फऱीदाबाद की मज़दूर बस्तियां

फऱीदाबाद की मज़दूर बस्तियां
November 13 05:11 2022

कोई ‘जन-सेवक’ चंदन नगर में एक रात सो कर दिखाए!!

नरेश
‘आँख के अंधे-नाम नयनसुख’, कहावत को बहुत अच्छे से चरितार्थ करती हुई, एक झुग्गी बस्ती है; चंदन नगर. अपने नाम के ठीक विपरीत, भयंकर बदबू और सड़ांध के वातावरण में लगभग 1 किलो मीटर लम्बी और 200 मीटर चौड़ी, संकरी सी जगह में बसी, यह बस्ती अगर ‘गौरव नरक’ कहलाती, तो अपने नाम को ज्यादा चरितार्थ करती. एक तरफ रेलवे लाइन, दूसरी तरफ गुडग़ांव नहर, तीसरी तरफ, हाईवे सोहना रोड; इस तरह, तीन तरफ से घीरी हुई, इस बस्ती के ज्यादातर लोग ऊंचा सुनने लगे है. रेल की पटरी पर दिन-रात, हाई स्पीड, बेहद तेज शोर करती हुई, बेहद तेज सीटी बजाती हुई ट्रेन, जब गुजरती है, तो गहरी नींद में सोया हुआ व्यक्ति भी जाग जाता है. दूरदराज के देहात से मजदूरी करने के लिए आया हुआ नया आदमी, तो यहां सो जाए यह बहुत बड़ी बात उपलब्धि है। दूसरी तरफ सोहना रोड पर दिन-रात तेज शोर करते ट्रक, बस बड़ी गाडिय़ां ध्वनि प्रदूषण के रोज नए मानक तय करते हैं. वहीं तीसरी तरफ जो नहर है, उससे कम गंदा तो नाला होता है, जो लगातार अपनी बदबू से आसपास के वातावरण को महकाए रखता है!

लगभग 5 दशक पहले बसनी शुरू हुई यह बस्ती, जिसमें लगभग 2000 की आबादी रहती है, उसमें सिर्फ 80 परिवारों के पास ही राशन कार्ड है. 800 लोगों के वोटर कार्ड हैं, बाकी लोग इन वोटर कार्ड, राशन कार्ड आदि के लफडो में ही नहीं पडऩा चाहते, बनवाना ही नहीं चाहते क्योंकि वे जानते हैं, कि इनको बनवाकर जितना फायदा नहीं होगा, उससे ज्यादा का इन्हें बनवाने में, उन्हें अपनी दिहाड़ी का नुकसान उठाना पड़ेगा. जितने का बबुआ नहीं उतने का झुनझुना!! नहर विभाग की कहिए या सिंचाई विभाग की जमीन पर बसी हुई इस बस्ती ने, लगातार सिंचाई विभाग वालों के नोटिस, उनका धमकाना, उनका डराना, अपमानित करना, सब कुछ बर्दाश्त किया, सब कुछ झेला, लेकिन जीवन के संघर्ष ने उन्हें मैदान में खड़े रहना सिखाया है और वे इस लड़ाई से कभी पीछे नहीं हटे. 90 के दशक में बस्ती के कुछ लोगों ने मिलकर, कुछ बुद्धिजीवी, आंदोलनकारी कानूनविद लोगों के सहयोग से, चंडीगढ़ हाई कोर्ट में एक केस डाला और चंडीगढ़ हाई कोर्ट का एक फैसला भी पा लिया, कि जब तक सिंचाई विभाग इन्हें कहीं और बसाने का इंतजाम नहीं कर देता, तब तक इनकी बस्ती को ना तोड़ा जाए. 90 के दशक के जजों, कोर्टों-अदालतों और आज के जजों, कोर्टो-अदालतों में भी लोग जमीन आसमान का अंतर पाते हैं. उसी जीत ने, बस्ती के लोगों को अभी तक बस्ती में बसाए रखा है. फरीदाबाद में ऐसी कई अन्य बस्तियां तोड़ी जा चुकी हैं. हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी नहर विभाग सिंचाई विभाग इन्हें जब- तब परेशान करने से बाज नहीं आता.

