ग्रीन फील्ड कॉलोनी के बिल्डरों पर ईडीसी-आईडीसी का करीब सौ करोड़ रुपया है बकाया हूडा के अपने कई सेक्टरों की हालत खराब है लेकिन सरकार ग्रीन फील्ड वालों को दे रही सहूलियत फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) खट्टर सरकार आम जनता से वसूले गए टैक्स की मोटी रकम उस ग्रीन फील्ड पर खर्चेगी जिसके बिल्डर- डेवलपर ने ईडीसी-आईडीसी की सौ करोड़ रुपये से भी अधिक की रकम सरकार को जमा ही नहीं कराई। पार्टी विद डिफरेंस का ढिंढोरा पीटने वाली भाजपा सरकार अब चंद वोट पाने के लिए तुष्टिकरण पर भी उतर आई है, इसके लिए नियम-कानून भी ताक पर रखने में कोई गुरेज नहीं महसूस करती।
1976 में विकसित हुई ग्रीन फील्ड कॉलोनी अपनी स्थापना के बाद से ही विवादों में घिरी रही। बिल्डर एवं डेवलपर ने खरीदारों से तो ईडीसी-आईडीसी शुल्क वसूला लेकिन सरकार में जमा करा कर कॉलोनी को रेगुलराइज नहीं कराया। साढ़े पांच दशक में यह शुल्क कई गुना बढ़ गया है। पूर्व निगमायुक्त जीतेंद्र दहिया के अनुसार ग्रीन फील्ड कॉलोनी में सुविधाएं देने के लिए करीब 110 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। यानी कॉलोनी नगर निगम को हैंडओवर करने के लिए बिल्डर को 110 करोड़ रुपये चुकाने पड़ते। बताते चलें कि वर्तमान में बिल्डर कंपनी के कई शेयर होल्डर भाजपा नेताओं के फाइनेंसर भी हैं।
दरअसल ग्रीन फील्ड में अभी भी काफी ज़मीन खाली पड़ी है जिसकी कीमत वर्तमान में करोड़ों में है। सरकार के फाइनेंसर इन डेवलपरों की रुचि यहां के रेजिडेंट्स के कल्याण में नहीं बल्कि इस बेशकीमती ज़मीन में है। सरकार के खर्च पर आधारभूत सुविधाएं विकसित होने पर इस जमीन के दाम और भी ज्यादा बढ़ जाएंगे और डेवलपर फिर से मलाई काटेंगे। अपने इन फाइनेंसरों को लाभ पहुंचाने के लिए भाजपा नेताओं ने मुख्यमंत्री खट्टर को कॉलोनी टेकओवर करवाने पर राजी कर लिया, बावजूद इसके कि यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है।
नूंह हिंसा पर विधानसभा में बहस की मांग कर रहे विपक्ष को मामला न्यायालय में विचाराधीन होनेे का हवाला देकर शांत करने वाली खट्टर सरकार ने ग्रीन फील्ड का मामला भी न्यायालय में विचाराधीन होने के बावजूद इसे टेकओवर कर करोड़ों रुपये के विकास कार्यों की घोषणा कर दी।
फाइनेंसरों को खुश करने के साथ ही सरकार ने वोट पाने के लिए भी यह चाल चली है। विधानसभा चुनाव का एक वर्ष ही बचा है, बांटो और राज करो की राजनीति में विश्वास करने वाली भाजपा की खट्टर सरकार की सच्चाई जनता के सामने आ चुकी है। तेजी से खिसकते जनाधार को बचाने के लिए सरकार किसी भी हद तक जा सकती है, ग्रीन फील्ड कॉलोनी टेकओवर की घोषणा इसका उदाहरण है। खट्टर, केंद्रीय मंत्री किशनपाल गूजर और विधायक सीमा त्रिखा को लगता है कि सौ करोड़ रुपये के विकास कार्यों की मुफ्त रेवड़ी मिलने से ग्रीन फील्ड कॉलोनी वासी उनके पक्ष में वोट डालेंगे। बुजुर्ग समाजसेवी सुरेश गोयल कहते हैं कि सरकार नगर निगम और हूडा के क्षेत्र में तो नागरिकों को पेयजल, सीवेज, जल निकासी आदि आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा पा रही लेकिन ग्रीन फील्ड जैसी निजी कॉलोनी में करोड़ों रुपये खर्च करेगी। कॉलोनी के विकास में जो करोड़ों रुपये खर्च होंगे वो कोई नेता अपनी जेब से नहीं लगाएगा बल्कि आम जनता से टैक्स के रूप में वसूला जाएगा। अगर खट्टर सरकार ने ग्रीन फील्ड कॉलोनी को टेकओवर करने के एवज में दलाली नहीं खाई है तो उसे चाहिए कि कॉलोनी में अभी खाली पड़ी जमीन को कब्जे में लेकर उसकी बिक्री करे। जमीन की बिक्री से होने वाली आय से वह कॉलोनी में सुविधाएं विकसित कराए। मुख्यमंत्री खट्टर यदि सच में ईमानदार हैं तो सारे दस्तावेजों की जांच कराएं, यदि डेवलपर ने प्लॉट खरीदारों से ईडीसी-आईडीसी शुल्क वसूला है लेकिन जमा नहीं कराया तो उनके खिलाफ आपराधिक केस दर्ज करा जेल भेजें।
यह है ग्रीन फील्ड कॉलोनी की कहानी ग्रीन फील्ड कॉलोनी पांच दशक पहले अर्बन इंप्रूवमेंट नामक कंपनी ने विकसित की थी। 434 एकड़ की इस योजना में 3713 प्लॉट काटे गए थे। इनमें आवासीय प्लॉट के अलावा शिक्षण संस्था, अस्पताल और मनोरंजन व सामुदायिक कार्यक्रमों के लिए भवन के भी प्लॉट आवंटित किए गए थे। डेवलपर ने प्लॉट बेचे और खरीदारों से आंतरिक व वाह्य विकास (ईडीसी-आईडीसी) विकास शुल्क वसूला लेकिन सीवर-पानी आदि मूलभूत सुविधाएं देने के लिए यह शुल्क हूडा या नगर निगम में नहीं जमा करवाया। इस कारण कॉलोनी इन आधारभूत सुविधाओं से वंचित रह गई। इस बीच 1982 में यूआईसी के तत्कालीन डायरेक्टर ने नियम के खिलाफ जाते हुए 48 प्लॉट गैर कानूनी रूप से बेच दिए थे जिससे कंपनी के शेयरधारक और डायरेक्टर के बीच विवाद हो गया और मामला कोर्ट में चला गया। मामला न्यायालय में विचाराधीन होने का बहाना बनाकर बिल्डरों ने कॉलोनी हूडा या नगर निगम के हैंडओवर नहीं की। इसके विपरीत नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं देने के लिए बिल्डर उनसे शुल्क वसूलते रहे। इस दौरान कॉलोनी निवासी बिंदे भड़ाना सहित एक अन्य आरडब्ल्यूए ने भी कोर्ट केस कर दिया। वर्तमान में न्यायालय में कॉलोनी से संबंधित चार मामले विचाराधीन हैं। सरकार को चाहिए कि न्यायालय का निर्णय आने के बाद ही कोई फैसला करे।