निकम्मे अधिकारियों की देखरेख में पाली में खपाई जा रही बंधवाड़ी की गंदगी

निकम्मे अधिकारियों की देखरेख में पाली में खपाई जा रही बंधवाड़ी की गंदगी
March 26 06:48 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) पर्यावरण संरक्षण के नाम पर एनजीटी को कैसे ठिकाने लगाना है यह नगर निगम के भ्रष्ट, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निकम्मे और जिला प्रशासन के लंपट अधिकारी बाखूबी जानते हैं। एनजीटी ने बंधवाड़ी के कूड़े के पहाड़ को समाप्त करने का आदेश दिया तो कूड़े का वैज्ञानिक ढंग से निस्तारण करने के बजाय ये अधिकारी उस गंदगी को बस्तियों में खाली पड़ी निजी जमीनों में ठिकाने लगाने में जुट गए। निजी भूमि पर प्रशासन की देखरेख में किए जा रहे मृदा प्रदूषण के लिए निगम अधिकारी वेंडर कंपनियों के जरिए जमीन मालिक को मोटा भुगतान करवा रहे हैं। पर्यावरण प्रेमियों द्वारा शिकायत करने पर कचरा डंपिंग का काम बंद होने के बजाय और तेज कर दिया गया है, समझा जा सकता है कि प्रशासन की मिलीभगत से ही यह धंधा चल रहा है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रही संस्था सेव अरावली ट्रस्ट के जीतेंद्र भड़ाना बताते हैं कि एनजीटी ने गुडग़ांव और फरीदाबाद नगर निगम को बंधवाड़ी से कचरे के पहाड़ समाप्त करने का आदेश दिया था। फेल होने पर दोनों पर सौ करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया जा चुका है लेकिन निकम्मे अधिकारी कुछ करके राज़ी नहीं हैं क्योंकि उक्त जुर्माना भी किसी पाखंड से कम नहीं है, समझने वाली बात यह है कि सरकार ने जुर्माना देना है और सरकार ने ही लेना है, इससे किसी अधिकारी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। अब एनजीटी ने सख्ती दिखाई तो ये अधिकारी बंधवाड़ी के 22 लाख टन कूड़े को इधर-उधर खपा कर उसे गुमराह कर रहे हैं। जीतेंद्र के अनुसार बंधवाड़ी से जो कचरा लाकर पाली में खाली प्लॉटों में डाला जा रहा है उसमें पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली पॉलिथीन, प्लास्टिक की मात्रा 70-80 प्रतिशत तक है।

प्लास्टिक युक्त यह कूड़ा मृदा प्रदूषण के साथ ही पर्यावरण के लिए गंभीर हानिकारक है। बंधवाड़ी का खतरनाक कचरा पाली की कृषि भूमि के पास स्थित आवासीय प्लॉटों में अवैध रूप से खपाए जाने की शिकायत उन्होंने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) से की थी। बोर्ड के निकम्मे अधिकारियों ने जांच और कार्रवाई करने के बजाय पल्ला झाड़ते हुए 22 फरवरी को नगर निगम को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया, जिसका जवाब निगम ने नहीं दिया है। 22 फरवरी को ही वह डीसी विक्रम सिंह से भी इस संबंध में मिले थे। डीसी ने मामले की गंभीरता देखते हुए एसडीएम बडख़ल की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी का गठन किया, कमेटी में नगर निगम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पुलिस और सेव अरावली ट्रस्ट के प्रतिनिधियों को सदस्य बनाया गया। कमेटी को सात दिन में रिपोर्ट पेश करनी थी। कमेटी के सदस्य इतने लापरवाह निकले की बारह दिन तक तो कोई बैठक ही नहीं हुई। 5 मार्च को एसडीएम बडख़ल कार्यालय में बैठक हुई। बैठक में सेव अरावली के सदस्यों ने पाली में जहरीली और हानिकारक प्लास्टिक युक्त कचरे को डंप किए जाने से पर्यावरण और नागरिकों की सेहत को होने वाले नुकसान के बारे में विस्तार से जानकारी दी और इस पर रोक लगाने की मांग की।

पीसीबी के सदस्यों ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि यह डंपिंग गतिविधियां प्रदूषण नियंत्रण गाइडलाइंस के तहत स्वीकार्य हैं। सेव अरावली के सदस्य उन्हें बार बार याद दिलाते रहे कि कचरे में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली प्लास्टिक प्रचुर मात्रा में शामिल हैं, कचरे की जांच कराई जाए तो सामने आएगा कि ये प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइडलाइंस का खुला उल्लंघन है, लेकिन निकम्मे अधिकारी अपनी ही बात पर अड़े रहे। नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारियों ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि वो कचरा डंप नहीं करवा रहे हैं। तो कचरा किसके आदेश पर डाला जा रहा है, कौन डलवा रहा है ये सवाल न तो एसडीएम ने किया, न पुलिस ने और न ही पीसीबी के अधिकारियों ने। अंत में इस पर सहमति बनी की सात दिन के भीतर डंपिंग साइट्स की जानकारी इकट्ठी की जाएगी।

ये सहमति सिर्फ दिखावे की थी तब से आज तक कोई भी कार्रवाई नहीं की गई। हां, बैठक के बाद से यह हुआ कि कचरा डालने का काम और तेज हो गया। कचरा लाकर डालने वाले डंपर चालक विरोध करने वालों को यह झूठ बोलकर चुप करा देते हैं कि कमेटी के आदेश पर वह यहां कूड़ा डाल रहे हैं। कुछ जागरूक नागरिक इसकी वीडियोग्राफी करने लगे तो उन्हें बलपूर्वक रोक दिया गया। डंपर चालक धमकी देते कि ये सरकारी काम है, बाधा डालोगे तो केस दर्ज करा दिया जाएगा। स्थानीय लोगों का आरोप है कि नगर निगम के हरामखोर अधिकारियों की शह पर ही ये डंपर चालक दबंगई कर कचरा डाल रहे हैं।

जीतेंद्र भड़ाना के अनुसार सरकार कचरा डंप करने वाले वेंडरों के जरिए निजी जमीन मालिकों को 80 हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से भुगतान करवा रही है। एक एकड़ में सौ से सवा सौ डंपर तक कचरा खपाया जा रहा है। मोटा रुपया मिलने के कारण ये लोग कचरा डाले जाने का विरोध नहीं कर रहे। जबकि पर्यावरण प्रेमी इसलिए विरोध कर रहे हैं कि इसके कारण बहुत बड़े इलाके की मिट्टी, हवा और पानी प्रदूषित हो जाएंगे। सेव अरावली ट्रस्ट अब इस अंधरेगर्दी को रुकवाने के लिए एनजीटी में शिकायत की तैयारी कर रही है।

बंधवाड़ी में कचरे का पहाड़ मोदी-खट्टर की डबल इंजन सरकार की झूठी वाहवाही लूटने के लिए बनाई गईं गलत नीतियों का परिणाम है। संघ-भाजपा के करीबी अग्रवाल परिवार को लाभ पहुुंचाने के लिए डबल इंजन सरकारों ने चीन की नाकारा और अनुभवहीन ईकोग्रीन कंपनी को कचरा प्रबंधन का प्रोजेक्ट सौंप दिया। मोदी-खट्टर की हर नाकाम स्कीम की तरह इसका भी यही हाल होना था, बंधवाड़ी में साल दर साल कचरे का पहाड़ बनता गया, लेकिन सरकार अनुबंध की शर्तें पूरी नहीं करने के बावजूद ईकोग्रीन का प्रबंधन संभाल रहे अग्रवाल परिवार को मोटा भुगतान करती रही। करोड़ों रुपये लाभ पहुंचाने के बाद सरकार ने चुपचाप कंपनी का अनुबंध समाप्त कर दिया और जनताके लिए 35 लाख टन कचरे के पहाड़ कोछोड़ दिया गया। अब एनजीटी का डंडा पड़ा तो फिर आम जनता की जमीन को ही लैंडफिल साइट बनाकर पर्यावण की ऐसी तैसी की जा रही है, यह सब डबल इंजन सरकारों की देखरेख में जोर शोर से हो रहा है।

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Mazdoor Morcha
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