बस्ती के लोग फिलहाल बेहद तनाव में हैं. कारण यह है कि बस्ती के बगल से निकलने वाला सोहना रोड, दो लेन के एक फ्लाईओवर द्वारा रेलवे लाइन के ऊपर से मथुरा रोड से जाकर मिलता है. ऐसी चर्चा है कि सरकार द्वारा अब वहां फोरलेन का फ्लाईओवर बनाया जाएगा तो बस्ती के लोगों में बस्ती में तोडफ़ोड़ होने का भयंकर डर बना हुआ है. बस्ती में रहने वाले सभी मज़दूर, आसपास की फैक्ट्रियों में, 8 से ?10,000 की मासिक तनख्वाह पर काम करते हैं. बस्ती में ही रहने वाले एक नौजवान, जो सामाजिक सरोकार भी रखते हैं, ने बताया कि पहले बस्ती में रहने वाली महिलाएं, फैक्ट्रियों में काम करने नहीं जाती थी लेकिन जमाना बदल रहा है और अब काफी संख्या में महिलाएं भी फैक्ट्रियों में मजदूरी करने जाती हैं. अब इस बात को जमाना बदलना कहें, महिला सशक्तिकरण कहें या इसे पूंजीपतियों की एक चाल समझें, कि पुरुष मजदूरों की बेहद कम तनख्वाह कर दें, जिससे परिवार का गुजारा चलाना मुश्किल हो जाए और मजबूरी में महिलाएं भी फैक्ट्रियों में सस्ते श्रम का स्रोत बने और यह पूंजीवादी व्यवस्था दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करती रहे और पूंजीपति चांदी कूटते रहें।
चूँकि बस्ती, नहर किनारे और रेलवे लाइन के किनारे है, तो यह बात बेहद आम है कि बस्ती में रहने वाले लोग रेल हादसा या नहर में गिरने -डूबने के शिकार होते रहते हैं. पिछले दिनों गड्ढे में बच्चों के गिर जाने की खबरों को, 24 घंटे बड़बड़ाने वाले न्यूज़ चैनलों ने दिन-रात चलाया और इसे एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाया था, लेकिन इन इस बस्ती में रहने वाले लोग बताते हैं कि हमारे यहां ऐसे हादसे लगभग हर महीने, 2 महीने में होते हैं, लेकिन उन हादसों को कवर करने कभी कोई मीडिया नहीं आया. रेस्क्यू ऑपरेशन और प्रशासन की मुस्तैदी तो बहुत दूर की बात है, कभी किसी हादसे पर कोई पुलिसकर्मी अगर अपनी कार्यवाही करने आते भी हैं, तो वे जिस परिवार में हादसा हुआ है, उस परिवार को ही उत्पीडि़त करते हैं. हालांकि पिछले दिनों नहर विभाग ने नहर किनारे लोहे की बड़ी बड़ी जालियां लगा दी है, जिससे कोई नहर में कूड़ा कचरा आदि ना फेंके. यही जालियां बस्ती वालों के नहर में गिरने पडऩे की संभावना भी कम कर देती है और इसके लिए बस्ती वाले सिंचाई विभाग का बहुत एहसान भी मानते हैं।

बस्ती में रहने वाले और सामाजिक सरोकार रखने वाले नौजवान ने, क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा के इस कार्यकर्ता को बताया, कि पिछले 5 दशक में कईयों सरकारे बनी, कई पार्टियों के स्थानीय विधायक- सांसद बने लेकिन सभी ने बस्ती वालों को ‘यूज एंड थ्रो’ के तौर पर ही इस्तेमाल किया. वोट लेते समय बड़े-बड़े वादे करना और उसके बाद भूल जाना, नेताओं के इस व्यवहार ने बस्ती वालों के जहन में इस तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था की पोल भी खोली है, उसकी हकीकत भी बताई है और इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में मजदूरों के क्या और कितने अधिकार हैं, मान सम्मान हैं, इसकी भी अच्छी व्याख्या की है।

फिलहाल, यहां पर भारतीय जनता पार्टी, जो दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है, कि केंद्र में भी सरकार है और राज्य में भी सरकार है. स्थानीय विधायक भी भाजपा का है, स्थानीय सांसद भी भाजपा का है, स्थानीय पार्षद भी भाजपा का है. यूं कहें कि डबल नहीं ट्रिपल या चौबल इंजन की सरकार हैं लेकिन फिर भी पिछले 8 सालों में भाजपा की सरकार ने, सांसद ने, विधायक ने, पार्षद ने इस बस्ती वालों के लिए कोई काम नहीं किया. हालांकि, जब विधायक, सांसद, पार्षद बस्ती में वोट मांगने आए तो उन्होंने वादा किया था कि एक सामूहिक शौचालय बनवाएंगे, सामुदायिक भवन बनवाएंगे आदि आदि, लेकिन कुछ नहीं हुआ भाजपा से पहले 10 सालों तक कांग्रेस की सरकार थी, और स्थानीय पार्षद कांग्रेस का था. स्थानीय विधायक, शारदा राठौर जी कांग्रेसी थी, स्थानीय सांसद अवतार सिंह भड़ाना कांग्रेश से थे, और उन्होंने भी वोट मांगते समय बस्ती को यहां से हटाकर कहीं और स्थाई तौर पर पक्के मकान बनवा कर देने का वादा किया था, लेकिन 10 साल की सरकार चलाने के बाद भी उन्हें कभी बस्ती के लोगों की सुध लेने की फुर्सत नहीं हुई. इन सरकारों से पहले, एक चौटाला की भी सरकार थी, जिसका नाम सुनते ही बस्ती वाले गालियां देने लगते थे क्योंकि वह सरकार तो इन झुग्गी बस्तियों को और झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोगों को सख्त नापसंद करती थी और लगातार जहां-तहां ऐसी बस्तियों पर बुलडोजर चलाने के लिए बदनाम थी.

