करनाल (के सी आर्य) नीट में बेहतर रैंक लाने वाले विद्यार्थी को हरियाणा के मेडिकल कालेजों में दस लाख रुपये फीस वसूलने के विरोध में हस्ताक्षर अभियान के साथ-साथ करनाल के अम्बेडकर चौक तक रोष व्यक्त किया गया। विरोध के दूसरे दिन कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कालेज के स्टूडेंट्स ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए प्रदेश सरकार से नई नीति को रद्द करने की मांग की। आरोप है कि हरियाणा के सरकारी मेडिकल कालेजों में अधिक फीस के कारण स्टूडेंट्स दूसरे राज्यों में दाखिला लेना पसंद कर रहे हैं। इसके कारण हुई खाली सीटों पर कम अंकों वाले वे छात्र दाखिला ले रहे हैं जिनके पास मोटी फीस देने को है।
50 हजार रुपये की जगह दस लाख रुपये जमा करवाने होंगे , रोष जता रहे स्टूडेंट्स का कहना है कि वर्ष-2020 में दाखिले के दौरान सालाना 50 हजार रुपये फीस जमा करवानी होती थी। इसके अलावा सात साल नौकरी करने या 40 लाख रुपये जमा करवाने का शपथ पत्र दिया गया था। वर्ष-2021 सत्र में भी नौकरी की गारंटी मेडिकल स्टूडेंट को नहीं दी गई। वर्ष-2022 में नई पालिसी के तहत स्टूडेंट्स से दस लाख रुपये जमा करवाने के लिए कहा गया है और शपथ पत्र में लिख कर देना होगा कि वे इस पालिसी को कोर्ट में चुनौती भी नहीं दे सकते हैं। विद्यार्थियों के लिए 10 लाख रुपए जमा करवाना मुश्किल है।
प्रदेश के टापर दूसरे राज्यों में दाखिले के इच्छुक पालिसी के विरोध में स्टूडेंट हिमांशी, यशिका, सत्यपाल ने बताया कि सरकार की ओर से एमबीबीएस करने के इच्छुक विद्यार्थियों से मोटी फीस जमा करवाने के नए फैसले के कारण नीट के टापर दूसरे राज्यों में पढ़ाई के लिए जाने लगे हैं। दूसरे राज्यों में निजी कालेज में छह लाख रुपये में शिक्षा मिल रही है जबकि हरियाणा में दस लाख रुपये जमा करवाए जा रहे है। आरोप है कि सरकार के इस फैसले से किसान-मजदूर के बच्चों से एमबीबीएस की पढ़ाई दूर हो जाएगी और नीट में टाप रैंक लाने के बावजूद वे हरियाणा में अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी नहीं कर सकेंगे इसलिए स्टूडेट्स का आरोप है कि इस हिसाब से कोर्स की कुल फीस 45 लाख रुपये होगी।
वर्ष-2020 व 2021 में दाखिले के दौरान कर्ज लेने की नौबत नहीं आई क्योंकि अब वर्ष-2022 में दाखिले में फीस देने या कर्ज लेने के लिए कह रहे हैं। इसके विरोध में आंदोलन वर्ष-2020 से चल रहा है और एक जनहित याचिका भी उच्च न्यायालय चंडीगढ़ में विचाराधीन है। कालेज फीस के अलावा विद्यार्थियों को हास्टल शुल्क, मैस बिल, किताबें और स्टेशनरी के लिए भी भुगतान करना पड़ता है। जो हर साल लगभग 70 से 80 हजार रुपये बन जाता है। शांतिपूर्ण रोष के दौरान स्टूडेंट्स ने समानता के कानून का भी जिक्र किया। खट्टर सरकार द्वारा बढ़ाई गयी यह फीस न केवल डॉक्टरी पढऩे वालों पर एक करारा हमला है बल्कि आम जनता को भी चिकित्सा सेवा से वंचित करने का षडय़ंत्र है। करोड़ों रूपए खर्च करके जो डॉक्टर बनेगा वह जनता का गला नहीं काटेगा तो क्या करेगा? डॉक्टरी पढक़र आने वाले को जो वेतन सरकार देती है उससे तो पढ़ाई की लागत का ब्याज भी नहीं निकल पायेगा। यह हालत तो तब है जब सरकारी नौकरी मिल जाये वरना तो डॉक्टरों को नौकरी के लिए भटकना ही पड़ेगा।
इसलिए मेडिकल छात्रों के इस आंदोलन को जनता अपना आंदोलन समझकर इसके साथ जुड़े। सरकारी आश्वासनों व अदालतों के भरोसे न रहकर संघर्ष को तेज करें।