फरीदाबाद (म.मो.) नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के पुराने आदेशों का हवाला देते हुए हरियाणा सरकार ने पहली अक्टूबर से अपनी अनेक बसों का परिचालन बंद कर दिया है। जो बसें बीएस 6 मानक की नहीं होगी वे दिल्ली में प्रवेश नहीं करेंगी।
फरीदाबाद डीपो में ऐसी 20 बसें हैं जो दिल्ली के रास्ते चंडीगढ़, अमृतसर, रोहतक, हिसार आदि जाया करती थी, वे अब नहीं जायेंगी। इसी तरह गुडग़ांव, झज्जर, रोहतक, रेवाड़ी, सोनीपत, पानीपत आदि डीपुओं की बसें भी दिल्ली प्रवेश नहीं कर पायेंगी। इनकी कुल संख्या सैंकड़ों में बनेगी।
उक्त डीपुओं के अलावा हरियाणा के तमाम डीपुओं से जो बसें चलकर दिल्ली आया करती थी उनमें से भी वे सभी बसें अब दिल्ली नहीं आ पायेंगी जो बीएस 6 मानक न होंगी। यह घोषणा करने में सरकार का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन सरकार ने बीते दो साल में यह कतई सोचने की जरूरत नहीं समझी कि जिस परिवहन व्यवस्था पर सरकार का एकाधिकार है, उसके बंद होने पर यात्री कहां जायेंगे? विदित है कि कोरोना के नाम पर बंद की गई रेलगाडिय़ों में से अभी तक आधी भी दोबारा नहीं चल पाई हैं। ऐसे में यात्रियों के साथ क्या बीतेगी यह सवाल भाजपा सरकार ने राम भरोसे छोड़ दिया है।
दूसरा बड़ा काम डीजल जनरेटर सेट चलाने पर पाबंदी रहेगी। आदेश के अनुसार तो घरेलू जनरेटर भी नहीं चलेंगे। लेकिन वास्तव में यह पाबंदी औद्योगिक जनरेटरों पर भारी पडऩे वाली है। सर्वविदित है कि कोई भी व्यक्ति डीजल जनरेटर सेट चलाकर राजी नहीं है। इसका चलाना बहुत ही महंगा पड़ता है। केवल मजबूरी में इसे चलाना पड़ता है और इसके चलते ही सरकारी गिद्ध कारखानेदार पर टूट पड़ते हैं। सरकार यदि वास्तव में ही जनरेटर बंद कराना चाहती है तो वह बिजली की पर्याप्त आपूर्ति क्यों नहीं सुनिश्चित करती? सुधी पाठक भूले नहीं होंगे जब पिछले दिनों केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर ने ग्रिड कार्पोरेशन ऑफ इन्डिया के इंजीनियरों के सामने लम्बी-लम्बी छोड़ते हुए कहा था कि भारत में बिजली उत्पादन इतना अधिक बढ गया है कि इसे विदेशों तक निर्यात करना पड़ता है। यदि मंत्री महोदय झूठ नहीं बोल रहे थे तो उद्योगों को इतनी बिजली सप्लाइ करें कि उन्हें जनरेटर में डीजल न फुकना पड़े।
उद्योगों पर जनरेटर की पाबंदी के अलावा बॉयलर में लकड़ी, कोयला आदि जलाने पर भी पाबंदी लगा दी गई है। उन्हें इसके स्थान पर केवल गैस का इस्तेमाल करना होगा। अच्छी बात है गैस का इस्तेमाल होना चाहिये लेकिन सरकार को गैस के दाम भी तो एक उचित सीमा में बांध कर रखने चाहिये। अडानी का जब दिल चाहता है तो दाम बढ़ा देता है।
पर्यावरण के नाम पर सरकार जनता पर तो धड़ाधड़ पाबंदियां थोपने पर जुटी है जबकि उसके अपने निकाय इन नियमों की खुली अवहेलना करते हैं। पूरे एनसीआर में जगह-जगह कूड़े के पहाड़ खड़े हैं, टूटी सडक़ों से धूल के गुबार उठ कर वायु को प्रदूषित कर रहे हैं, उन्हें कोई पुछने वाला नहीं। जगह-जगह उफनते सीवर नाकाम हो चुके सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट सरकार को कतई नजर नहीं आते। खुद मियां फजीहत, दूसरों को नसीहत।