मज़दूर मोर्चा ब्यूरो जनता से लगातार शिकायतें मिलने के बाद पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री चेतन सिंह ने दिनांक 29 जुलाई को फरीदकोट स्थित अपने मेडिकल कॉलेज विश्व-विद्यालय का औपचारिक निरीक्षण किया। इस दौरान इनके साथ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. राज बहादुर भी साथ रहे। वार्ड में बेड पर बिछे सड़े-गले गद्दे देख कर मंत्री ने कुलपति से कहा कि सर, क्या आप इस गद्दे पर लेट सकते हैं? शरमा-शरमी डॉ.राज बहादुर एकाध मिनट के लियेइस पर लेट तो गये लेकिन इससे अपमानित होकर उन्होंने पद से त्यागपत्र दे दिया।
जन विरोधी राजनीति से प्रेरित कांग्रेस पार्टी, भारतीय जनता पार्टी व अकाली दल ने अस्पताल की दुर्दशा को मुद्दा बनाने की बजाय कुलपति के तथाकथित अपमान को मुद्दा बनाकर स्वास्थ्य मंत्री सहित पूरी पंजाब सरकार को ही निशाने पर ले लिया। कुलपति के समर्थन तथा मंत्री के विरोध में बयानबाज़ी शुरू कर दी। इससे प्रेरित होकर डॉक्टरों के विभिन्न संगठनों के साथ-साथ अस्पताल के कुछ कर्मचारी भी धरने-प्रदर्शन पर उतर आये। इन सब के लिये अस्पताल की दुर्दशा कोई मुद्दा नहीं है, मुद्दा है तो केवल कुलपति का अपमान जो कि हुआ नहीं। मंत्री ने उन्हें पकड़ कर जबरन तो बेड पर लिटाया नहीं था, उन्होंने तो बाकायदा ‘सर’ कह कर उन्हें जरा लेट कर दिखाने को कहा था। वे चाहते तो लेटने से इनकार भी कर सकते थे। मंत्री से बात-चीत के दौरान कुलपति इस स्थिति के लिये अस्पताल के अधीक्षक को दोषी बता कर अपने आप को बरी करते रहे। माना कि अस्पताल का प्रबन्धन चिकित्सा अधीक्षक का दायित्व होता है लेकिन जब वह दायित्व ठीक से न निभा रहा हो तो उस पर कार्रवाई करने का दायित्व कुलपति पर नहीं तो क्या सीधे मंत्री अथवा मुख्यमंत्री का बनेगा? यदि उन्होंने ही सब कुछ करना है तो डॉ. राज बहादुर जैसे कुलपति को पालने-पोसने की क्या जरूरत है?
सर्वविदित है कि विश्वविद्यालय एक स्वायत्त संस्थान होता है। इसमें कुलपति ही सर्वे-सर्वा होता है। यहां के तमाम अधिकारी उन्हें जवाबदेय होते है। संस्थान का एक पैसा भी उनकी मर्जी के बगैर खर्च नहीं किया जा सकता। संस्थान में तमाम तरह की नियुक्तियां भी उन्हीं के आदेश पर होती हैं।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार करीब एक वर्ष पूर्व 400 चादरों व गद्दों की खरीदारी का आदेश जारी किया गया था जो आज तक क्रियान्वित नहीं हो पाया है। समझा जाता है कि संस्थान खरीद्दारी एवं रख-रखाव के मामलों में भारी घोटालों का शिकार है। नि:संदेह पहले की पंजाब सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं के लिये पर्याप्त बजट तो नहीं ही रखा होगा लेकिन जितना भी रखा है उसमें भी हो रही सेंधमारी ने स्थिति को बद से बद्तर कर दिया है यानी कि कोढ़ में खाज वाला काम हो रहा है।
संदर्भवश यह एक स्नातकोत्तर मेडिकल कॉलेज है। यहां एमबीबीएस के बाद एमडी व एमएस आदि की पढ़ाई होती है। लेकिन यहां की स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि एमबीबीएस तक कि पढ़ाई करनी कठिन हो रही है। ऑपरेशन थियेटर में एसी की बात तो छोडिय़े पर्याप्त रोशनी तक की व्यवस्था नही है। कई बार तो टार्च अथवा मोबाइल फोन की लाइट में भी ऑपरेशन सम्पन्न करने पड़ते हैं। डॉक्टरों का पसीना तक भी मरीज़ों के घाव पर गिरता रहता है। इसके अलावा एक्सरे, एमआरआई, कैटस्कैन, आदि मशीने कंडम हो चुकी हैं। स्टाफ भी आवश्यकता का एक चौथाई भर ही बताया जा रहा है। सफाई का हाल ऐसा है कि बाथरूमों में घुसना तक मुश्किल है।
अनिल विज कब ध्यान देंगे? हरियाणा के अस्पतालों की स्थिति भी पंजाब वालों से बेहतर नहीं है। यहां पर भी लगभग यही सब कुछ हो रहा है जो वहां हो रहा है। लेकिन वहां के स्वास्थ्य मंत्री ने मौका मुआयना करके अधिकारी को शर्मसार करके बाहर का रास्ता तो दिखा दिया।
हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज यदा-कदा अपने अस्पतालों पर छापामारी की नौटंकी तो करते रहते हैं लेकिन कभी किसी वरिष्ठ नालायक अधिकारी के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई होती नहीं देखी गई। फरीदाबाद के बीके अस्पताल को लेकर तो शायद ही कोई दिन निकलता होगा जब इसकी बदइंतजामी का ब्योरा न प्रकाशित होता हो।
रोहतक स्थित राज्य के सबसे पुराने मेडिकल कॉलेज से लेकर छांयसा स्थित नवीनतम मेडिकल कॉलेज सहित सभी भयंकर दुर्दशा के शिकार है। इसके बावजूद विज साहब चूं तक नहीं करते। करें भी क्यों, उन्हें जब भी इलाज की जरूरत होती है तो वे मोहाली से लेकर गुडग़ांव तक के पंच सितारा व्यापारिक अस्पतालों में आकर दाखिल हो जाते हैं। जनता जाये भाड़ में उनकी बला से।