तम्बाकू आदि को ऐसे ही पैकेटों में बेचने वाली फिल्मी हीरो कम्पनियों से सरकार क्यों घबराती है? क्या इन कंपनियों द्वारा बनाये गये पैकेट आसानी से नश्वर होने वाले पदार्थ से बने हैं? नहीं बिल्कुल नहीं, ये भी किसी अन्य पॉलीथीन पदार्थ की तरह अनश्वर होते हैं।
यदि सरकार वास्तव में ही पर्यावरण के प्रति गंभीर है तो इसके नाम पर तरह-तरह की नौटंकियां न करके इस दिशा में गंभीर कदम उठाये। इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि पॉलीथीन से पर्यावरण को भयंकर क्षति पहुंच रही है। इस क्षति से बचने के लिये सरकार को छुट-मुट दुकानदारों से दो-चार होने की बजाय उन कारखानों व उत्पादों को ही बंद कर देना चाहिये जहां पर इनका उत्पादन और माल तैयार होता है। लेकिन सरकार ऐसा कभी करने वाली है नहीं। करे भी क्यों, जब ड्रामेबाज़ी से ही काम चल रहा है।