फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) । नगर निगम में फर्जी जूनियर इंजीनियर बन कर काम कर रहे वीर सिंह को एसई ओमबीर के इशारे पर बैकडोर से इंट्री दिलाई गई है। ईओ और डीए ब्रांच के जरिए न्यायपालिका को भी धोखा देकर उसे पदासीन कराया गया। अदालत ने उसके पक्ष में छह माह का वेतन जारी करने का आदेश दिया है।
लूट कमाई के लिए बदनाम एसई ओमबीर का कलेक्शन एजेंट कहा जाने वाला वीर सिंह नगर निगम में ट्यूबवेल ऑपरेटर पद पर भर्ती हुआ था। इस पद पर मोटी कमाई नहीं थीं और डिप्लोमाधारी एई-जेई की मोटी कमाई देख उसने नौकरी छोड़ दी और इंजीनियरिंग का डिप्लोमा हासिल कर लिया। 2011 में नगर निगम में उसे डीसी रेट पर जेई तैनात किया गया। 2012 के बाद नगर निगम में सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों द्वारा कर्मचारियों को ठेके पर रखा जाने लगा, वीर सिंह भी सर्विस प्रोवाइडर कंपनी द्वारा ठेके पर रख लिया गया। तब से 2021 तक उसे सर्विस प्रोइवाडर कंपनी द्वारा ही वेतन का भुगतान किया जाता रहा। नवंबर 2021 में सीएम खट्टर ने हरियाणा कौशल रोजगार निगम की स्थापना की। इसके साथ ही सरकार ने सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों के साथ अनुबंध समाप्त कर दिया। इन सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों के जरिए अभी तक सरकारी कार्यालयों, निगम, प्राधिकरणों में ठेके पर काम कर रहे कर्मचारियों को एचकेआरएन में पंजीकरण कराने को कहा गया। कर्मचारियों को नोटिस दिया गया कि वे एचकेआरएन में पंजीकरण करा लें अन्यथा सर्विस प्रोवाइडर कंपनी का अनुबंध समाप्त होने के बाद उनकी नौकरी भी समाप्त हो जाएगी। वीर सिंह ने एचकेआरएन के तहत पंजीकरण नहीं कराया और न्यायालय में याचिका दायर कर दी। अक्तूबर 2022 में सर्विस प्रोवाइडर कंपनी का अनुबंध समाप्त हो गया, इसके साथ ही वीर सिंह की सेवा भी नगर निगम में समाप्त हो गई।
यहां से एसई ओमबीर का अपने चहेते कमाऊ पूत को बचाने का खेल शुरू होता है। नौकरी नहीं होने के बावजूद एसई ओमबीर ने वीर सिंह को वार्ड 31 का प्रभारी बना दिया। वीर सिंह दिखाने के लिए वार्ड की जनसमस्याओं का समाधान करता और जनता के बीच नगर निगम का जेई बन कर पहुंचता। विकास कार्य भी वही कराता लेकिन इनके भुगतान वाली फाइलों पर वह हस्ताक्षर नहीं करता, उसकी जगह दूसरे वार्ड का रेगुलर जेई हस्ताक्षर करता। निगम के भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार विकास कार्यों की फाइल पर हस्ताक्षर करने का जेई का कमीशन दो प्रतिशत होता है, वीर सिंह इसमें से आधा कमीशन खुद रखता और आधा हस्ताक्षर करने वाले जेई का होता। वेतन नहीं मिलने के बावजूद इसी ऊपरी कमाई के कारण वीर सिंह नगर निगम में बना रहा।
एसई ओमबीर के इशारे पर नगर निगम की डीए ब्रांच ने उच्च न्यायालय को कई महत्वपूर्ण तथ्य छिपा कर गुमराह किया। वीर सिंह 2012 से पहले निगम में डीसी रेट पर कार्यरत था इस मुद्दे पर डीए ब्रांच ने गोलमोल जवाब देते हुए अदालत को उसका रोल पर होना बताया।
इस आधार पर न्यायालय ने नगर निगम को अक्तूबर 2022 से मार्च 2023 तक उसका वेतन जारी करने का आदेश दिया। निगम के भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार अदालत के इस आदेश को आधार बना कर अब वीर सिंह को नगर निगम में जेई का पद परोस दिया जाएगा।
हालांकि जीत हासिल होने के बाद वीर सिंह की मुश्किलें उस समय बढ़ती नजर आईं जब उसको संरक्षण देने वाले आक़ा एसई ओमबीर का मंगलवार को हिसार तबादला हो गया। लेकिन केंद्रीय मंत्री किशनपाल गूजर ने सीएम खट्टर को फोन कर अपने चहेते ओमबीर का तबादला रद्द करवा दिया। इससे वीर सिंह को भी राहत मिल गई। अब देखने वाली बात ये है कि डीए ब्रांच ने यह खेल केवल ओमबीर के कहने पर ही खेला है या इसमें निगमायुक्त भी शामिल है। यदि निगमायुक्त शामिल नहीं हैं तो उनका रिव्यू पिटिशन में जाना तय है।