एक मशहूर कहावत है, ‘चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग’. यह कहावत, यहां बेहद झूठी साबित होती है क्योंकि बस्ती का नाम बेशक चंदननगर है, लेकिन कुछ भुजंगो के यहां वास होने के कारण लगातार बस्ती में जहर घुलता जा रहा है. बस्ती के नौजवान तेजी से नशे के जाल में फंसते जा रहे हैं. जुआ -शराब का आदी होना अब कोई चौकने की बात नहीं होती. जिस तरह की सरकार इस वक़्त देश में है, उसका भी खूब असर बस्ती के लोगों नौजवानों पर दिखता है. कहां तो लोगों को वैज्ञानिक चेतना के मामले में आगे बढ़ते जाना था, यहाँ बस्ती के लोग नौजवान महिलाएं धार्मिक कूप मंडूक ता अंधभक्ति और हिंदू मुस्लिम की मानसिकता में डूबते जा रहे हैं. बस्ती या आसपास के माहौल में सामाजिक आंदोलनों का भी बेहद अभाव है. इसी का परिणाम है कि बस्ती में लोग, किसी राजनीतिक सामाजिक मुद्दे पर चर्चा विचार ना करके, आसाराम, राम रहीम जैसे बाबाओं के मकडज़ाल में भी फसते जा रहे हैं।

बस्ती के ज्यादातर महिला-पुरुष आज भी खुले में शौच को जाने को मजबूर हैं लेकिन पास की ही बस्ती की खबर आजाद नगर की गुडिय़ा के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या ने यहां भी लोगों को भयंकर तौर पर डरा दिया है, लोग बताते हैं कि हमने यहां रहते हुए तमाम तरह की परेशानियां झेलीं लेकिन इस तरह की कोई घटना कभी हमारे साथ नहीं हुई थी. लेकिन अगर ऐसी घटना पास की बस्ती में होती है तो वह घटना हमारे घर पड़ोस बस्ती में भी होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है. प्रधानमंत्री ने देश को खुले में शौच से मुक्त बता दिया है, अमित शाह इसी महीने उस जुमले को दोहरा कर गए लेकिन यहां क्या हालात हैं उससे प्रधानमंत्री को कोई मतलब नहीं.

बस्ती बेहद छोटी है. यहां रहने वालों की आबादी बेहद कम है. इस लिए भी, एक तरह की कमजोरी का एहसास बस्ती में लगातार बना रहता है. इस बस्ती से कई बार लोगों ने पार्षद का चुनाव लडऩे-जीतने की कोशिश की, मगर असफल रहे. आगामी पार्षद के चुनाव में, बस्ती के लोग अपनी किस्मत एक बार फिर आजमाना चाहते हैं. चुनाव नतीजे क्या होंगे, यह भविष्य के गर्भ में है, मगर यहां के लोगों के जहन में यह रहता है कि हमारा कम संख्या बल, कभी हमारी बस्ती के लोगों को पार्षद बनने नहीं देगा. इन सारी बातों से अलग बस्ती में कोई इंकलाबी- क्रांतिकारी चेतना ना होना बेहद चिंता की बात है. जब तक यह नहीं होता, तब तक बस्ती के लोगों के जीवन-जिंदगी, जीवन स्तर मैं कोई बदलाव हो पाना लगभग असंभव है. बस्ती के लोगों को चाहते ना चाहते हुए इस सच्चाई को स्वीकारना होगा और इसके लिए तैयार होना होगा. पूरी दुनिया से ही इस पूंजीवादी व्यवस्था का खात्मा जब तक नहीं किया जाएगा, तब तक मजदूर मेहनतकश जनता के जीवन में कोई बेहतरी आना असंभव है.

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles