फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) सडक़ पर गड्ढे के कारण हादसे में जान गंवाने वाले पवित्र के गुनाहगारों को दस साल बाद भी सजा देना तो दूर दोषी तक नहीं ठहराया जा सका है। दोषी को अंजाम तक पहुंचाने में न तो पुलिस-प्रशासन और न ही सरकार की कोई रुचि नजर आ रही है। इंसाफ की अंधी देवी यानी न्यायपालिका भी दस साल पुराने इस केस की जांच जल्द पूरी करने के लिए सरकार और प्रशासन पर कोई दबाव नहीं बना रही है, बस केस की सुनवाई की औपचारिकता ही निभाई जा रही है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण कोई और पवित्र सडक़ हादसे में जान न गंवाए इसके लिए पिता मनोज वाधवा आज भी संघर्ष कर रहे हैं।
सेक्टर 16 निवासी मनोज वाधवा 10 फरवरी 2014 की रात पत्नी टीना और तीन साल के बेटी पवित्र को स्कूटी पर बैठा कर घर लौट रहे थे। दिल्ली आगरा हाईवे पर बाटा पुल के पास टूटी सडक़ के गड्ढे में उनकी स्कूटी फंस कर गिर गई। हादसे में गड्ढे में निकले नुकीले पत्थर से सिर टकराने के कारण पवित्र की मौत हो गई थी, जबकि पीछे आ रहे ट्रक के पहियों के नीचे आने से टीना के पैर बुरी तरह कुचल गए थे।
मनोज वाधवा कहते रहे कि बेटे की मौत सडक़ में गड्ढा होने के कारण हुई है लेकिन लकीर की फकीर पुलिस ने ट्रक चालक के खिलाफ केस दर्ज कर कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी। यहां तक पुलिस ने इस मामले को हिट एंड रन केस बता कर दो बार क्लोजर रिपोर्ट भी लगा दी। मनोज हादसे के लिए सडक़ निर्माण और इसकी मरम्मत के जिम्मेदार अधिकारियों को बताते रहे। अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज करने से बच रही पुलिस से उम्मीद खत्म होने पर उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से लेकर हाईकोर्ट सब जगह गुहार लगाई। आयोग और न्यायालय से आदेश मिलने के बाद पुलिस ने जांच की दिशा मोड़ी लेकिन दोषियों तक पहुंचने उसकी अरुचि आज तक जारी है, कारण ये है कि दोषी रसूख वाले या अधिकारी हैं। मनोज वाधवा कहते हैं कि सडक़ हादसे में मरने या घायल होने वाले के परिवार वालों को न्याय के नाम पर मुआवजा राशि देने का चलन आम हो गया है, लेकिन क्या मुआवजा देना ही न्याय है, यह हादसा दोबारा न हो इसके लिए कोई उपाय नहीं किए जाने चाहिए क्या? कहते हैं उनकी लड़ाई लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ है जो सडक़ की खामी, खराबी या गड्ढे समय रहते दूर नहीं करते और खामियाजा आम जनता जान देकर या गंभीर रूप से घायल होकर चुकाती है। यदि हादसे के लिए अधिकारियों दोषी ठहराए जाएंगे तो संभव है कि सजा के डर से वो ऐसी खामियों को तुरत फुरत दुरुस्त कराएं। इसी उद्देश्य से उन्होंने पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की। न्यायालय ने भी माना कि पवित्र की मौत किसी अधिकारी या कर्मचारी की लापरवाही से ही हुई है, पुलिस को उसे तलाशना चाहिए।
न्यायालय के आदेश पर पुलिस ने जांच की औपचारिकता शुरू की। जांच की प्रगति से पता चलता है कि पुलिस दोषी तक पहुंचने के लिए कितनी गंभीर है। संबंधित विभागों को नोटिस जारी किए गए। नगर निगम के अधिकारियोंं ने तो यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि सडक़ उनकी नहीं एनएचएआई की है। मामला एनएचएआई के पास पहुंचा तो उन्होंने जिम्मेदारी सडक़ बनाने वाली ठेकेेदार कंपनी पर डाल दी। ठेकेदार कंपनी एल एंड टी से सवाल किया गया तो उसने बताया कि कंपनी में 15 निदेशक हैं ऐसे में यह तय करना बड़ा मुश्किल है कि बच्चे की मौत के लिए कौन निदेशक जिम्मेदार है। न्यायालय ने हादसे के लिए जिम्मेदार अधिकारी तय किए जाने का आदेश दिया। आदेश जारी हुए चार साल बीत चुके हैं लेकिन आज तक पुलिस उस जिम्मेदार अधिकारी तक नहीं पहुंच सकी है। वाधवा बताते हैं कि एलएंडटी कंपनी ने हाईकोर्ट में अपील की है कि पक्ष बनाए गए उसके सभी निदेशकों को केस से हटाया जाए क्योंकि निदेशक स्तर का कोई अधिकारी सडक़ में गड्ढा होने के लिए सीधे जिम्मेदार नहीं हो सकता। मनोज वाधवा कहते हैं कि न्याय मिलने के बाद भी वो सडक़ों में खामी से होने वाली मौत रोकने के लिए संघर्ष जारी रखेंगे।
पवित्र की मौत को दस साल बीत चुके हैं लेकिन खुद को ईमानदार बताने वाले खट्टर ने शिकायत के बावजूद मूल समस्या को खत्म करने में कोई रुचि नहीं दिखाई है। शहर की शायद ही कोई मुख्य सडक़ हो जो गड्ढा मुक्त हो। हाल ही में करीब 26 करोड़ रुपये लगाकर मरम्मत की गई सूरजकुंड रोड अनखीर चौक के पास उखड़ गई, सेक्टर 15-16 की सडक़ पर बड़े बड़े गड्ढे हैं इनमें आए दिन कोई न कोई हादसा होता रहता है। मलेरना रोड चंद दिन में ही उखड़ गई। दरअसल, भ्रष्ट अधिकारियों को कार्रवाई का कोई भय रह नहीं गया है, उन्हें भी मालूम है कि ज़ीरो टॉलरेंस का नारा देने वाले सीएम खट्टर सरकार की फजीहत बचाने के लिए खुद ही इन घपले-घोटालों को छिपाते हैं। ऐेसे मुख्यमंत्री की ‘स्वच्छ छत्र छाया’ में ये भ्रष्ट अधिकारी फलते फूलते रहेंगे और पवित्र जैसे न जाने कितने मासूम व्यवस्था की लापरवाही का शिकार होते रहेंगे।