हर जिले में मेडिकल कॉलेज चलाने का ढोंग कर रही है खट्टर सरकार

हर जिले में मेडिकल कॉलेज चलाने का ढोंग कर रही है खट्टर सरकार
March 10 15:26 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने का ढिंढोरा पीटने वाली खट्टर सरकार का उद्देश्य इस क्षेत्र से भी मोटी कमाई करना ही है। सरकारी मेडिकल कॉलजों में पढ़ाई का आधारभूत ढांचा और शिक्षा व्यवस्था सरकार भले न दे पा रही हो, लेकिन हर मेडिकल छात्र से फीस के नाम पर प्रत्येक वर्ष आठ लाख रुपये झटके जा रहे हैं। इसी तरह मेडिकल यूनिवर्सिटी तो घोषित कर दी गईं लेकिन उन्हें स्वायत्त संस्था बना कर उनके लिए बजट के दरवाजे ही बंद कर दिए गए। आय के सीमित साधन होने के कारण बिना सरकारी मदद के ये मेडिकल यूनिवर्सिटी छात्रों को कितनी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे पाएंगी और मरीजों को आधुनिक चिकित्सा उपलब्ध करा पाएंगी आसानी से समझा जा सकता है।

कहने को तो सरकार ने रोहतक में पंडित भगवत दयाल शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट यूनिवर्सिटी और करनाल में पंडित दीन दयाल उपाध्याय मेडिकल यूनिवर्सिटी की घोषणा कर दी और उनमें फैकल्टी की तैनाती आदि का अधिकार अपने पास रखा लेकिन उन्हें चलाने वाला खर्च देने से हाथ खींच लिया। इन मेडिकल यूनिवर्सिटी को स्वायत्त संस्था घोषित कर अपने खर्चों का खुद ही बंदोबस्त करने का फरमान सुना दिया गया। हालांकि सरकार ने यह व्यवस्था कर दी कि जिस तरह निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले आयुष्मान कार्ड धारक मरीजों के इलाज का सरकार भुगतान करती है, इन सरकारी संस्थानों को भी किया जाएगा। गैर आयुष्मान यानी सामान्य मरीज से इलाज का शुल्क वसूलने की व्यवस्था कर दी गई।

संदर्भवश पाठक जान लें कि भाजपा से पहले की सरकारों में मेडिकल संस्थान में मरीजों का इलाज नाम मात्र के शुल्क पर किया जाता था, यानी सरकार दवा, इलाज और उपकरणों पर होने वाला खर्च का बहुत बड़ा हिस्सा खुद वहन करती थी। मेडिकल छात्रों से भी नाम मात्र की फीस वसूली जाती थी। सब्सिडी दर पर पढ़ाई करने वाले छात्र को पास होने के बाद इसके एवज में दो से तीन साल तक सरकारी अस्पताल में अनिवार्य रूप से सेवाएं देनी होती थीं। इससे गरीब वर्ग के छात्रों के लिए भी मेडिकल की पढ़ाई करना आसान था और सामान्य मरीज को भी इलाज न के बराबर कीमत चुकाने पर मिलता था।

खट्टर सरकार ने यह व्यवस्था पलट दी है। अब सरकार मेडिकल छात्र से चाहे वो सामान्य हो, ओबीसी या एससी-एसटी वर्ग का आठ लाख रुपये प्रति वर्ष अनिवार्य रूप से वसूलती है। मेडिकल यूनिवर्सिटी प्रबंधन को भी सरकार ने छात्रों से फीस वसूल कर अपने खर्च पूरे करने का फरमान सुनाया है। खर्च पूरा न होने पर सामान्य मरीजों से इलाज का पूरा शुल्क वसूलने का प्रावधान किया गया है। पीबीडी मेडिकल यूनिवर्सिटी को मुख्यमंत्री मुफ्त इलाज योजना के तहत चालीस करोड़ रुपये का तो प्रावधान किया गया है लेकिन पीडीडीयू मेडिकल यूनिवर्सिटी करनाल के लिए इस धन की भी व्यवस्था बजट में नहीं की गई है क्योंकि वहां अभी सिर्फ फिजियोथेरेपी की जाती है, वहां अभी न तो ओपीडी चल रही है न ही आईपीडी।

इसके विपरीत खर्च चलाने के लिए सरकार इनको कर्ज देगी। पीबीडी यूनिवर्सिटी को 750 करोड़ और पीडीडीयू यूनिवर्सिटी को 77 करोड़ रुपये कर्ज राशि मिलेगी। जाहिर है कि कर्ज की राशि चुकाने के लिए इनका प्रबंधन निजी अस्पतालों की तरह ही मरीजों से मोटा शुल्क वसूलेगा। यानी सरकारी अस्पतालों में सस्ता इलाज पाना कठिन से कठिनतम हो चुका है।
इसी तरह मेडिकल कॉलेजों की व्यवस्था सरकार ने रखी तो अपने हाथ में है लेकिन उन्हें चलाए जाने के लिए जितने धन की जरूरत है उससे कहीं कम बजट आवंटित किया जा रहा है। यही नहीं, इन मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी-डॉक्टर तैनात करने का अधिकार भी चंडीगढ़ मुख्यालय ने सुरक्षित रखा है। इसका नतीजा ये हुआ कि अधिकतर मेडिकल कॉलेज बिना या आधी अधूरी फैकल्टी के जरिए ही चलाए जा रहे हैं, छांयसा का अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज इसका उदाहरण है। यहां अस्सी प्रतिशत फैकल्टी पद खाली हैं, प्रदेश केे अन्य मेडिकल कॉलेजों का हाल भी इससे अच्छा नहीं होगा।

छात्रों को बेहतर शिक्षा और मरीजों को अच्छा इलाज भले ही न मिले लेकिन खट्टर सरकार अपनी जेब गर्म करने के सभी हथकंडे इस्तेमाल कर रही है। ताजा उदाहरण जींद, भिवानी कुरियावास महेंद्रगढ़ के मेडिकल कॉलेज हैं। खट्टर सरकार ने इन कॉलेजों के लिए दस- दस करोड़ रुपये प्रशासनिक खर्च के लिए जारी किए हैं और सामान, दवा आदि की मद में मुख्यमंत्री मुफ्त इलाज योजना के तहत केवल दो लाख रुपये जारी किए गए हैं। इन नए नए मेडिकल कॉलेजों की न तो अभी पूरी तरह इमारत बन कर तैयार है और न ही मेडिकल शिक्षा देने के लिए आधारभूत ढांचा पूरा है।

इसके बावजूद खट्टर सरकार इनमें से प्रत्येक में डेढ़ सौ छात्रों को दाखिला देकर उनसे बारह-बारह करोड़ रुपये ऐंठ लेगी। इन कॉलेजों को चलाने के लिए खर्च तो तीस करोड़ खर्च किए जाएंगे लेकिन छात्रों से वसूली 36 करोड़ की होगी, यानी सरकार को छह करोड़ रुपयों का शुद्ध मुनाफा, छात्र पढ़ पाएं या नहीं सरकार को इससे कोई सरोकार नही। रही बात दो-दो लाख की तो इतने कम रुपयों मेें कितनी दवाएं खरीदी जा सकेंंगी और कितने उपकरण समझना मुश्किल नहीं है।

सरकार ने अपने इन सरकारी मेडिकल विश्विद्यालयों और मेडिकल कॉलेजों की आय के लिए मुख्यमंत्री मुफ्त इलाज योजना के तहत महज 77.06 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, इनमें चालीस करोड़ तो पीबीडी एमयू के लिए हैं, बाकी 37 करोड़ में अन्य सभी संस्थाएं आती हैं। इतने कम खर्च में मेडिकल कॉलेज चलाए ही नहीं जा सकते, सरकार की कारगुजारियों से लगता है कि वो मेडिकल शिक्षा का मखौल ही उड़ा रही है।

सुधी पाठक जान लें कि वर्तमान में आईएएस डॉ. आदित्य दहिया प्रदेश में आयुष्मान भारत योजना के इंचार्ज हैं। दहिया इससे पहले डिपार्टमेंट और मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के डायरेक्टर थे, डॉक्टर होने के कारण चिकित्सा जगत की समस्याओं से उनसे अधिक कौन जानकार होगा, बावजूद इसके उन्होंने इस पद पर रहते हुए सत्यानाश ही किया। अब आयुष्मान भारत इंचार्ज रहते हुए भी उन्हें कमीशन चाहिए, शायद यही कारण है कि निजी अस्पतालों का भुगतान लटकाया जाता है। डॉ. दहिया इससे पहले एडीसी फरीदाबाद और अतिरिक्त नगर निगम आयुक्त फरीदाबाद भी रह चुके हैं।

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Mazdoor Morcha
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