पढ़ाई के नाम पर सिर्फ सर्वे और सख्ती के नाम पर पढ़ाई ही बंद

पढ़ाई के नाम पर सिर्फ सर्वे और सख्ती के नाम पर पढ़ाई ही बंद
December 13 11:59 2021

विवेक कुमार
विवेक मैं आपसे आधे घंटे में बात करूँ, अभी क्लास को पढ़ा रहा हूँ। आधे घंटे बाद कॉल करने पर भी जवाब मिला कि विवेक मैं शाम को बात करूँ, अभी यूनिवर्सिटी के लिए निकलना है। इस आपा-धापी में पड़े 63 वर्षीय व्यक्ति का नाम प्रोफेसर प्रभात बसंत है जो जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविध्यालय में इतिहास पढ़ाते हैं।

स्मार्ट दिखने और स्मार्ट होने में अंतर होता है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही कुछ शब्दों की वैश्विक स्तर पर मार्केटिंग हुई जिनमे ‘स्मार्ट’ भी एक शब्द है। स्मार्ट के नाम पर होने वाला हर कार्यक्रम लगभग बदसूरत ही मिलेगा और उसका चेहरा भारत की शिक्षा व्यवस्था के किसी भी प्रारूप में देखा जा सकता है जहां सरकार का सारा जोर स्मार्ट दिखने में है न की स्मार्ट होने में।

शाम को बात करने पर डॉ. प्रभात ने बताया कि कोरोना काल से ही पढ़ाने का काम लगभग ऑनलाइन हो गया और तकनीक के मामले में कमजोर लगभग सभी अध्यापकों ने खुद को अपडेट किया। इसके बाद घर से क्लास चलने लगी पर सभी का मानना है कि जो बात क्लास रूम में पढ़ाने की है उसका विकल्प ऑनलाइन नहीं हो सकता। बावजूद इसके ऑनलाइन बेशक कोरोना जैसी आपदा में एक प्लेटफॉर्म बना है पर अब कहानी कुछ और ही होती जा रही है।

लॉकडाउन खुलने के बाद से क्लास रूम को छोडक़र बाकी सब खुल चुका है। NAAC यानी नैशनल असेस्मेंट एंड एक्रिडिएशन काउंसिल के नाम से चलने वाले भारत सरकार के सर्वे कार्यक्रम में अपने संस्थान को ऊंचा ओहदा दिलवाने के लिए सभी पढ़ाने वालों को हर रोज यूनिवर्सिटी में जाकर हाजिरी लगानी जरूरी है। जबकि विद्यार्थियों को क्लास रूम में बैठा कर पढ़ाने के लिए सरकार की कोई उत्सुकता और दिलचस्पी आजतक दिखाई नहीं दी। NAAC के तहत तय मापदंडों पर जो संस्थान जैसा रैंक प्राप्त करता है सरकार से मिलने वाला फंड उसी के मुताबिक संस्था को दिया जाता है। ऐसे में शिक्षण संस्थाओं का सारा जोर कागजों को मजबूत कर यह दिखाने में लगा रहता है कि हम कितने उत्कृष्ट हैं।

डॉ. बसंत की ही तरह दिल्ली के मिरांडा हाउस कॉलेज में इतिहास की प्रोफेसर भारती जगन्नाथन का भी मानना है कि क्लास रूम में पढऩे-पढ़ाने में सीखना और समझना एक अलग ही अनुभव है जिसे ऑनलाइन के माध्यम से पूरा कर पाना संभव नहीं। क्लास रूम में होने वाली बातचीत, बॉडी लैंग्वेज के माध्यम से होने वाला संवाद, हंसी मजाक अध्यापक और बच्चों के बीच एक खास तरह का संबंध स्थापित करता है। वहीं पढऩे वाले सिर्फ अध्यापक से ही नहीं बल्कि आपसी मेलजोल और बातचीत से भी काफी कुछ सीखते-समझते हैं।

