न्यूज़ नेशन में दस साल काम करने के बाद इस्तीफ़ा देने वाले पत्रकार अनिल यादव ने चैनल और यूपी सरकार पर लगाए गम्भीर आरोप

न्यूज़ नेशन में दस साल काम करने के बाद इस्तीफ़ा देने वाले पत्रकार अनिल यादव ने चैनल और यूपी सरकार पर लगाए गम्भीर आरोप
September 18 17:04 2022

न्यूज़ नेशन को 2012 में ज्वाइन किया थाज्.लगभग 10 साल हो गए 2014-15 में रिपोर्टिंग करने लखनऊ आया थाज्.. 2017 तक तो चैनल ठीक-ठाक चलता रहा जब तक सूबे में गैर भाजपा सरकार थी…

तब तक तो चैनल थोड़ी-बहुत पत्रकारिता करता था, और सरकार की गलत नीतियों अपराध भ्रष्टाचार सब की खबरें दिखाता था.

लेकिन 2017 के बाद .क्क. में जैसे ही सरकार बदली बीजेपी की सरकार आई चैनल ने अपनी रीढ़ की हड्डी मानो निकाल कर रख दी और केंचुए का रूप धारण कर लिया.
सभी रिपोर्टर पर प्रतिबंध लगा दिया गया कि वह सरकार की किसी पॉलिसी के खिलाफ नहीं बोलेंगे.

प्रदेश में अगर कहीं क्राइम की खबर हो रही है, अपराध की खबर हो रही है तो उस पर न तो कहीं बोलेंगे न टिप्पणी करेंगे न सोशल मीडिया में कुछ लिखेंगे, और चैनल पर भी लाइव रिपोर्टिंग के दौरान सरकार के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलना है, बल्कि सभी चीजों के लिए विपक्षी दलों चाहे वह बीएसपी हो कांग्रेस हो या समाजवादी पार्टी हो उसे ही जिम्मेदार ठहराना है.

रेवेन्यू के लिए न्यूज़ नेशन मानो सरकार के सामने बिछ गया हो.

चैनल का एक ही एजेंडा रह गया, सुबह हिंदू मुसलमान से शुरू करना और रात में हिंदू मुसलमान से ही खत्म करना…
रिपोर्टर्स को बोला जाने लगा, दबाव दिया जाने लगा कि मुस्लिम से रिलेटेड स्ह्लशह्म्4 लाओ. मुस्लिम से जुड़ी कंट्रोवर्सी ढूंढो, मुसलमानों को उकसाओ, उनसे विवादित बयान दिलवाओ.
मदरसों में जाओ, मस्जिदों में जाओ कहीं से कुछ निकालकर लाओ, मुस्लिम सेलिब्रिटी हैं, बड़े स्कॉलर हैं, शायर हैं, उनसे विवादित बयान दिलवाने का दबाव बनाया जाने लगा.
बस रात दिन एक ही फितूर हिंदू मुसलमान हिंदू मुसलमान हिंदू मुसलमान. राज्य और केंद्र सरकार की सभी गलत पॉलिसियों को बढ़ा चढ़ा कर पेश करना, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की दलाली करना और विपक्षी दलों को नेताओं को बदनाम करना, यही अब न्यूज़ नेशन का एजेंडा रह गया है.

कुल मिलाकर न्यूज़ नेशन ने अपने पत्रकारों को पत्रकारिता की जगह भांडगिरी पर लगा रखा है.
इस चैनल से विदा लेने की तो बहुत पहले सोच रहा था, लेकिन कुछ मजबूरियां थी जिन्होंने हाथ पैर बांध रखे थे लेकिन एनफ इज एनफ. इस चैनल के साथ अब ज्यादा बने रहने का मतलब है कि अपने जमीर को मारना और जमीर मर गया तो व्यक्ति जीते जी मर जाता है. चैनल में अभी भी बहुत से अच्छे पत्रकार हैं और वो पत्रकारिता करना चाहते हैं लेकिन मजबूरी में वह नौकरी कर रहे हैं ना की पत्रकारिता.

चैनल में पत्रकारों को ना तो अपने मन से कुछ सोचने की, ना बोलने की, न लिखने की, न कहने की आजादी है. यहां तक कि सोशल मीडिया पर भी वह एक लफ्ज़ नहीं लिख सकते हैं.
न्यूज़ नेशन अब पूरी तरह से लखनऊ स्थित मुख्यमंत्री कार्यालय से संचालित होता है. वहीं से उसका एजेंडा तय होता है. वहीं से उसका कंटेंट तय होता है और अगर किसी रिपोर्टर ने अपने मन से कुछ कह दिया लिख दिया बोल दिया या कोई वीडियो बना दिया जिसमें समाज की कोई हकीकत हो सच्चाई हो या किसी मजलूम का उल्लेख हो तो पंचम तल से निर्देश जाता है और उसके बाद चैनल के संपादक सक्रिय हो जाते हैं, सरकार को ही विश्वास दिलाने के लिए कि हम आपकी गुलामी में अभी तत्पर हैं.

रिपोर्टर को धमकाते हैं कि तुमने सरकार की शान में कैसे गुस्ताखी कर दी. कल मैंने एक वीडियो बनाया जिसमें गोंडा से आया हुआ एक 14 साल का बच्चा जिसके भाई की हत्या कर दी गई, वह इंसाफ के लिए गली-गली भटक रहा है, उसकी कोई सुनने वाला नहीं है.

यह वीडियो पंचम तल पर बैठे हाकिमों को इतना बुरा लगा कि उन्होंने चैनल में शिकायत की और चैनल एक बार फिर से सरकार की दलाली में उतर पड़ा और उल्टे मुझे डराने और धमकाने लगा.

डर डर कर कई साल नौकरी कर ली लेकिन अब इस डर को मैं अपने अंदर से निकालता हूं और आपकी नौकरी आपको वापस करता हूं.
आप लोग जनता के सरोकार को छोडक़र जनता के मुद्दों को छोडक़र सरकार की ढपली बजाइए. शायद सरकार आपको इस साल रेवेन्यू में कुछ और इजाफा कर दे.
और अंत में चैनल के संपादकों को मैं चंपादक कहना पसंद करूंगा, क्योंकि संपादक बहुत बड़ा शब्द है और आप लोग चंपादक कहे जाने के लायक हो.
धन्यवाद
अनिल यादव, न्यूज नेशन, लखनउ

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Mazdoor Morcha
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