फरीदाबाद में ब्लड कैंसर का सफल इलाज

फरीदाबाद में ब्लड कैंसर का सफल इलाज
August 07 11:25 2022

ईएसआई मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बोन मैरो ट्रांस्प्लांट के 11 सफल केस

फरीदाबाद (म.मो.) यूं तो कैंसर एक जानलेवा बीमारी है लेकिन इसमें भी ब्लड कैंसर तो सबसे घातक बीमारी मानी गई है। गरीब आदमी का तो इसमें मरना तय ही माना जाता है। हां, यदि 40-50 लाख रुपये खर्च करने को हों तो व्यापारिक अस्पतालों में जरूर जान बचने की सम्भावना रहती है।

इस घातक बीमारी से पीडि़त ईएसआई कवर्ड मज़दूरों के लिये एनएच 3 स्थित ईएसआई मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इसका इलाज शुरू कर दिया गया है। इसकी शुरूआत 16 अगस्त 2021 से हुई थी। समाचार लिखे जाने तक यहां से 10 मरीज़ ठीक होकर जा चुके हैं और 11 वें मरीज़ का इलाज चल रहा है।

इस बीमारी के इलाज की प्रक्रिया किसी एक डॉक्टर के हाथ में नहीं होती बल्कि श्रेष्ठ विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक पूरी टीम तथा सुप्रशिक्षित पैरा मेडिकल स्टाफ की आवश्यकता होती है। इस अस्पताल में अनुभवी ओंकालॉजिस्ट डॉ. राय, ब्लड बैंक की संचालक एवं हेमाटॉलोजिस्ट डॉ. नीमीशा, पैथोलाॉजिस्ट डॉ. ….तथा कुछ अन्य विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम मौजूद है। उक्त इन डॉक्टरों में कमी थी तो टीम के कैप्टन की जो इन सभी समर्पित विशेषज्ञों को जोड़ कर इस प्रक्रिया को पूरा कर सके।

दूसरी ओर डॉ. राहुल भार्गव जो इस प्रक्रिया के माहिर हैं तथा सैकड़ों केस कर चुके हैं, उन्हें ऐसी ही टीम की तलब थी जो गरीब मरीज़ों को मुफ्त इलाज दे सके। डॉ. भार्गव फोर्टिस गुडग़ांव जैसे व्यापारिक अस्पताल तथा कुछ अन्य अस्पतालों में बहुत ऊंचे वेतन पर काम करते हैं।

लेकिन समाज के लिये मुफ्त काम करने की तमन्ना सर्व प्रथम उन्हें दिल्ली स्थित ईएसआई के बसई दारापुर अस्पताल में ले गई। लेकिन वहां का हाल तो पहले से ही चौपट हुआ पड़ा था लिहाजा वहां किसी ने भी इनकी कदर न की। उसके बाद 2021 में डॉ. भार्गव पहुंचे ईएसआई कार्पोरेशन के डायरेक्टर जनरल मुखमित सिंह भाटिया के पास।

डॉ. भार्गव का प्रस्ताव मिलते ही डीजी भाटिया का ध्यान एकदम से फरीदाबाद के मेडिकल कॉलेज पर गया। उन्होंने तुरन्त डीन डॉ. असीम दास से बात करी। डॉ. दास के लिये तो यह बात ऐसी थी कि अंधा क्या मांगे दो आंखें। उन्होंने तुरन्त प्रस्ताव स्वीकार करते हुए आवश्यक तैयारियां शुरू कर दीं। उनके पास पहले से ही समर्पित फेकल्टी भी इस प्रस्ताव से बहुत खुश हुई क्योंकि ये सब लोग कामचोर न होकर दिल लगा कर काम करने वाले लोग हैं।

बातचीत में डॉ. भार्गव ने बताया कि इलाज की प्रक्रिया के लिये सर्वप्रथम हेपाफिल्टर युक्त आइसोलेशन कमरे की आवश्यकता होती है ताकि कमरे में सूक्ष्म से भी सूक्ष्म कोई कण अथवा बैक्टीरिया आदि प्रवेश न कर सके। इस कमरे में मरीज़ को करीब 25 दिन रखा जाता है। शुरू में एक कमरे में एक ही मरीज़ रखा गया था, बाद में दो रखने लगे। काम बढ़ा तो ऐसा ही और कमरा तैयार किया गया। जिस रफ्तार से चंडीगढ़, दिल्ली व अन्य स्थानों से मरीज़ आने लगे हैं, कमरों की संख्या बढ़ानी पड़ेगी।

इसकेे लिये प्रशिक्षित नर्सिंग व अन्य स्टाफ की जरूरत को समझते हुए डॉ. भार्गव ने इस अस्पताल की आठ नर्सों को ट्रेनिंग के लिये अपने फोर्टिस अस्पताल में भी दो सप्ताह के लिये भेजा था। ये ट्रेंड नर्सें अपने काम के साथ-साथ अन्य स्टाफ को भी ट्रेंड कर रही हैं। डॉ. भार्गव का मानना है कि जिस तरह से यहां मरीज़ पहुंचने लगे हैं उसे देखते हुए यहां पूरा सेंटर ऑफ एक्सिलेंस बनाना पड़ेगा जिसके लिये 50 से 100 कमरों तक की आवश्यकता होगी। एक सीधे सवाल के जवाब में डॉ. भार्गव ने बताया कि वे न तो इस अस्पताल की नौकरी में हैं और न ही प्रति केस के हिसाब से कोई फीस लेते हैं। केवल आवागमन के खर्च के तौर पर मात्र 6 हजार रुपये लेते हैं और सप्ताह में एक दिन यहां लगाते हैं। उनकी हार्दिक इच्छा है कि उनके साथ काम करने वाले युवा डॉक्टर इस प्रक्रिया को अच्छे से सीख कर अपने मरीज़ों की सेवा कर सकें ।

इलाज के आभाव में बेमौत मरते थे मरीज़
ईएसआई कॉर्पोरेशन को अपने वेतन से भरपूर अंशदान देने के बावजूद कैंसर जैसे घातक रोगों का कोई इलाज कार्पोरेशन नहीं करता था। न केवल कैंसर बल्कि ह्दय रोग व नियरो सर्जरी व अन्य ऐसे ही केसों के लिये कॉर्पोरेशन अपने मरीज़ों को निजी अस्पतालों की बजाय एम्स की ओर धकेल देता था, क्योंकि वहां इलाज बहुत महंगा पड़ता था। एम्स में जब तक उनका नम्बर आता तब तक मरीज चल बसते थे। कॉर्पोरेशन को यह धंधा बढिय़ा से रास आ रहा था। मज़दूरों से पैसा लेना तो कॉर्पोरेशन को खूब आता था लेकिन इलाज के नाम पर उन्हें मरने को छोड़ दिया जाता था।

कॉर्पोरेशन की इसी नीति के चलते उसके खजाने में आज 1 लाख 48 हजार करोड़ से अधिक रुपये का ढेर लग गया है। यह तो शुक्र है कि फरीदाबाद के इस मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मज़दूरों को अपेक्षाकृत काफी बेहतर सुविधायें उपलब्ध हैं। ये सुविधायें और भी बेहतर हो सकती हैं यदि कॉर्पोरेशन के शीर्ष पर बैठे उच्चाधिकारी यहां पर स्टाफ की कमी को पूरा कर दें। विदित है कि जो सेवायें आज यहां उपलब्ध हैं वे केवल आवश्यकता से 40 प्रतिशत कम स्टाफ द्वारा दी जा रही हैं।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles