पर्यावरण के नाम पर अब ढाबों की भी लूट शुरू

पर्यावरण के नाम पर अब ढाबों की भी लूट शुरू
December 27 02:36 2022

करनाल (म.मो.) प्रदूषण को लेकर अब तक पराली जलाने के नाम पर किसानों के पीछे पड़ी थी सरकार। प्रदूषण का सारा दोष पराली के धुंए से बताया जा रहा था। बीते दो माह से, पराली समाप्त हो जाने के बाद भी प्रदूषण में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा। अब पर्यावरण विभाग की गिद्ध-दृष्टि ढाबे वालों पर पड़ी है। समझ नहीं आता कि ढाबों अथवा भोजनालयों द्वारा प्रदूषण कैसे फैल सकता है? आजकल शायद ही कोई ढाबा खाना पकाने के लिये गैस का प्रयोग न करता हो। हां, तंदूर गर्म करते समय जरूर कुछ लकड़ी आदि को जलाया जाता है।

यदि खाना पकाने व खाने-खिलाने से ही प्रदूषण फैलता है तो प्रत्येक घर इसके लिये दोषी है। कुछ गरीब घर तो ऐसे हैं, खास तौर पर झुग्गी-बस्तियों में जो महंगी गैस का प्रयोग नहीं कर सकते, वे लकड़ी उपले आदि जला कर ही खाना पकाते हैं। ऐसे में ये तमाम घर प्रदूषण फैलाने के लिये दोषी करार दिये जा सकते हैं। कोई बड़ी बात नहीं कि मोदी सरकार एक दिन सभी घरों को इसके लिये दोषी मानने लगेगी। एक और मजे की बात यह है कि पर्यावरण विभाग की मार छोटे-मोटे ढबों एवं भोजनालयों पर ही पड़ रही है। जगह-जगह पर खुले हरियाणा टूरिज्म के ढाबों की तर$फ झांकने तक कि हिम्मत यह महकमा नहीं जुटा पा रहा। इसके अलावा बड़े-बड़े होटलों में तो ये लोग घुसने की सोच तक भी नहीं सकते।

असल मक्सद इन ढाबों से ठीक उसी तरह मंथली वसूलना है जिस तरह छोटे अस्पतालों व क्लीनिकों से मंथली वसूली जा रही है। इस विभाग को टूटी सडक़ों से उड़ती धूल वाहनों द्वारा उगला जा रहा धुंआ तथा कारखानों से निकलता काला धुंआ भी नज़र नहीं आता। फैक्ट्रियों से निकलता रसायनयुक्त जहरीला पानी भी इन्हें नहीं अखरता। शहरों की गली-गली में उफनते सीवर तथा उनसे फैलती बदबू से भी इस विभाग को कोई ऐतराज नहीं। इन्हें तो बस, पराली के बाद अब ढाबे नजर आने लगे हैं। विभागीय अधिकारी एक बेमानी सा तर्क जरूर दे सकते हैं कि ढाबों से निकलता बचा-खुचा खाना प्रदूषण फैलाता है। यह तर्क पूर्णतया निराधार है। हर ढाबे से बचा-खुचा भोजन एवं जूठन को सूअर पालने वाले बाकायदा खरीद कर ले जाते हैं। ऐसे में फिर प्रदूषण फैलाने को बचा ही क्या है?

इन्हीं बेबुनिया तर्कों के आधार पर यहां दो ढाबों को सील बंद करके उनकी बिजली भी काट दी गई है तथा अगले सप्ताह तक दो और ढाबों की भी यही हालत होने वाली है।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles