फरीदाबाद (म.मो.) बहुत दिन नहीं हुए जब जनवरी माह में निगमायुक्त यशपाल यादव सडक़ों पर उछल-कूद मचाते हुए एक फ़िल्मी हीरो की तरह शहर में सफाई अभियान चलाते घूम रहे थे। बाजारों से रेहड़ी व फड़ी वाले भगा दिये गये थे, दुकानों के सामने 10-10 फीट सडक़ घेर कर रखा सामान एक दम गायब हो गया था। अनेकों नागरिकों ने अपने रिहायशी, मकानों के सामने लगी ग्रिलें व शेड आदि स्वत: हटा दिये थे। लेकिन आज वही पुरानी स्थिति फिर से लौट आई है। जो सडक़ें खूब चौड़ी-चौड़ी लगने लगी थी वे फिर से भीड़ी होने लगी हैं।
जिन अवैध कब्जों व मकानों को खुद निगमायुक्त ने चिन्हित किया था, खास कर वे 40 निर्माण जो उनके द्वारा बनाई टीम ने चिन्हित किये थे आज भी ज्यों के त्यों मौजूद हैं। जिन निर्माणों को तोडऩे के लिये निगमायुक्त महोदय खुद लाव-लश्कर के साथ पहुंचे थे और बैरंग वापस लौटे थे, वे भी ज्यों के त्यों खड़े हैं। इसके बावजूद निगमायुक्त महोदय बड़ी शान्ति से बैठे हैं। आखिर इस सारी कवायद का मकसद क्या था? क्या यह न समझा जाय कि यादव जी अपनी प्रशासनिक शक्तियों का भोंडा प्रदर्शन करके अपने भाव बढ़ा रहे थे? अब मक्सद पूरा हो जाने पर वे आराम से जुगाली कर रहे हैं।
अभी पिछले दिनों जनाब ने अपने भ्रष्ट अमले को निर्देश दिये हैं कि वे 30 अप्रैल तक तमाम नालों आदि पर से कब्जे हटवायें और उनकी सफाई करायें ताकि बरसात में जल भराव न हो। किसी भी क्षेत्र में जलभराव होने की स्थिति में संबंधित अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी। तमाम शहरवासी इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि हर वर्ष इस तरह के आदेश निगमायुक्तों के द्वारा दिये जाते हैं, इसके बाद टेंडर जारी होते हैं, बिल बनाये व पास किये जाते हैं परन्तु ढाक के वही तीन पात रहते आये हैं। शहर के चप्पे-चप्पे पर कीचड़ व जल भराव से नागरिक जूझते रहते हैं और नगर निगम को कोसते रहते हैं।
हालात को देखते हुए इस बार भी कोई नया चमत्कार होने की सम्भावना नज़र नहीं आती। नीलम चौक से लेकर पांच नम्बर स्थित थाना एनआईटी को जाने वाली सडक़ के दोनो ओर बने नालों व साथ लगती सरकारी जमीनों पर बने अवैध कब्जों को छूने की हिम्मत है यादव साहब में? यदि है तो जरा छूकर तो दिखायें।