क्योंकि फिलहाल विकल्प के तौर पर ऑनलाइन पढ़ाई करना ही बचा है तो ऐसे में सरकार की तरफ से किये गए इंतजामातों पर एक नजर डालना जरूरी हो जाता है। प्रोफेसर भारती और बसंत ने बताया कि यूनिवर्सिटी का दावा है कि उसने कैंपस में हाई स्पीड इंटरनेट की व्यवस्था की हुई है जिससे कि सभी अध्यापक एकसाथ अपनी अपनी-अपनी क्लास से कनेक्ट कर सकते हैं। इसके बरक्स सच्चाई यह है कि यूनिवर्सिटी में एकसाथ कई फोन ऑन होने और कनेक्ट होने से नेटवर्क जाम की समस्या इतनी गंभीर रूप से हो जाती है कि क्लास कर पाना संभव नहीं। ऐसे में प्रोफेसर बसंत को पहले अपने घर पर क्लास लेनी पड़ती है और उसी दौरान फरीदाबाद से जामिया तक का सफर मेट्रो से पूरा करना पड़ता है वह भी सिर्फ अपनी हाजिरी दर्ज करवाने के लिए। अगले ही पल फरीदाबाद वापस क्लास लेने आना पड़ता है,क्योंकि यूनिवर्सिटी में ऑनलाइन क्लास ले सकने की व्यवस्था सुचारू नहीं है। इसी प्रकार नेट को लेकर और स्मार्ट फोन की उपलब्धता को लेकर कई समस्याएं हैं जिनपर किसी अन्य लेख में बात की जा सकती है। फिलहाल सरकारी दावों की पड़ताल आंकड़ों से की जाए तो बेहतर होगा।

ऑकला सर्वे 2020 के अनुसार नेट स्पीड के मामले में भारत 2 पायदान सरक कर 131वें स्थान पर पहुंच गया है। इस मामले में भारत से उसके पड़ोसी देश श्रीलंका, पाकिस्तान और नेपाल बेहतर साबित हुए और तो और इराक ने भी स्पीड के मामले में भारत को पीछे छोड़ दिया। साउथ कोरिया जहां एक ओर 121 MBPS की स्पीड के साथ पहले स्थान पर काबिज हुआ वहीं भारत 12.07 MBPS की रफ्तार से विश्वगुरु बनने का दावा कर रहा है।

इकनॉमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में टॉप 100 में स्वघोषित विश्वगुरु भारत की एक भी यूनिवर्सिटी नहीं। गोल पोस्ट बदल कर अगर यह संख्या 500 की जाए तो IIM अहमदाबाद और भारतीय विज्ञान संस्थान क्रमश: 415 और 459 स्थान पर हैं। इतना ही नहीं मोदी सरकार ने देश के शिक्षण संस्थानों को पैसे के नाम पर बजट में 6 प्रतिशत की कटौती करते हुए 93224 करोड़ रुपये ही इस वित्तीय वर्ष में दिए हैं। सरकार के रिकार्ड को देखते हुए यह कटौती आगे जारी रहने की पूरी संभावना है। जहां सरकार को GDP का कम से कम 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने का वैश्विक निर्देश है वहीं सरकार केवल 2.6 प्रतिशत ही शिक्षा पर खर्च कर रही है।

प्रोफेसर बसंत इतिहास पढ़ाते हैं और उसके लिए हड़प्पा कालीन अवशेषों को क्लास रूम में दिखा कर बच्चों को पाँच हजार साल पुराने भारत के मशहूर काले मृदभांड के अवशेषों को छूने का नायाब मौका देते हैं। साथ ही लाखों साल पहले बन चुके जीवाश्मों और शिकार के लिए इस्तेमाल होने वाले पाषाणयुगीन पत्थर के औजारों से भौतिक रूप से रूबरू करवाते थे जो अब ऑनलाइन क्लास वो भी खराब कानेक्टिविटी और सिर्फ हाजिरी मात्र के लिए कॉलेज जाने से संभव नहीं।

सरकार को न स्कूल खोलने की कोई चिंता है और न ही उससे जुड़े किसी आधारभूत संरचना को बेहतर करने में। सारा जोर कागज पर यह साबित करने में हैं कि हम कितने महान हैं। सरकार के साथ कदमताल करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने भी ‘प्रदूषण’ पर सख्त होते हुए कल से दिल्ली के सभी स्कूल बंद करने के आदेश दे डाले हैं। न जाने कैसा प्रदूषण है जो स्कूल की हवा में है पर घर की हवा में नहीं। शुक्र है माननीय उच्चतम न्यायालय ने सख्ती करते हुए सांस न लेने का हुक्म अभी तक नहीं सुनाया।

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Mazdoor Morcha
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